आतंकियों के साथ-साथ उन्हें पनाह देनेवालों के खिलाफ विश्‍व को एकजुट होना चाहिए – सुरक्षा परिषद में भारत का आवाहन

संयुक्त राष्ट्र संघ – काबुल के हवाई अड्डे पर हुए आत्मघाती विस्फोट और आतंकियों की गोलीबारी से मृतकों की संख्या १०० से अधिक हुई है। इसके बाद अमरीका के साथ अन्य देशों ने अफ़गानिस्तान से अपने सैनिक एवं नागरिकों को स्वदेश पहुँचाने की गतिविधियाँ तेज़ की हैं। इन आतंकी हमलों की निंदा पूरे विश्‍व में हो रही है। संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता कर रहे भारत ने इन हमलों की निंदा की है। आतंकवादी और उन्हें आश्रय देनेवालों के विरोध में पूरे विश्‍व को एकजुट होने की जरुरत का संदेश काबुल के इन हमलों से प्राप्त हुआ, ऐसा बयान भारत के राजदूत तिरूमूर्ति ने किया है।

सुरक्षा परिषद में बोलते समय भारत के राजदूत तिरूमूर्ति ने काबुल के हवाई अड्डे पर हुए आतंकी हमलों का कड़े शब्दों में निषेध किया। साथ ही आतंकवाद और आतंकियों को आश्रय देनेवालों के खिलाफ पूरे विश्‍व को एकजुट होना आवश्‍यक है। यह संदेश इस हमले से पूरे विश्‍व को मिला है, ऐसा कहकर तिरूमूर्ति ने सीधे नाम लिए बगैर तालिबान समेत अन्य आतंकी संगठनों का समर्थन कर रहे पाकिस्तान को लक्ष्य किया। तथा भारत के विदेश मंत्रालय ने भी अफ़गानिस्तान में सत्ता स्थापित करने की तैयारी में तालिबान को स्वीकृति देने का मसला ही खारिज़ कर दिया।

‘अफ़गानिस्तान की स्थिति पर भारत की नज़र है। फिलहाल अफ़गानिस्तान में उपस्थित भारतीय नागरिकों की सुरक्षा और उन्हें सुरक्षित बाहर निकालने के लिए सबसे अधिक प्राथमिकता दी जा रही है। अफ़गानिस्तान की स्थिति को लेकर अभी कुछ भी स्पष्ट नहीं हुआ है। इसलिए तालिबान को स्वीकृति प्रदान करने का मुद्दा विचाराधीन भी नहीं है’, यह बात विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने स्पष्ट की। क्या भारत तालिबान को स्वीकृति प्रदान करेगा, यह सवाल भारतीय माध्यमों के साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर की चर्चा में भी उठा है। इस पृष्ठभूमि पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता का खुलासा अहमियत रखता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ दिन पहले ही आतंक की ताकत पर खड़ा रहनेवाला साम्राज्य ज्यादा समय तक टिक नहीं सकता, ऐसा कहा था। उनका रुख अफ़गानिस्तान की सत्ता आतंक के बलबूते पर हासिल करनेवाली तालिबान की ओर ही था, यह दावा किया जा रहा है। इसके बाद विदेशमंत्री एस.जयशंकर ने भी तालिबान को स्वीकृति नहीं मिलेगी, यह संकेत दिए थे। अभी भी तालिबान ने अपनी चरमपंथी हिंसक नीति का त्याग नहीं किया है। इस वजह से तालिबान की हुकूमत को मंजूरी प्रदान करने का सवाल ही नहीं उठता, ऐसा भारत का कहना है। अन्य लोकतांत्रिक देश भी इसी तरह की भूमिका अपना रहे हैं।

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