डॉ. वसंत गोवारीकर

मौसम विज्ञान शास्त्र (Meterology Science) में बहुमूल्य योगदान

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्‍चात् की अवधि में अनेक क्षेत्रों में तेज़ी से बदलाव आया। खेती, खेती बाड़ी की प्रक्रिया से संबंधित ‘हरितक्रांति’, वहीं दुग्ध एवं दुग्धजन्य पदार्थों से संबंधित ‘धवलक्रांति’ हुई। साथ ही दोनों ही क्रांतियों के पूरक ऐसे संशोधन एक ओर शुरू हो चुके थे।

भारत के ग्रामीण क्षेत्र में जन्म लेनेवाले एक युवा वैज्ञानिक यह संशोधन कर रहे थे। आगे चलकर इस संशोधन के कारण ही भारतीय मौसम विभाग को मौसम का निश्‍चित तौर पर अनुमान करना संभव हो सका। मौसम विज्ञान शास्त्र (Meterology Science) में बहुमूल्य योगदान देनेवाले ये शास्त्रज्ञ थे, डॉ. वसंत गोवारीकर। डॉ. गोवारीकर के व्यक्तित्व के संबंध में कहा जाता है कि उन्हें देखने पर पता चल जाता है कि वे एक संशोधक हैं, पर इसके साथ ही वे एक दार्शनिक, चिंतक, प्राध्यापक भी प्रतीत होते हैं।

२५ मार्च १९३३ के दिन पुणे में जन्मे इस संशोधनकर्ता की उपाधि प्राप्त करने तक की संपूर्ण शिक्षा कोल्हापुर में हुई। इसके पश्‍चात् कुछ वर्षों तक अपने घर के फोटो स्टुडिओ का व्यवसाय संभालते हुए कथा एवं काव्य लेखन भी उन्होंने किया। कुछ समय तक उन्होंने शक्कर के कारखाने में भी नौकरी की। इन सबके साथ स्वयं की एम.एस.सी. की उपाधि भी उन्होंने प्राप्त की।

बचपन से ही तकनीकी ज्ञान प्राप्त करने में उन्हें अधिक रुचि थी। महात्मा गांधी के चरखे से सूत तैयार हो जाते ही वह अपने आप ही क्रमानुसार बद्ध होता चला जायेगा, इस प्रकार की तकनीक उन्होंने विकसित की। इस कार्य के प्रति उन्हें उस समय के चरखा कमिशन की ओर से कौतुकास्पद पत्र ही भेजा गया था। उम्र के तेरहवे वर्ष उन्होंने हेन्री फोर्ड नामक संशोधक एवं उत्पादक की ओर से मोटर के तकनीकी ज्ञान से संबंधित कुछ जानकारी मँगवाई थी और हेन्री फोर्ड ने उनके लिए अपने स्वयं के खर्च से कुछ पुस्तकें भी भेजी थीं। शिक्षा पूर्ण हो जाने पर डॉ. गोवारीकर ने इंग्लैंड के गार्नर नामक संशोधनकर्ता को ‘प्रवाही पदार्थ में होनेवाली उष्णता एवं व्हॉल्यूम पर नियंत्रण’ इससे संबंधित अपना निष्कर्ष उन्हें बतला दिया। इसपर गार्नर ने गोवारीकर को बुलवा तो लिया ही, साथ ही केमिकल इंजीनियरिंग की उपाधि केवल छह महिनों में ही प्राप्त करने में उनकी मदद भी की। गोवारीकर ने आगे चलकर गार्नर के मार्गदर्शन में डॉक्टरेट की उपाधि भी प्राप्त कर ली। इन दोनों संशोधकों द्वारा मिलकर किए गए काम को ही ‘गार्नर – गोवारीकर थेअरी’ कहा जाता है।

इसके पश्‍चात् ऑक्सफर्ड-केंब्रिज महाविद्यालय में पी.एच.डी. के परीक्षक के रूप में भी अल्पकाल तक उन्होंने काम किया। अमरीका के एक रिसर्च सेंटर में क्षेपणास्त्र से संबंधित मोटर इस विषय में संशोधन करने के लिए उन्हें बुला लिया गया।

१९६५ के पश्‍चात् ‘टाटा फंडामेंटल रिसर्च सेंटर’ नामक इस संस्था में उन्होंने ज्येष्ठ संशोधक विक्रम साराभाई के साथ मिलकर काम करना शुरू कर दिया। इस दौरान उन्होंने पॉलिमर केमिस्ट्री नामक विषय का गहराई से अध्ययन किया। फिर केरल के थुंबा नामक केन्द्र में काम करनेवाले लगभग सात हजार शास्त्रज्ञों के प्रमुख के रूप में डॉ.गोवारीकर काम की देख-रेख स्वयं ही कर रहे थे। १७ अप्रैल १९८३ में एस.एल.व्ही -३ उपग्रह अवकाश में छोड़े गए। इस प्रकल्प का नेतृत्व डॉ. अब्दुल कलाम के पास था एवं डॉ. गोवारीकर ने अपने एक मुख्य मददगार को लेकर सारा कारोबार सँभाला था।

डॉ. गोवारीकर को डि.लीट. के साथ ही डॉक्टरेट की सम्मानित उपाधि पाँच-छह महाविद्यालयों ने प्रदान की है। वडोदरा (उस समय का बड़ौदा) महाविद्यालय का ‘नायक’ यह सम्मान, पद्मश्री यह भारत सरकार की ओर से नागरी सम्मान उन्हें प्राप्त हुआ। इस दौरान उनकी अनेक पुस्तकें, सैकड़ों शोध निबंध प्रसिद्ध हुए। भारत सरकार के तकनीकी ज्ञान विभाग के सचिव पद का कारोबार उन्हें ही सौंप दिया गया।

मौसम संबंधी अनुमान अचूक कैसे दर्शाया जा सकेगा, नागरी क्षेत्र में जमा होनेवाले कचरे का ईंधन के रूप में उपयोग कैसे किया जा सकेगा, शहरों के लिए स्वच्छता गृह कैसे उपलब्ध किया जा सकता है, तकनीशन, उद्योजक आदि को औद्योगिक क्षेत्र में और भी अधिक अच्छा काम कैसे किया जा सकेगा, अधिक से अधिक मनुष्यबल का औद्योगिक क्षेत्र में किस तरह से उपयोग किया जाना चाहिए इस तरह से विविध पहलुओं पर अध्ययन करके उसके अनुसार योजानाओं पर अमल करने की काफ़ी कोशिश की। १४ वें कुलगुरु के रूप में पुणे के महाविद्यालय में कुलगुरु के पद पर आसीन रह चुके डॉ. गोवारीकर उस समय के ‘सायन्स काँग्रेस’ के भी अध्यक्ष थे। अनेक समितियों एवं संस्थाओं के पदाधिकारी के रूप में वे उम्र के पचहत्तरवे वर्ष भी कार्यरत हैं। भारत यह उष्ण कटिबंधीय देश है? यहाँ पर चार महीने मिलनेवाला बारिश का अमूल्य पानी यह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है, यह जानकर डॉ. गोवारीकर ने बारिश के संबंध में अचूक अनुमान करने के लिए ही एक तकनीक विकसित की। मौसम विज्ञान शास्त्र का आधार लेकर बारिश का काफ़ी कुछ अंदाज अचूक साबित होने के कारण डॉ. गोवारीकर को राष्ट्रीय एवं आन्तरराष्ट्रीय स्तरों पर मान्यता प्राप्त हुई है।

अंतरिक्ष विज्ञान, पॉलिमर केमिस्ट्री का गहराई तक अध्ययन कर साथ ही बारिश का अचूक अनुमान दर्शानेवाले वैज्ञानिक के रूप में वे मशहूर हैं। जल, किसानों की समस्या तथा मौसम के विपरित परिस्थितियाँ इन समस्याओं को हल करने में अच्छी सफलता प्राप्त किये हुए वैज्ञानिक के रूप में डॉ. गोवारीकर का नाम सदैव स्मरण किया जाता रहेगा।

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