११६. आंतर्राष्ट्रीय संबंध

व्याप्ति से केवल लगभग २०-२१ हज़ार वर्ग किमी. होनेवाले इस्रायल ने आज विज्ञान-तंत्रज्ञान, कृषि, जलव्यवस्थापन ऐसे कई क्षेत्रों में जो नेत्रदीपक प्रगति हासिल की है, वह लक्षणीय है ही; लेकिन आज इस्रायल का डंका जागतिक पटल में बज रहा है, उसका कारण यह नहीं है!

आज अमरीका जैसी ताकतवर जागतिक महासत्ता को भी, उसके सामने बहुत ही छोटा होनेवाले इस्रायल के साथ दोस्ती का रवैय्या अपनाना पड़ रहा है| इसका एक महत्त्वपूर्ण कारण यानी इस्रायल का भौगोलिक स्थान! मध्यपूर्वी क्षेत्र का यह देश इस्रायल भूमध्य समुद्र के पूर्वी क़िनारी इलाक़े में बसा है| उसकी दक्षिणी ओर लाल समुद्र (रेड सी), उत्तरी ओर लेबेनॉन और ईशान्य (नॉर्थ-ईस्ट) की ओर सिरिया ये देश है| पूर्व की तरफ़ जॉर्डन होकर, पश्‍चिमी ओर इजिप्त है| इस प्रकार एशिया-अङ्ग्रिका इन दो महाद्वीपों को जोड़नेवाले और उत्तरी ओर उसमें तथा युरोप महाद्वीप के बीच केवल भूमध्य समुद्र का फ़ासला होनेवाले इस इस्रायल देश की अहमियत रणनीति की दृष्टि से बहुत अधिक है| क्योंकि युरोपीय देशों का एशियाई देशों के साथ होनेवाला व्यापार यह प्रायः मध्यपूर्वी क्षेत्र के ज़रिये ही चलता है| इस कारण, मध्यपूर्वी क्षेत्र में अशान्ति होना आंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए महँगा पड़ सकता है| ऐसे इस मध्यपूर्वी क्षेत्र में अधिकांश रूप में इस्लामी/अरब राष्ट्र बहुसंख्या से हैं| इन देशों के साथ संतुलन बनाये रखने के लिए, उनके साथ कुछ ख़ास मित्रता न होनेवाले और उनकी नाक में दम कर रहे इस्रायल को पकड़कर रखना यह दुनिया को ज़रूरी महसूस हो रहा है|

इस्रायल का महत्त्वपूर्ण भू-राजकीय एवं भौगोलिक स्थान

इस्रायल के पड़ोसी देश या तो अरब या फिर इस्लामी देश हैं और उन में से अधिकों के इस्रायल की किसी न किसी कारण से दुश्मनी ही है| समय की धारा में हालॉंकि इनमेें से इजिप्त तथा जॉर्डन के साथ इस्रायल के शांतिसमझौते हुए हैं, फिर भी इन राष्ट्रों के साथ इस्रायल की कोई ख़ास मित्रता नहीं है| इस्रायल के कब्ज़े में होनेवाले विवादित स्थानों में से – ‘वेस्ट बँक’ यह प्रदेश इस्रायल की पूर्वी दिशा में; वहीं, ‘गाझापट्टी’ यह इस्रायल की पश्‍चिमी ओर बसी है| सिरिया के साथ विवाद होनेवालीं ‘गोलन पहाड़ियॉं’ (गोलन हाईट्स) इस्रायल की ईशान्य (नॉर्थ-ईस्ट) दिशा में हैं| वेस्ट बँक तथा गाझापट्टी की मालिक़ियत को लेकर इस्रायल का पॅलेस्टिनी लोगों के साथ विवाद है| ज्यूधर्मीय, ख्रिस्ती तथा इस्लामी इन तीनों धर्मियों के लिए आदरणीय होनेवाला जेरुसलेम शहर यह इसी वेस्ट बँक में स्थित है|

तेल अवीव यह इस्रायल का प्रमुख आर्थिक एवं विज्ञान-तंत्रज्ञान संशोधन विषयक केंद्र है, लेकिन इस्रायल की घोषित राजधानी जेरुसलेम होकर, इस्रायली सरकार भी यहीं से कार्यरत है| लेकिन जागतिक मंच पर फिलहाल तो इस्रायल की यह घोषणा विवादग्रस्त मानी जा रही है और सभी राष्ट्रों का अबतक इस घोषणा को समर्थन नहीं मिला है| कई देशों के इस्रायलस्थित दूतावास अभी तक तेल अवीव में ही हैं|

लेकिन अमरीका के विद्यमान अध्यक्ष डोनाल्ड ट्रम्प ने इस्रायल के भू-राजकीय महत्त्व को जानकर इस्रायल के साथ सहयोग की नीति अपनायी है| सन २०१८ में ट्रम्प ने, अमरीका का इस्रायल स्थित दूतावास तेल अवीव से जेरुसलेम में स्थलांतरित किया, जो जागतिक होहल्ले की कारण बन चुका था| क्योंकि ऐसा करना यानी इस्रायल की – ‘अपनी राजधानी जेरुसलेम होने की’ घोषणा को अधिकृत रूप में मान्यता देने जैसी बात होगी, जिसके कारण अरब देश ख़फ़ा हो सकते हैं और तेल के लिए अरब देशों पर निर्भर होनेवाले देशों को वह महँगा पड़ सकता है|

इस पृष्ठभूमि पर इस्रायल के आंतर्राष्ट्रीय संबंध कैसे हैं?

सन १९४८ की इस्रायल की स्थापना की घोषणा के चन्द ११ मिनटों में ही सबसे पहले अमरीका ने इस्रायल को अनौपचारिक रूप में (‘डि-फॅक्टो’) मान्यता दी| तब से अमरीका-इस्रायल संबंध लष्करी, आर्थिक, शैक्षणिक, विज्ञान-तंत्रज्ञान, राजनैतिक ऐसे विभिन्न क्षेत्रों में दिनबदिन वृद्धिंगत होते चले जा रहे हैं| गत कुछ दशकों में अमरीका में विभिन्न क्षेत्रों में उच्चस्थान हासिल किये हुए प्रभावशाली ज्यूधर्मियों ने भी इन संबंधों को बढ़ाने में अनमोल सहायता की है|

अमरीका के बाद तुर्की, ईरान, ग्वाटेमाला, आईसलँड ऐसे कई देशों ने भी इस्रायल को मान्यता दी| तुर्की यह इस्रायल को मान्यता देनेवाला पहला इस्लामी देश था और कई सालों तक दोनों के बीच के संबंध बढ़ते सहयोग के ही रहे| लेकिन चूँकि अब तुर्की ने पॅलेस्टाईन को समर्थन देना शुरू किया है, तुर्की-इस्रायल संबंध काफ़ी हद तक बिगड़ गये हैं| वैसे ही, ईरान में जब तक पेहलवी राजसत्ता का शासन था, तब तक ईरान के भी इस्रायल के साथ उत्तम सहयोग के संबंध थे| सन १९७९ की राज्यक्रांति के बाद पेहलवी राजसत्ता का त़ख्ता पलट दिया जाने के बाद दोनों देशों के बीच के राजनैतिक संबंध ख़त्म हो चुके हैं|

गाझापट्टी, वेस्ट बँक और गोलान पहाड़ियॉं

इस्रायल को बतौर ‘एक देश’ सबसे पहले अधिकृत रूप से (‘डि-ज्यूर’) मान्यता दी थी, सोव्हिएत युनियन ने| सोव्हिएत के उत्तराधिकारी रशिया के साथ भी इस्रायल के अच्छे संबंध हैं| चीन के साथ भी इस्रायल के राजनैतिक संबंध होकर, कई क्षेत्रों में बढ़ता सहयोग है| अमरीका ने फ़रवरी १९४९ में इस्रायल को अधिकृत मान्यता दी; वहीं, मई १९४९ में इस्रायल को युनो का सदस्यत्व भी प्राप्त हुआ|

युरोपीय देश तथा इस्रायल के बीच के संबंधों को ग्रसित करनेवाला ज्यूविद्वेष का भूतकाल अब समय के परदे के पीछे धकेलते हुए दोनों पक्ष अब नये सिरे से संबंधों का निर्माण कर रहे हैं| पश्‍चिमी देशों के साथ के इस्रायल के संबंधों की नींव यह प्रायः, विज्ञान-तंत्रज्ञान संशोधन-विकास क्षेत्र के सहयोग पर आधारित है; वहीं, कई एशियाई-अफ्रिकी देशों के साथ के इस्रायल के संबंध ये प्रायः कृषिविषयक संशोधन पर के सहयोग पर आधारित हैं| साथ ही, दुनिया में ऐसा भी एक रूझान दिखायी देता है कि प्रायः किसी भी देश कीं, कॉन्झर्वेटिव्ह विचारधारा की पार्टियॉं इस्रायल के साथ अच्छे संबंध रखना चाहती हैं; वहीं, लिबरल विचारधारा की पार्टियॉं इस्रायल का विद्वेष करती हैं|

अधिक से अधिक देश इस्रायल के साथ राजनैतिक संबंध स्थापित करने के लिए आगे आ रहे हैं, इसका एक और कारण है, इस्रायल की, स्वयं होकर किसी पर भी आक्रमण न करने की नीति| इस्रायल केवल तभी आक्रमक बन जाता है, जब इस्रायल का कोई दुश्मन उसपर हमला करता है|

अमरीका के साथ इस्रायल के संबंध ये हमेशा ही सौहार्दपूर्ण रहे हैं|

दुनिया के अन्य अधिकांश देशों के साथ हालॉंकि इस्रायल का सहयोग-अध्याय शुरू हो चुका है, फिर भी उसे अरब/इस्लामी देशों का अपवाद (एक्सेप्शन) है| कुछ अपवादों को छोड़कर इनमें से अधिकांश देश ये इस्रायल को अपना प्रमुख शत्रु मानते हैं और इस्रायल को उनकी मान्यता नहीं है| अरब तथा खाड़ी देशों के साथ ही एशिया महाद्वीप के पाकिस्तान, बांगलादेश, इंडोनेशिया आदि मुस्लिम-मेजॉरिटी देशों की भी इस्रायल को मान्यता नहीं है| सौदी अरेबिया, ओमान तथा यूएई इनके इस्रायल के साथ हालॉंकि बाक़ायदा राजनैतिक संबंध नहीं हैं, मग़र कई क्षेत्रों में इस्रायल के साथ बढ़ता सहयोग है|

सन १९७३ के योम किप्पूर युद्ध के बाद इस्रायल-अरब संघर्ष जारी रहा| इस्रायल की लेबेनॉन में कार्रवाई (१९७८); लेबेनॉन युद्ध (१९८२); दक्षिण लेबेनॉन में हिजबुल्लाह के खिलाफ़ संघर्ष (१९८५-२०००); गाझापट्टी तथा वेस्ट बँक स्थित पॅलेस्टिनी अरबों के इस्रायल के खिलाफ़ पहले बड़े संघटित विद्रोह (‘फर्स्ट इंतिफादा’-१९८७-९३, ‘सेकंड इंतिफादा’-२०००-२००५); दूसरा लेबेनॉन युद्ध (२००६); २००८ से गाझापट्टी में ‘हमास’ के सशस्त्र विद्रोहियों के खिलाफ़ कार्रवाई; ऐसे संघर्षों में गत कई साल से इस्रायल उलझा हुआ है|

इस इस्रायल-अरब संघर्ष का एक महत्त्वपूर्ण खिलाड़ी है -‘पॅलेस्टाईन लिबरेशन ऑर्गनायझेशन’ (पीएलओ) यह सशस्त्र अरब संगठन| इस्रायल के कब्ज़े में होनेवाले अरब-मेजॉरिटी इलाक़ों कोे (खासकर गाझापट्टी तथा वेस्ट बँक) इस्रायल से ‘आज़ादी दिलाने के लिए’ अरब लीग ने सन १९६४ में पीएलओ का निर्माण किया| तब से पीएलओ ने इस ध्येय के लिए हिंसक मार्गों को अपनाया है| सन १९७८ में जॉर्डन यह अपना बेस छोड़कतर पीएलओ ने लेबेनॉन में आश्रय लेने के कारण इस्रायल को लेबेनॉन में कार्रवाई शुरू करनी पड़ी थी|

पॅलेस्टिनी सशस्त्र विद्रोहियों के इस्रायलविरोधी सशस्त्र कारनामें लगातार चालू रहते हैं|

लेकिन ‘पॅलेस्टिनी अरबों का अधिकृत प्रातिनिधिक संगठन’ के तौर पर पीएलओ को दुनिया के १०० से भी अधिक देशों की मान्यता है, जिन्होंने पीएलओ के साथ बाक़ायदा – किसी देश के साथ रखे जाते हैं, वैसे राजनैतिक संबंध भी स्थापित किये हैं| इतना ही नहीं, बल्कि युनो में भी पीएलओ को सन १९७४ में ‘ऑब्झर्व्हर स्टेटस’ प्रदान करके दाखिल कराया गया (वोटिंग राईट्स नहीं हैं)|

पीएलओ में भी कई गुट हैं| उनमें से ‘फताह’ इस सबसे बलशाली गुट के साथ ही अन्य गुट भी अलग अलग मार्गों को अपनाकर इस्रायल पर हमले करने की कोशिशें करते रहते हैं| उसीके साथ, ‘मुस्लिम ब्रदरहूड’ इस मूल इजिप्शियन संगठन में से बना ‘हमास’ यह जहाल संगठन भी स्वयं को ‘पॅलेस्टिनी अरबों का एकमात्र प्रतिनिधि’ कहलाने की प्रतिस्पर्धा में रहता है| ये जहाल अरब सशस्त्र संगठन इस्रायल का अस्तित्व ही मान्य नहीं करते|

इस प्रकार, इस्रायल-पॅलेस्टाईन समस्या को लेकर जागतिक राष्ट्रों में दो गुट तैयार हुए हैं| कुछ देश इस्रायल के समर्थन में, तो कुछ खुले आम पॅलेस्टाईन के समर्थन में खड़े हैं| लेकिन अपने ‘प्रॉमिस्ड लँड’ के ध्येय के मामले में किसी भी प्रकार का समझौता करने के लिए इस्रायल तैय्यार नहीं है|

आज युनो के सदस्य होनेवाले, दुनिया के १९३ देशों में से १६२ देश इस्रायल को मान्यता देते हैं और उनमें राजनैतिक संबंध भी हैं| उनमें इस्रायल के साथ हज़ारों सालों से पारंपरिक अनौपचारिक संबंध होनेवाला भारत यह एक महत्त्वपूर्ण देश है|(क्रमश:)

– शुलमिथ पेणकर-निगरेकर

 

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