भारत और चीन के साथ रणनीतिक सहयोग बढ़ाने का रशिया का ध्येय

मास्को – भारत और चीन के साथ रणनीतिक सहयोग स्थापित करना, रशिया की सुरक्षा संबंधी नीति का प्रमुख ध्येय बना है। शनिवार के दिन रशिया ने जारी किए दस्तावेज से यह बात स्पष्ट हुई है। इससे पहले अमरीका, जापान और ऑस्ट्रेलिया की ‘क्वाड’ संगठन में भारत के समावेश को लेकर रशिया ने नाराज़गी व्यक्त की थी। यह चीन विरोधी संगठन है और इसमें भारत शामिल ना हो, ऐसा रशिया का कहना है। इसके बजाय चीन और रशिया के साथ सहयोग को भारत प्राथमिकता दे, यह उम्मीद रशिया ने खुलेआम व्यक्त की थी। रशिया की नीति में चीन को दी गई विशेष अहमियत भारत की चिंता का मुद्दा बना था। लेकिन, चीन के साथ-साथ रशिया भारत से सहयोग को उतनी ही अहमियत दे रही है, यह संकेत रशिया की सुरक्षा संबंधी नीति से प्राप्त हो रहे हैं।

रशिया की सुरक्षा संबंधी ध्येय और नीति स्पष्ट करनेवाले दस्तावेज शनिवार के दिन जारी किए गए। रशियन वृत्तसंस्था स्पुटनिक ने जारी किए इन दस्तावेजों में भारत से जुड़ी अहम जानकारी है। रशिया की विदेश नीति के सामने भारत एवं चीन के साथ सहयोग बढ़ाने का ध्येय है। रशियन राष्ट्राध्यक्ष व्लादिमीर पुतिन की मंजूरी प्राप्त इस नीति के ज़रिये रशिया ने अपने ध्येय और नीति के साथ ही अपनी उम्मीदें भी व्यक्त करने के संकेत प्राप्त हो रहे है। भारत और चीन इन दोनों को रशिया के सहयोग का संदेशा देने की कोशिश की गई है। साथ ही अंतरराष्ट्रीय कारोबार में अमरीका के डॉलर पर निर्भरता घटाने के लिए रशिया अपने सहयोगी देशों के साथ कोशिश करेगा, यह बात भी इसमें दर्ज़ है।

इससे पहले रशिया ने चीन के साथ सलोखा स्थापित करने की सलाह भारत को प्रदान की थी। बीते वर्ष लद्दाख के ‘एलएसी’ पर निर्माण हुए तनाव की पृष्ठभूमि पर यह विवाद अधिक बिगड़ने ना देनेवाला परिपक्व नेतृत्व भारत और चीन को प्राप्त हुआ है, यह बयान रशिया के राष्ट्राध्यक्ष व्लादिमीर पुतिन ने किया था। तभी, रशिया के विदेशमंत्री सर्जेई लैवरोव ने भारत के ‘क्वाड’ में शामिल होने पर नाराज़गी व्यक्त की थी। अमरीका की पहल से गठित ‘क्वाड’ संगठन चीन और रशिया का विरोधी होने का बयान रशियन विदेशमंत्री ने किया था। इसी के साथ ‘एलएसी’ पर जारी विवाद में स्पष्ट तौर पर भारत के पक्ष में खड़े होने से रशिया ने इन्कार भी किया था।

अगले दिनों में विदेशमंत्री लैवरोव ने, हमने भारत के विषय में किए बयानों का विपर्यास किया गया, यह कहकर इस पर अफसोस व्यक्त किया था। लेकिन, ‘क्वाड’ के मुद्दे पर एवं भारत के चीन से संबंधों के मुद्दे पर रशिया की नीति भारत से सुसंगत ना होने की बात भी इससे स्पष्ट हुई थी। इससे द्विपक्षीय सहयोग पर असर नहीं पड़ेगा, यह गारंटी भारत एवं रशिया द्वारा दी जा रही है। फिर भी भारत के चीन के साथ जारी तनाव का लाभ अमरीका और यूरोपिय देश उठाएँगे और इसका रशिया-भारत संबंधों पर भी असर पड़ेगा, यह चिंता रशिया को सता रही है।

इशी बीच रशिया के लिए चीन बड़ा अहम मित्रदेश बना है और अमरीका एवं यूरोपिय देशों ने रशिया पर लगाए प्रतिबंधों की वजह से चीन के साथ जारी व्यापारी सहयोग रशिया के लिए बड़ा अहम है। इसका प्रभाव रशिया की विदेश नीति पर होने लगा है और अब तक भारत के साथ ड़टकर खड़े रहनेवाली रशिया को इस बार चीन को ठोकर देना कठिन हो रहा है।

ऐसी स्थिति में भी रशिया ने चीन की नाराज़गी की परवाह किए बगैर भारत को ‘एस-४००’ हवाई सुरक्षा यंत्रणा प्रदान की थी। साथ ही भारत के साथ जारी रक्षा सहयोग आगे भी बरकरार रहेगा, यह ऐलान भी रशिया ने किया था। लेकिन, चीन के साथ जारी आर्थिक और व्यापारी सहयोग को अधिक अहमियत देना अब रशिया की ज़रूरत बनी हुई है। इसी के प्रभाव में रशिया अब भारत को चीन के साथ सलोखा स्थापित करने की सलाह दे रही है।

लेकिन, चीन का विस्तारवाद ही भारत के साथ जारी तनाव का मुख्य कारण है और इस मोर्चे पर चीन को समझाना फिलहाल रशिया की क्षमता के बाहर का मुद्दा है। ऐसी स्थिति में भारत और चीन के साथ संबंधों का संतुलन बनाए रखना अब रशिया की विदेश नीति के सामने बड़ी चुनौती साबित हो सकता है।

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