संयुक्त राष्ट्र संघ की मानव अधिकार संगठन में अलोकतांत्रिक देशों की बहुसंख्या हैं – ‘यूएन वॉच’ के कार्यकारी संचालक की फटकार

तेल अवीव – ‘चीन, क्युबा, पाकिस्तान जैसे मानव अधिकारों का उल्लंघन कर रहे देश मानव अधिकार संगठन में चुनकर पहुँचना यानी स्पष्ट तौर पर अपराधि अल कैपो ने और उसके गिरोह को अपराधिक मामलों के विरोध में कार्रवाई करने का नियंत्रण सौंपने जैसा है। ऐसे देशों की इस संगठन में हो रही नियुक्ती जनतांत्रिक देश और वहां की जनता का विश्वासघात हैं’, ऐसी तीखी आलोचना ‘यूएन वॉच’ के कार्यकारी संचालक हिलेल न्यूअर ने की है। राष्ट्रसंघ की मानव अधिकार संगठन के ७० प्रतिशत सदस्य देशों में जनतंत्र ही नहीं हैं, इसपर भी न्यूअर ने ध्यान आकर्षित किया।

पिछले शतक में अमरीका के शिकागो शहर में अल कैपो नामक गुनाहगार का बड़ा आतंक था। अल कैपो और उसके गिरोह ने अमरिकी सुरक्षा यंत्रणा की भागादौड़ी की थी। अल कैपो के दौर में अमरीका की दो पीढ़ियां बरबाद होने का दावा किया जाता है। ऐसे अपराधि की तुलना चीन, पाकिस्तान, क्युबा एवं अन्य तानाशाही देशों से करके न्यूअर ने मानव अधिकार संगठन के बदलाव की ओर पूरे विश्व का ध्यान आकर्षित किया हैं।

पांच दिन पहले ही संयुक्त राष्ट्रसंघ की मानव अधिकार संगठन के सदस्य देशों के लिए मतदान हुआ। इस संगठन पर चीन, पाकिस्तान, क्युबा, कतर, सुड़ान, इरिट्रिया, अल्जेरिया, सोमालिया, कझाकस्तान, वियतनाम और बांगलादेश का चयन हुआ ता। लेकिन, यूएन वॉच के कार्यकारी संचालक न्यूअर ने मानव अधिकार संगठन में इन देशों का हुआ चयन सवाल खड़ा करता हैं, ऐसी आलोचना की थी।

इन देशों में लोकतंत्र नहीं हैं। साथ ही इन देशों में मानव अधिकारों का उल्लंघन सबसे बड़ी चिंता का विषय है। इसके बावजूद राष्ट्र संघ की मानव अधिकार संगठन पर ऐसे तानाशाही देशों की नियुक्ती होना अन्य जनतांत्रिक देशों की सुरक्षा के लिए गंभीर बात है, ऐसा न्यूअर ने एक समाचार चैनल को दिए साक्षात्कार में स्पष्ट किया। साथ ही मानव अधिकार संगठन ईरान और तानाशाही व्यवस्था के सदस्य देशों में जारी मानव अधिकारों के हनन को अनदेखा करके लगातार इस्रायल को लक्ष्य कर रहे हैं, यह आरोप भी न्यूअर ने लगाया।

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