‘एससीओ’ का सदस्य होने के लिए सौदी अरब की मंजूरी

रियाध/बीजिंग – चीन की पहल से स्थापीत किए गए ‘शांघाय को-ऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन’ (एससीओ) का हिस्सा होने के लिए सौदी अरब ने मंजूरी दी है। मंगलवार को सौदी में आयोजित मंत्रिमंड़ल की बैठक में ‘एससीओ’ में भागीदार देश के तौर पर शामिल होने का प्रस्ताव पारित होने की जानकारी सौदी की सरकारी वृत्तसंस्था ने दी। ‘एससीओ’ के समावेश का ऐलान करने के बाद सौदी की शीर्ष ईंधन कंपनी ‘अराम्को’ ने चीन में अरबों डॉलर्स निवेश करने का ऐलान किया। सौदी अरब और चीन की इस बढ़ती नज़दिकियों से अमरिकी दायरे में बेचैनी निर्माण होने का दावा माध्यम कर रहे हैं।

साल २००१ में चीन और रशिया ने मिलकर शांघाय को-ऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन-एससीओ का गठन किया था। राजनीतिक, आर्थिक, ऊर्जा, प्रौद्योगिकी, सांस्कृति सहयोग के आधार पर खड़ी की गई इस संगठन के आठ प्रमुख सदस्य देश हैं। इन देशों में रशिया, चीन, भारत, कझाकस्तान, किरगिझिस्तान, ताजिकिस्तान, उझबेकिस्तान और पाकिस्तान का समावेश हैं। ईरान, बेलारूस, अफ़गानिस्तान और मंगोलिया इन चार देशों को इस संगठन में निरीक्षक के तौर पर स्थान प्रदान हुआ है। वहीं, आठ सहयोगी देशों को ‘डायलॉग पार्टनर’ का दर्जा बहाल किया गया है। इन देशों में तुर्की, इजिप्ट, कतार, आर्मेनिया, अज़रबैजान, कंबोडिया, श्रीलंका और नेपाल का समावेश है। सौदी अरब ने प्रस्ताव पारित करने से ‘डायलॉग पार्टनर’ बने देशों की संख्या नौ हुई है।

पिछले कुछ सालों में क्षेत्रीय सुरक्षा की पृष्ठभूमि पर एससीओ को बड़ी अहमियत प्राप्त हुई है। चीन इसका इस्तेमाल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए एवं अमरीका और पश्चिमी देशों की नीति को चुनौती देने के लिए करता है। पिछले वर्ष ईरान ने ‘एससीओ’ की सदस्यता के निवेदन पर हस्ताक्षर किए थे। परमाणु समझौता और प्रतिबंधों का मुद्दा चर्चा में होने की स्थिति में ही ईरान का इस गुट में शामिल होना ध्यान आकर्षित कर रहा था। ईरान का ‘एससीओ’ में शामिल होना रणनीतिक स्तर की काफी बड़ी गतिविधि होने का दावा भी अंतरराष्ट्रीय विश्लेषकों ने किया था।

इसके बाद अब सौदी अरब ने ‘एससीओ’ का हिस्सा होना भी ध्यान आकर्षित कर रहा है। पिछले महीने सौदी में नियुक्त रशिया के राजदूत सर्जेई कोझ्लोव ने यह बयान किया था कि,  ‘एससीओ’ और ‘ब्रिक्स’ में शामिल होने के लिए सौदी अरब उत्सुक हैं। इसके बाद चीन की मध्यस्थता से सौदी अरब और ईरान ने राजनीतिक संबंधों में सुधार करने को मंजूरी प्रदान करने की बात भी सामने आयी थी।

पिछले कुछ सालों में सौदी अरब अमरीका को छोड़कर रशिया और चीन से नज़दिकीयां बढ़ाने की कोशिश कर रहा हैं। अमरीका का बायडेन प्रशासन सौदी समेत खाड़ी के अन्य मित्र देशों को अनदेखा कर रहा हैं और यही कारण है की सौदी अब अपना रूख रशिया और चीन की ओर कर रहा हैं। सौदी अरब के क्राउन प्रिन्स मोहम्मद बिन सलमान ने ईंधन क्षेत्र के सहयोग की पृष्ठभूमि को आगे करके रशिया और चीन के ताल्लुकात बढ़ाने की ओर कदम बढ़ाए हैैं। पिछले साल चीन के राष्ट्राध्यक्ष शी जिनपिंग ने किया सौदी का दौरा इन गतिविधियों का प्रमुख चरण समझा जाता है। इस दौरे में जिनपिंग के साथ ‘एससीओ’ के मुद्दे पर चर्चा होने की जानकारी सौदी के सुत्रों ने साझा की है। जिनपिंग ने इस दौरे में ईंधन का कारोबार युआन से करने के लिए आवाहन किया था और इसपर सौदी ने जताया समर्थन अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान आकर्षित कर रहा था।

ईंधन के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी सौदी और चीन की नज़दिकियां बढ़ने से अमरिकी दायरे में काफी बेचैनी फैली है। अमरीका की शीर्ष पत्रिका ‘फॉरिन पॉलिसी’ ने कुछ दिन पहले जारी किए एख लेख में सौदी और चीन की बढ़ती नज़दिकियां अमरीका के लिए ‘वेकअप कॉल’ होने का बयान किया था। वहीं, न्यूज वेबसाईट ‘हिल’ ने अपने लेख से ‘रेड फ्लैग’ की चेतावनी दी थी। इस पृष्ठभूमि पर सौदी ने ‘एससीओ’ में शामिल होने को मंजूरी देना अहम घटना समझी जाती है।

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