उत्सर्जन संस्था – मूत्रपिंड – ४

हमारे शरीर में मूत्र कैसे बनता है, इसकी सविस्तर जानकारी हम प्राप्त करनेवाले हैं। पिछले लेख में हमने देखा कि मूत्र मुख्यत: तीन प्रक्रियाओं से बनता है। इसका पहला चरण है छानना अथवा फिल्ट्रेशन क्रिया। इस प्रक्रिया की सविस्तार जानकारी हम प्राप्त करेंगे।

ग्लोमेरूलर फिल्ट्रेशन : ग्लोमेरूलस की केशवाहनियों से बड़ी मात्रा में द्रव बौमन्स कॅपसूल में फिल्टर होता है। शरीर की केशवाहिनियों के गुणधर्म का पालन ये केशवाहनियाँ भी करती हैं। इसके अनुसार रक्त में से प्रोटीन (प्रथिने) और पेशी इनमें से आसानी से नहीं छाने जाते हैं। परंतु रक्त में से पानी, क्षार और विविध जैविक घटक इन केशवाहनियों में से सहजतापूर्वक छाने जाते हैं। बौमन्स कॅपसूल में इस द्रव को ग्लोमेरूलर फिल्ट्रेट कहते हैं। प्लाझ्मा और इस फिल्ट्रेट में कुछ अपवादों को छोड़कर साधर्म्य होता है। रक्त के कॅल्शिअम और फॅटी आम्ल (fatty acids) प्रोटीन्स्‌ से जोड़ दिये जाते हैं। इसका जितना हिस्सा प्रॉटीन से जुड़ा होता है, उसे छोड़कर शेष भाग इस फिल्ट्रेट में आ जाता है। प्लाझ्मा में ५० प्रतिशत कॅल्शिअम प्रोटीन्स से जुड़ा होता है तथा लगभग १०० प्रतिशत फॅटी अ‍ॅसिड्स प्रोटीन्स से जुड़े होते हैं। दिनभर में साधारणत: १८० लीटर ग्लोमेरूलर फिल्ट्रेड तैयार होता है। इसे ग्लोमरूलर फिल्ट्रेशन रेट अथवा GFR कहते हैं।

ग्लोमेरूलस की केशवाहनियों के आवरण शरीर की अन्य केशवाहनियों के आवरण की अपेक्षा अलग होते हैं। शरीर की केशवाहनियों में आवरण के दो परतें होती हैं। १) अंदरूनी एन्डोथेलियम की परत २) बाहरी बेसमेंट की परत। मूत्रपिंडों की इन केशवाहनियों को बाहर की ओर एक अन्य तीसरी परत होती है। इस परत की पेशियों (कोशिकाओं) को पोडोसाइट्‌स कहते हैं।

ग्लोमेरूलर केशवाहिनियों के आवरण ज्यादा Porus (जालीदार) होते हैं। साथ ही इन केशवाहनियों में हैड्रोस्टॅटिक दबाव ज्यादा होता है। फलस्वरूप प्लाझ्मा का द्रव और अन्य घटक आसानी से छाने जाते हैं। ऐसा होने के बावजूद भी प्लाझ्मा से प्रोटीन सहसा नहीं छानी जाती, क्योंकि केशवाहनियों की तीनों परतें इसमें बाधा ड़ालती है। रक्त की प्रोटीन विद्युत ऋण भारित (negatively charged) होती है, जिससे इनके संपर्क में आने पर प्रोटीन को दूर फेंक दिया जाता है। बीच की बेसमेंट परत के छेद छोटे होते हैं। प्रोटीन जैसे बड़े घटक उनमें से नहीं जा सकते हैं। इस प्रकार से तीनों परतें प्रथिनों को छानने का विरोध करती हैं।

यद्यपि ग्लोमेरूलर केशवाहिनियों का आवरण ज्यादा जालीदार होता है। फिर भी वे प्लाझ्मा के सभी घटकों को फिल्टर नहीं करते। प्रत्येक घटक की छानने की क्षमता अथवा फिल्ट्रेबिलिटी उनके आकार और वजन (molecular weight) पर निर्भर होती है। छानने की क्षमता अथवा फिल्ट्रेबिलिटी और उस घटक के मोलीक्युलर वजन की मात्रा हमेशा व्यस्त (inverse) होती है। घटक का मोलेक्युलर वजन जितना ज्यादा, छानने की क्षमता उतनी ही कम होती है। ग्लोमेरूलर केशवाहनियों से पानी आसानी से छाना जाता है। सोडियम, ग्लुकोज जैसे घटक, जिनका मोलीक्युलर वजन पानी के मोलीक्युलर वजन के आसपास होता है, वे पानी की तरह ही आसानी से छाने जाते हैं। अलब्युमिन जैसे प्रथिन, जिनका मोलीक्युलर वजन पानी से कई गुना ज्यादा होता है, वे नहीं छाने जाते।

रक्त के विद्युत ऋण भारित घटक नहीं छाने जाते, क्योंकि ग्लोमेरूलर केशवाहनियों का आवरण ऋणभारित होता है। यह आवरण ऋण भारित घटकों को दूर फेंकता (repels) है।

मूत्रपिंडों की कुछ बीमारियों में मूत्रपिंडों की पेशियों में बदलाव होने से पहले केशवाहनियों के आवरण पर ऋण भार समाप्त हो जाता है। इसे मिनिमल चेंज नेफ्रोपॅथी कहते हैं। ऐसी स्थिति में मूत्र में अलब्युमिन जैसी प्रोटीन छानी जाती है और मूत्र में से बाहर निकल जाती है।

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