‘डीप ओशन मिशन’ को केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी

‘डीप ओशन मिशन’नई दिल्ली – भारत के समुद्री क्षेत्र में मौजूद खनिज संपत्ति का शोध, खनन और इससे संबंधित सर्वेक्षण एवं अध्ययन के लिए तैयार किए गए ‘डीप ओशन मिशन’ को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार के दिन मंजूरी प्रदान की। भारतीय समुद्री सीमा के भीतर गहरे समुद्र में खनिजों के भंड़ार एवं भारी मात्रा में जैव विविधता मौजूद है। इसका अभी पर्याप्त मात्रा में अध्ययन नहीं हुआ है। इस वजह से ‘डीप ओशन मिशन’ यानी गहरे समुद्र में शोधकार्य करने की मुहिम का प्रस्ताव पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने पेश किया था। इस प्रस्ताव को मंजूरी प्राप्त होने से केंद्र सरकार की ‘ब्लू इकॉनॉमी’ यानी नील अर्थव्यवस्था का विकास करने से संबंधित नीति को गति प्राप्त होगी, यह दावा किया जा रहा है। 

‘डीप ओशन मिशन’ भारत की एक महत्वाकांक्षी योजना है और देश की नील अर्थव्यवस्था को बल प्रदान करना ही इसका प्रमुख उद्देश्‍य है। गहरे समुद्र में खनन एवं सर्वेक्षण की मुहिम चलाने की प्रगत तकनीक फिलहाल विश्‍व के मात्र पांच देशों ने प्राप्त की है। इनमें अमरीका, रशिया, फ्रान्स, जापान और चीन का समावेश है। तीन तरफ लंबे समुद्री तट और हिंद महासागर क्षेत्र में प्राकृतिक प्रभाव वाला भारत इस मोर्चे पर पीछे ना छूट जाए, इस नज़रिये से ‘डीप ओशन मिशन’ को तैयार किया गया है। इससे गहरे समुद्र में मुहिम चलाने की तकनीक वाला भारत विश्‍व का छठा देश बनेगा, यह विश्‍वास केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर ने व्यक्त किया।

छह हज़ार किलोमीटर तक के गहरे समुद्र में खनन के लिए मानव को पहुँचाने में सक्षम पनडुब्बियों का निर्माण, सेंसर और उपकरणों का इस मुहिम के तहत विकास किया जाएगा। गहरे समुद्र में खनन करने के लिए आवश्‍यक तकनीक विकसित करने के लिए शीर्ष संस्थाओं, निजी उद्योगों से भी सहयोग प्राप्त किया जाएगा। समुद्री साधन संपत्ति के खोज, सर्वेक्षण एवं खनन के लिए आवश्‍यक तकनीक का विकास करने के साथ ही समुद्री जैविक विविधता के लिए प्रगत मरीन स्टेशन स्थापित करने तक के सभी काम इस मुहिम के तहत किए जाएँगे। 

‘डीप ओशन मिशन’गहरे समुद्र में सर्वेक्षण एवं शोध कार्य की मुहिम चलाकर ऊर्जा के स्रोत भी तलाशे जाएँगे। समुद्र के पानी से मीठा पानी प्राप्त करने के प्रकल्प भी चलाए जाएँगे। साथ ही समुद्री क्षेत्र की जैविक विविधता का व्यापक अभ्यास भी किया जाएगा। इसके अलावा समुद्री क्षेत्र में हो रहे मौसम के बदलाव के असर का अध्ययन करना और इसके ज़रिये भविष्य का अनुमान व्यक्त करने जैसी सेवा भी इसी मुहिम के तहत विकसित की जाएगी, यह जानकारी केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर ने प्रदान की।

गहरे समुद्र की मुहिम अगले पांच वर्षों के दौरान अलग अलग चरणों में चलाई जाएगी। इसके लिए तकरीबन ४,०७७ करोड़ रुपयों की लागत आएगी और वर्ष २०२४ तक यानी पहले तीन वर्षों में इस मुहिम के लिए २,८२३ करोड़ रुपये खर्च होंगे, ऐसा जावडेकर ने कहा। भारत की ३० प्रतिशत जनसंख्या समुद्री तट पर बसी है। इस क्षेत्र में पर्यटन, मत्स्य व्यवसाय, जलीय फसल और समुद्री मार्ग से होनेवाला व्यापार देश की अर्थव्यवस्था का बड़ा आधार हैं। लेकिन, ९० प्रतिशत गहरे समुद्री क्षेत्र में अभी भी शोधकार्य नहीं हुआ हैं। समुद्र मात्र अन्न, औषधी वनस्पती, खनिज, ऊर्जा का स्रोत नहीं है, बल्कि पृथ्वी के जीवन का प्रमुख आधार भी है। इस वजह से समुद्री क्षेत्र की अहमियत ध्यान में रखकर नील अर्थव्यवस्था की ओर ध्यान दिया जा रहा है। समुद्र के गहरे पानी में चलाई जानेवाली मुहिम इस नज़रिये से काफी अहम साबित होगी, ऐसा केंद्रीय मंत्री जावडेकर ने कहा।

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