भारतीय अर्थव्यवस्था आश्वासक विकासदर के साथ प्रगति करेगी – केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारामन

मुंबई – 2023 के वित्तीय वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था 7.4 प्रतिशत की दर से विकास करेगी। उसके अगले साल भी यही विकासदर कायम रहेगी, ऐसा केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारामन ने कहा है। आन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोश और जागतिक बैंक ने यह निष्कर्ष दर्ज़ किया था। रिज़र्व बैंक की जानकारी भी उसकी पुष्टि करनेवाली है, यह बताकर, आनेवाले समय में भारत बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सर्वाधिक विकासदर से प्रगति करनेवाला देश बनेगा, ऐसा विश्वास वित्तमंत्री ने व्यक्त किया। मुंबई में आयोजित एक कार्यक्रम में वित्तमंत्री सीतारामन बात कर रहीं थीं।

युक्रेन के युद्ध के वजह से दुनिया के सामने एक और भीषण संकट खड़ा हुआ है। इससे सप्लाई चेन बाधित हुई होकर, उत्पादन पर इसका विपरित असर हो रहा है। गरीब एवं विकासशील देशों से लेकर विकसित अथवा अमीर माने जानेवाले देशों को भी यह समस्या सता रही है। इन देशों समेत जागतिक अर्थव्यवस्था मंदी के भँवर में फँसने की गहरी संभावना जताई जाती है। लेकिन भारत को मंदी का ख़तरा संभव नहीं है, ऐसा अर्थक्षेत्र की कुछ संस्थाएँ बता रही हैं। लेकिन जागतिक स्तर पर की उथलपुथलों का भारत के आर्थिक प्रदर्शन पर असर हो सकता है, इसका एहसास केंद्रीय वित्तमंत्री ने करा दिया।

आन्तर्राष्ट्रीय स्तर की गतिविधियों का असर देश की निर्यात पर हो रहा है। आर्थिक विकास की गति धीमी पड़ जाने के कारण, जागतिक स्तर पर माँग (डिमांड) में गिरावट आयी है। इसका परिणाम भारत की निर्यात पर हुआ होकर, निर्यात से जुड़े उद्योग एवं क्षेत्र इससे बाधित होने की बात पर सीतारामन ने ग़ौर फ़रमाया। ऐसे चुनौतीभरे दौर में केंद्र सरकार, इस संकट का मुक़ाबला करनेवालों से चर्चा करके इसका हल ढूँढ़ने की कोशिश कर रही है, ऐसी जानकारी वित्तमंत्री सीतारामन ने दी।

इसी बीच, दुनियाभर में जारी घटनाओं के मद्देनज़र, उनका भारत पर कुछ भी असर नहीं होगा ऐसा मानकर चलकर हम बेख़बर नहीं रह सकते, ऐसा भी यह भी सीतारामन ने आगे कहा। जनता को मुफ़्त में सुविधाएँ प्रदान करने के लोकप्रिय मग़र घातक फ़ैसलों के दूरगामी परिणाम संभव हैं, ऐसा स्पष्ट बयान इस समय सीतारामन ने किया। ऐसे फ़ैसलों का तनाव अन्य बातों पर आता है, ऐसा सीतारामन ने आगे कहा। अर्थक्षेत्र के विशेषज्ञ भी यह निष्कर्ष दर्ज़ कर रहे हैं कि श्रीलंका और भारत के अन्य पड़ोसी देशों में ऐसे लोकप्रिय फ़ैसलों के ही विदारक परिणाम देखने को मिल रहे हैं। आर्थिक अनुशासन का पालन करने के अलावा और कोई चारा ही नहीं है, अन्यथा संकट के दौर में अर्थव्यवस्था ढ़ह जायेगी, इसका एहसास ये अर्थविशेषज्ज्ञ करा दे रहे हैं।

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