११७. भारतमित्र इस्रायल

भारत तथा इस्रायल ये हालॉंकि क्रमानुसार सन १९४७ एवं १९४८ में बतौर स्वतंत्र देश अस्तित्व में आये, मग़र फिर भी भारत एवं इस्रायल के बीच के अनौपचारिक संबंध सैंकड़ों साल पुराने हैं| पहले ज्यूधर्मीय भारत में तक़रीबन दो हज़ार वर्ष पहले आये, ऐसा बताया जाता है| फिर अगली कुछ सदियों में विभिन्न स्थानों से ज्यूधर्मियों के कई समूह भारत में आये| दुनिया में शायद भारत यह एकमात्र देश होगा, जहॉं आये हुए ज्यूधर्मियों के साथ भारतीयों ने कभी भी ज्यू-विद्वेष का सुलूक़ नहीं किया; उल्टे उनका प्यार से स्वागत किया गया, उन्हें भारतीय समाज में सम्मानपूर्वक समा लिया गया – उन्हें उनकी धार्मिक, सांस्कृतिक विशेषताओं का अलग से जतन करने देकर|

सैंकड़ों साल पहले से भारत आये हुए ज्यूधर्मीय भारतीय समाजजीवन में इतने घुलमिल गये हैं कि वे कोई ‘अलग’ हैं, ऐसा भारतीय मन में भी नहीं सोचते|

इस कारण भारत आये ज्यूधर्मीय यहॉं सुस्थिर हो गये, यहॉं के कारोबारों में उनकी तरक्की हुई, उनकी बस्तियॉं निर्माण हुईं| कई सदियों पहले भारत आकर गये हुए विदेशी व्यापारियों के दस्तावेज़ों में भी इसका ज़िक्र देखने को मिलता है| भारतस्थित ज्यूधर्मियों के दिलों में भारत के प्रति प्यार है ही| वे भारत को ही अपनी मातृभूमि मानते हैं| ‘भारत यह हमारी मातृभूमि तथा इस्रायल यह पितृभूमि’ यह समीकरण उनके मन में रहता है| वे भारतीय समाजजीवन में इतने घुलमिल गये हैं कि वे कोई ‘अलग’ हैं, ऐसा भारतीय मन में भी नहीं सोचते|

इनमें से कई ज्यूधर्मियों ने भारत में महत्त्वपूर्ण ओहदों पर काम किया है| सन १९७१ के भारत-पाकिस्तान युद्ध में महत्त्वपूर्ण प्रदर्शन किये हुए भारत के ‘ईस्टर्न कमांड’ के ‘चीफ़ ऑफ़ स्टाफ़’ ले. जनरल जॅक जेकब ये ज्यूवंशीय थे और इस युद्ध के बाद ही, पूर्वी पाकिस्तान आज़ाद होकर बांगलादेश का निर्माण हुआ था, यह इतिहास हमें ज्ञात ही है|

सन १९७१ के भारत-पाकिस्तान युद्ध में महत्त्वपूर्ण प्रदर्शन किये हुए भारत के ‘ईस्टर्न कमांड’ के ‘चीफ़ ऑफ़ स्टाफ़’ ले. जनरल जॅक जेकब (खड़े अफ़सरों में दाहिनी ओर से चौथे)

वैसे ही, डेव्हिड ससून ये १८-१९वीं सदी का भारतस्थित एक और विख्यात ज्यू व्यक्तित्व था| मूलतः बगदादी ज्यू होनेवाले डेव्हिड ससून ने भारत आने पर, कपड़ामिल से शुरुआत कर, अपनी उद्यमशीलता के बल पर कई व्यवसायों में सफलता हासिल की और उतना ही सत्कारणी दानधर्म कर कई समाजोपयोगी उपक्रमों के वे आधारस्तंभ बने| ससून मिल्स, ससून लायब्ररी, ससून डॉक, ससून हॉस्पिटल, ससून बालसुधारगृह, मसिना हॉस्पिटल ऐसे मुंबई-पुणे के कई प्रोजेक्ट्स उनके नाम से विभूषित हैं| गेटवे ऑफ इंडिया के निर्माण में भी उनका बड़ा योगदान था|

भारतीय ज्यू उद्योजक डेव्हिड ससून

उसीके साथ, हिंदी फिल्मों के शुरुआती दौर कीं अभिनेत्रियों में से प्रमिला (ईस्थर व्हिक्टोरिया अब्राहम), सुलोचना (रुबी मायर्स), नादिरा (फ्लोरेन्स इझिकेल) ये लोकप्रिय अभिनेत्रियॉं, साथ ही, चरित्र अभिनेता डेव्हिड (डेव्हिड अब्राहम चेऊलकर) ये ज्यूवंशीय ही थे| अभिनेत्री प्रमिला तो सन १९४७ की पहली ‘मिस इंडिया’ कॉंपिटिशन की विजेती थीं| वहीं, भारत का पहला बोलपट (‘टॉकी’) ‘आलम आरा’ के संवाद लिखनेवाले लेखक डेव्हिड जोसेफ पेणकर भी ज्यूवंशीय ही थे| ऐसे कई ज्यूधर्मियों ने भारतीय सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन में अमूल्य योगदान दिया था|

लेकिन इतना होने के बावजूद भी भारत-इस्रायल के बीच औपचारिक राजनैतिक संबंध स्थापित होने में बहुत समय लगा| उसके कई कारण हैं| इन दोनों देशों को जब आज़ादी मिली, तब दूसरा विश्‍वयुद्ध हाल ही में ख़त्म हुआ था और नये जागतिक समीकरणों का उदय हुआ था और सारी दुनिया इन नये समीकरणों से परिचित होने की कोशिशों में लगी थी| भारत जैसे, नये से ही आज़ाद हुए और उस कारण कई मामलों में विदेशों पर निर्भर होनेवाले देश पर भी इन नये समीकरणों का दबाव था ही| साथ ही, भारत के लिए आत्यंतिक ज़रूरी होनेवाले तेलईंधन के लिए भारत उस समय तेलउत्पादक आखाती देशों पर निर्भर था| उसीके साथ, नौकरी के सिलसिले में आखाती देशों में काम कर रहे भारतीय कर्मचारीवर्ग की संख्या भी बड़ी थी| वैसे ही, अमरीका तथा सोव्हिएत इन दो महासत्ताओं में से अमरीका की तत्कालीन नीति यह पाकिस्तानपरस्त होने के कारण, भारत स्वाभाविक रूप में सोव्हिएत के क़रीब गया और सोव्हिएत यह अरब-मित्र था|

सन १९४७ की पहली ‘मिस इंडिया’ कॉंपिटिशन की विजेती अभिनेत्री प्रमिला|

ऐसे कई दबावों के कारण शायद तत्कालीन भारतीय नेतृत्व को, इस्रायल के साथ राजनैतिक संबंध स्थापित करना संभव न हुआ हो| इस्रायल के साथ भले ही भारत के राजनैतिक संबंध स्थापित न हुए हों, भारत ने सन १९५० में ही इस्रायल को बतौर ‘देश’ मान्यता दी थी और भारतस्थित ज्यूधर्मियों को इस्रायल में स्थानांतरण करना आसान हों, इसके लिए मुंबई में दूतावास (कॉन्सुलेट) खोलने की अनुमति इस्रायल को दी गयी थी; जिसका फ़ायदा इस्रायल को स्थलांतरण करना चाहनेवाले हज़ारों भारतीय ज्यूधर्मियों को मिला| राजनैतिक संबंध न भी हों, लेकिन दोनों देशों में अनौपचारिक सहयोग जारी ही था, जिसका प्रत्यंतर भारत के सन १९६२, १९६५ तथा १९७१ युद्धों के समय आया था|

धीरे धीरे हालात बदलते गये| भारत ने पुरोगामी नीतियॉं अपनाते हुए सभी क्षेत्रों में प्रगति करने का और अधिक से अधिक आत्मनिर्भर बनने की प्रक्रिया का आरंभ किया| सन १९९० के दशक तक भारत का अच्छाख़ासा जागतिक दबदबा निर्माण होकर, भारत की बात को आंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वज़न प्राप्त होने लगा था| साथ ही, ऊर्जाक्षेत्र में भी अपारंपरिक स्रोतों का इस्तेमाल शुरू होने के कारण और भारत में भी नैसर्गिक वायु जैसे वैकल्पिक ईंधनस्रोत पाये जाने के कारण भारत का तेलईंधन पर निर्भर रहना कम होने लगा था| इन सारे बातों के परिणामस्वरूप आख़िरकार सन १९९२ में भारत ने इस्रायल के साथ राजनैतिक संबंध स्थापित किये और तेल अवीव्ह में भारतीय दूतावास शुरू किया|

बालाकोट एअरस्ट्राईक में भारत द्वारा इस्तेमाल किये गये इस्रायली स्पाईस बॉंब्ज़्

तब से भारत एवं इस्रायल के बीच कृषि, जलव्यवस्थापन, मत्स्यख़ेती, विज्ञान-तंत्रज्ञान संशोधन-विकास, उत्पादन, अंतरिक्ष, रक्षासामग्री, गुप्तचरयंत्रणा ऐसे विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग उत्तरोत्तर बढ़ता ही गया है| भारत ने सन १९९९ का पाकिस्तान के खिलाफ़ का कारगिल युद्ध जीतने में, इस्रायल ने भारत को सप्लाई किये हुए शस्त्रास्त्रों की काफ़ी मदद हुई थी| वैसे ही, सन २००१ के भयंकर भुज भूकंप के बाद के बचावकार्य में भारतीय यंत्रणाओं की सहायता करने के लिए इस्रायल ने फ़ौरन आयडीएफ का एक बचावपथक भेजा था| काश्मीरस्थित पुलवामा में हुए आतंकवादी हमले का बदला लेने के लिए भारत द्वारा किये गए बालाकोट एअरस्ट्राईक में इस्रायलनिर्मित ‘स्पाईस बॉंब्ज्’ का इस्तेमाल किया गया था| अंतरिक्षक्षेत्र में तो दोनों देशों के बीच ज़ोरदार सहयोग है और इस्रायल के कई सॅटेलाईट्स इस्रो ने लॉंच किये हैं| साथ ही, कृषिक्षेत्र में भी, भारतीय क़िसानों के कई गुट इस्रायल जाकर कृषितंत्रज्ञान का प्रशिक्षण लेकर आये हैं|

इस प्रकार पहले से अनेकविध क्षेत्रों में शुरू इस सहयोग में, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी के सन २०१७ के ऐतिहासिक इस्रायल दौरे के बाद और तेज़ी आयी|

आज भारत तथा इस्रायल इन दोनों पुरातन सभ्यताओं को एक-दूसरे से सीखने जैसा बहुत कुछ है और दोनों में कई समान कड़ियॉं होने के कारण एक-दूसरे के साथ सहयोग करने जैसा भी बहुत कुछ है| दोनों देश समान ऐतिहासिक पृष्ठभूमियों से आये हैं| दोनों देशों ने ज़ुल्मी विदेशी ताकतों के खिलाफ़ प्रखर संघर्ष कर आज़ादी प्राप्त की है| दोनों देशों में जनतंत्र शासनव्यवस्था को अपनाया है| किसी पर भी स्वयं होकर आक्रमण करने की दोनों देशों की नीति नहीं है| आतंकवाद का और पड़ोसी शत्रुदेशों की बढ़ती पीड़ा का मुक़ाबला दोनों देश निग्रहपूर्वक कर रहे हैं| भारत पर के २६/११ के आतंकवादी हमले में मुंबईस्थित इस्रायली आस्थापन ‘छाबड हाऊस’ को भी लक्ष्य बनाया गया था| ऐसी प्रतिकूल परिस्थिति में टिके रहने के लिए एक-दूसरे के साथ सहयोग बढ़ाते रहना, यही दोनों देशों के लिए हितकारी है और दोनों देश इसी मार्ग पर कदम उठा रहे हैं|

भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी की इस्रायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतान्याहू से मुलाक़ात

इस प्रकार इस लेखमाला में हमने, इस्रायल के प्राचीन इतिहास से शुरुआत कर, आज इस्रायल ने हासिल की हुई उँचाई का भी जायज़ा लिया| ज्यूधर्मियों के आद्यपूर्वज अब्राहम को हुए ईश्‍वर के दृष्टान्त में, ज्यूधर्मियों को बहाल की गयी, अपने हक़ की ‘प्रॉमिस्ड लँड’ में निवास करने के लिए ज्यूधर्मियों ने लगभग ३ सहस्रक – कई पीढ़ियों से किये हुए प्रखर संघर्ष का भी अध्ययन किया| कभी भी रत्तीभर भी कम न हुई जाज्वल्य ध्येयनिष्ठा के बल पर ज्यूधर्मियों ने अपार दिक्कतें सहकर ‘प्रॉमिस्ड लँड’ में ज्यू-राष्ट्र की तो स्थापना की ही, साथ ही, इस्रायल की बंजर रेगिस्तानी ज़मीन में हरियाली खिलाकर इस्रायल का सर्वांगीण विकास भी हासिल किया|

इस लेखमाला का समारोप करते समय, इस लेखमाला के आरंभ में उद्धृत किये हुए, ज्येष्ठ इस्रायली नेता शिमॉन पेरेस ने इस्रायल के बारे में कहे निम्न आशय के उद्गार पुनः बताने का मोह हो रहा है|

‘‘इस्रायल यह ऐसी भूमि है, जिसमें प्राकृतिक संसाधनों की कमी ही है| लेकिन इसलिए, हमारे पास जो नहीं है उसका दुख न करते हुए, हम इस्रायली लोगों ने, हमारे पास जो था यानी हमारे राष्ट्रभक्तिप्रेरित मन और लगन – उन्हीं को राष्ट्रकारण के लिए उपयोग में लाने का निश्‍चय किया! हमारे पास होनेवाले इन्हीं प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करते हुए, दायरे से हटकर सोच अपनाते हुए, हमने सर्जनशीलतापूर्वक हमारी भूमि के बंजर रेगिस्तान में नंदनवन का निर्माण किया, विज्ञान-तंत्रज्ञान क्षेत्रों में नये नये मुक़ाम हासिल किये|’’

– शिमॉन पेरेस

 

पेरेस के उद्गार कितने सार्थक है, इसका प्रत्यय इस्रायल के इस प्रदीर्घ, लेकिन सफल प्रवास का अध्ययन करते समय यक़ीनन ही होता है|

– शुलमिथ पेणकर-निगरेकर

(समाप्त)

 

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