श्‍वसनसंस्था- ९

पिछले भाग में हमने क्षयरोग के लक्षणों तथा उनके कारण होनेवाले शारीरिक परिवर्तनों का अध्ययन किया। आज के लेख में हम क्षयरोग के कारण होनेवाली अन्य बीमारियों तथा क्षयरोग की जाँच के बारे में अध्ययन करनेवाले हैं (complications & Lab diagnosis of Tuberculosis)

क्षयरोग का पता चलने के बाद जल्द से जल्द उपचार करने पर क्षयरोग पूरी तरह ठीक हो जाता है। परन्तु कभी-कभी कोई भी लक्षण ना दिखायी देने से क्षयरोग दुर्लक्षित किया जाता है अथवा उसका पता ही नहीं चलता। फलस्वरूप उसका व्यवस्थित उपचार नहीं हो पाता, जिससे बीमारी की जटिलता (लेाश्रिळलरींळेपी) बढ़ जाती हैं।

कुछ जटिलताएँ (complications) निम्नलिखित हैं –
१)प्लुरसी (Pleurisy)
फेफड़ों के ऊपरी आवरण को प्लुरा कहा जाता है। क्षयरोग में इस आवरण को संसर्ग हो जाता है और इस आवरण के घर्षण के कारण वेदना (दर्द) होता है। इसे प्लुरसी (Pleurisy) कहते हैं।

२)प्लुरल इफ्युजन (Pleural Effusion)
इसे हम सादी भाषा में फेफड़ों में पानी भर जाना कहते हैं।

३)न्युमोथोरॅक्स

४)एम्पाएमा अथवा पायो न्युयो थोरॅक्स
यह बहुत ही जटिल बीमारी है। एम्पाएमा खतरनाक होती है। क्षयरोग की गांढ़ फेफड़ों के आवरण (Pleura) के अंदर फटती है और वहाँ पर मवाद भर जाता है।

५) क्षयरोग के कारण स्वरयंत्र में भी संसर्ग हो जाता है। इसे ट्युबरक्युलर लॅरीन्जायटीस (Tubercular Laryngitis)कहते हैं।

६) कभी-कभी ज्यादा संक्रमित रोगियों में संसर्गित थूंक को निगलने के कारण पचनसंस्था में भी संसर्ग हो जाता है। इसे (Tubercular Enteritis) कहा जाता है।

७)क्षयरोग के जंतु गुदद्वार के अंदरुनी आवरण से जा सकते हैं। जिसके कारण गुदद्वार के पास घाव हो जाते हैं, जिसे हम इस्चिओरेक्टल अ‍ॅबसेस (Ischiorectal abscess) कहते हैं।

८) जब क्षयरोग के कारण फेफड़ों की अंतर्गत रचना और भाग खराब हो जाते हैं और श्‍वसनसंस्था कमजोर हो जाती है, तभी श्‍वसनक्रिया का क्षीण हो जाना और हृदय के दाहिने हिस्सा क्रियाशून्य हो जाना (Respiratory failure & Right Ventriculal failureइन जैसे दुष्परिणाम होते हैं

९) क्षयरोग के उपचार के बाद फेफड़ों में जो रिक्तस्थान शेष रह जाते हैं, उनमें अस्परगिलस फ्युमिगॅटस (Aspergillus Fumigatus)नामक जीवाणुओं का प्रादुर्भाव होता है और वहाँ पर फंगस जमा हो जाती है।

क्षयरोग की जाँच :
१) क्षयरोग के लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण रोगी में दिखायी देते हैं तो सर्वप्रथम जो जाँच की जाती है, वह है छाती का एक्स-रे (chest x-ray )।

छाती के एक्स-रे में क्षयरोग के दाग दिखायी देते हैं। आजकल यदि सारे एक्स-रे में क्षयरोग के दाग नहीं दिखायी देते तो डिजिटल एक्स-रे किया जाता है। क्षयरोग के साथ-साथ यदि अन्य सूक्ष्म परिवर्तनों की जाँच करनी हो तो सिटीस्कॅन (CT scan) अथवा (MRI scan) किया जाता है।

२) थूँक की जाँच (Sputum examination)
क्षयरोग का संदेह होने पर थूँक की जाँच उपयोगी साबित होती है। कम से कम 3 बार थूँक की जाँच की जाती हैं। थूँक की जाँच सूक्ष्मदर्शी यंत्र पर की जाती है और यदि उसमें क्षयरोग के जंतु दिखायी देते हैं तो क्षयरोग का निदान पक्का माना जाता है।

३) ट्युबरकुलिन टेस्ट
मान्टूक्स टेस्ट (Mantoux Test) की पद्धति इस प्रकार है –
०.१ मिली की साधारण सलायन में प्युरीफाईड़ प्रोटीन डेरीव्हेटीव्ह के १० ट्युबरकुलिन युनिट्स एकत्रित किये जाते हैं और हाथ में अंदरुनी भाग पर त्वचा के नीचे उन्हें प्रविष्ट किया जाता है। २ से ४ दिनों में टीका लगाये गये स्थान की जाँच की जाती है। यदि कम से कम ५ मिमि आकार की सूजन आ जाती है और आसपास के हिस्से में लाली छा जाती है तो इस टेस्ट को पॉझिटिव्ह माना जाता है। परन्तु कुछ कारणों से यह टेस्ट निगेटिव्ह आ सकता है। इसके निम्नलिखित कारण होते हैं-
अ) कखत रक्त रोगियों में रोगप्रतिबंधक शक्ति समाप्त हो जाती है, फलस्वरूप क्षयरोग की जाँच गलत आती है।
ब) ज्यादा उम्र्रवाले रोगियों में
क) यदि रोगी, रोगप्रतिकारक शक्ति को दबानेवाली दवाइयों का सेवन करता होगा तो उदा. स्टीरॉईड्स।
ड)मिलिअरी ट्युबरक्युलोसीस में।
इ) ट्युबरक्युलर मेनींजायटीस के अंतिम चरण में।

४) हीफ टेस्ट (Heaf test or tine test)
इस जाँच को करने के तीन दिन बाद हमें परिणाम का पता चलता है। यदि परिणाम ०-२ स्तर पर होते हैं तो टेस्ट निगेटिव्ह होता है और यदि ३-४ स्तर पर होते हैं तो टेस्ट पॉझिटिव्ह होता है।

५) रक्त की जाँच से IgG IgM जैसी अँटीबॉडीज के स्तर का अध्ययन किया जाता है।उपरोक्त सभी परीक्षणों एवं लक्षणों के आधार पर हम क्षयरोग का निदान कर सकते हैं। (क्रमश:)

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