उत्सर्जन संस्था – मूत्रपिंड – ६

हमारे मूत्रपिंड में ग्लोमेरूलर फिल्ट्रेशन रेट किन घटकों के कारण कम होता है, किन घटकों के कारण बढ़ता है, इसकी जानकारी आज हम प्राप्त करनेवाले हैं। फिल्ट्रेशन कोइफिशंट और बौमन्स कॅपसूल में दाब की जानकारी हमने कल के लेख में ली थी। आज हम प्रत्यक्ष ग्लोमरूलर केशवाहिनियों का विचार करनेवाले हैं।

ग्लोमेरूलर केशवाहनियों में कोलॉइड ऑस्मॉटिक दबाव बढ़ जाने पर ग्लोमेरूलर फिल्ट्रेशन कम हो जाता है क्योंकि यह दबाव फिल्ट्रेशन का विरोध करता है। यह दबाव जितना ज्यादा होगा फिल्ट्रेशन उतना ही कम होगा।

प्लाझ्मा के प्रोटीन जो दबाव निर्माण करते हैं उसे कोलॉइड ऑस्मॉटिक दबाव कहते हैं। प्लाझ्मा में प्रोटीनों की मात्रा ज्यादा जाने पर यह दबाव बढ़ जाता है और द्रव की छानने की प्रकिया का विरोध करता है। हमने देखा कि मूत्रपिंड में ऍफरंट आर्टिरिओल से ग्लोमेरूलर केशवाहनियों का जाल बनता है और इस जाल से इफरंट आर्टिरिओल तैयार होते हैं। अफरंट आर्टिरिओल से इफरंट आर्टिरिओल की ओर रक्त जैसे-जैसे प्रवाहित होता है वैसे-वैसे उसके प्लाझ्मा में प्रोटीनों की मात्रा २० प्रतिशत बढ़ जाती है। इसका कारण यह है कि ग्लोमेरूलर केशवाहनियों से रक्त का १/५ द्रव छाना जाता है\

प्लाझ्मा में यह दबाव कितना बढ़ेगा, यह दो बातों पर निर्भर करता है।
१) आरटरीज में मूल कोलॉइड ऑस्मॉटिक दाब। मूल दाब कितना है, इस पर उसमें होनेवाली बाढ़ तय होती है।

२) रक्त में से कुल कितना द्रव अथवा प्लाझ्मा छाना जाता है इस पर प्लाझ्मा में प्रोटीनों की होनेवाली बाढ़ तय होती है। प्रति मिनट रक्त में से जितना द्रव छाना जाता है उसे फिल्ट्रेशन फ्रॅक्शन कहते हैं। फिल्ट्रेशन फ्रॅक्शन ज्यादा हो जाने पर कोलॉइड संख्या ऑस्मॉटिक दाब बढ़ जाता है। फलस्वरूप GFR में उसी मात्रा में कमी हो जाती है।

फिल्ट्रेशन फ्रॅक्शन का मूत्रपिंडों में रक्तप्रवाह का सीधा संबंध होता है। मूत्रपिंडों में रक्त प्रवाह जितना ज्यादा उतना ही फिल्ट्रेशन फ्रॅक्शन कम होता है। यानी मूत्रपिंडों का रक्तप्रवाह बढ़ने पर फिल्ट्रेशन फ्रॅक्शन कम होता है। फलस्वरूप कोलॉइड ऑस्मॉटिक दाब कम हो जाता है और GFR में वृद्धि होती है। मूत्रपिंडों के रक्तप्रवाह में कमी होने पर GFR भी कम हो जाता है।

ग्लोमेरूलस में हैड्रोस्टॅटिक दाब :
हमने पहले देखा कि यह दाब फिल्ट्रेशन में मदद करता है। यानी इस दाब में वृद्धि होने पर GFR भी बढ़ जाता है। यह दाब कम होने पर GFR कम हो जाता है। सर्वसाधारण स्थिती में यह दाब 60 mm of Hg होता है। शरीर की सर्वसाधारण आवश्यकताओं के अनुसार इसमें परिवर्तन होता रहता है।

१) आरटरीज का रक्तदा।
२) ऍफरंट आर्टिरिओल में रक्तप्रवाह को होनेवाला विरोध।
३) इफरंट आर्टिरिओल में रक्तप्रवाह को होनेवाला विरोध।

१) आरटरीज में दाब के बढ़ने पर ग्लोमेरूलस में रक्तदाब बढ़ जाता है और फलस्वरूप फिल्ट्रेशन बढ़ जाता है, परन्तु मूत्रपिंडों को सुरक्षित रखनेवाला एक अलग सिस्टम होता है। शरीर में रक्तदाब बढ़ जाने पर भी उसका असर ग्लोमेरूलस में हैड्रोस्टॅटिक दाब पर नहीं होता।

२) ऍफरंट आर्टिरिओल में विरोध बढ़ जाने पर हैड्रोस्टॅटिक दाब कम हो जाता है और फिल्ट्रेशन भी कम होता है। इन आर्टिरिओल के डायलेट हो जाने पर ग्लोमेरूलस का रक्तप्रवाह बढ़ जाता है। फलस्वरूप हैड्रोस्टॅटिक दाब बढ़ने से GFR बढ़ जाता है।

३) इफरंट आर्टिरिओल में विरोध बढ़ जाने पर शुरू में GFR बढ़ता है परन्तु यह विरोध बढ़ते रहने पर GFR कम हो जाता है। इन आर्टिरिओल में विरोध के एक निश्चित सीमा तक बढ़ जाने पर GFR बढ़ता है, परन्तु यदि विरोध नॉर्मल विरोध से तीन गुना बढ़ जाए तो GFR कम हो जाता है। ऐसा क्यों होता है, इसका उत्तर आसान है।

इफंरट आर्टिरिओल में रक्तप्रवाह को होनेवाला विरोध बढ़ जाने पर पहले ग्लोमेरूलस में हैड्रोस्टॅटिक दाब बढ़ता है और GFR बढ़ता है। जैसे-जैसे आर्टिरिओल में विरोध बढ़ता है वैसे-वैसे GFR बढ़ने से रक्त में से द्रव बाहर निकल जाता है और रक्त में प्रोटीनों का कॉन्स्ट्रेशन बढ़ता जाता है। रक्तप्रवाह का विरोध बढ़ते जाने से रक्तप्रवाह कम होता जाता है। कम हो चुके रक्तप्रवाह और प्रोटीनों की बढ़ी हुई मात्रा के कारण आर्टिरिओल में और फलस्वरूप ग्लोमेरूलर केशवाहनियों में कोलॉइड ऑस्मॉटिक दाब बढ़ता है। यह दाब GFR कम करता है।

GFR पर नियंत्रण रखनेवाले विविध घटक हमने देखे। इस लेख के पूर्ण होने से पहले मूत्रपिंडों के रक्तप्रवाह की कुछ विशेषतायें देखते हैं। दोनों मूत्रपिंडों को प्रति मिन्ट ११०० मिली. रक्त आपूर्ति होती है। शरीर के कुल रक्त आपूर्ति की तुलना में यह मात्रा २२ प्रतिशत होती हैं। दोनों मूत्रपिंडों का वजन शरीर के वजन की तुलना में ०.४% होता है। यानी वजन की तुलना में मूत्रपिंडों को होनेवाली रक्त आपूर्ति काफी ज्यादा होती है। इसका कारण यह है कि इसके कारण फिल्ट्रेशन के लिए बड़ी मात्रा में प्लाझ्मा उपलब्ध होता है। मूत्रपिंडों का रक्तप्रवाह और GFR पर असर करनेवाले मूत्रपिंड के बाहर के घटक कौन से हैं, इसकी जानकारी अगले लेख में हम देखेंगे।

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