प्रधानमंत्री मोदी नेपाल के दौरे पर

नई दिल्ली – प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेपाल दौरे की शुरूआत सोमवार से हो रही है। भारत और नेपाल के संबंधों की अन्य किसी भी देश के संबंधों से तुलना नहीं की जा सकती, ऐसा इस दौरे से पहले प्रधानमंत्री ने कहा है। दोनों देशों की जनता का संपर्क और संवाद का दूसरा उदाहरण मिलना कठिन है और समय की कसौटी पर दोनों देशों के संबंध बरकरार रहे हैं, इसका अहसास भी प्रधानमंत्री ने अपने इस नेपाल दौरे से पहले कराया। भारत को नेपाल पर चीन का वर्चस्व कम करके अपना प्रभाव बढ़ाने में सफलता मिलने का दावा कुछ विश्लेषक कर रहे हैं। खास तौर पर पाकिस्तान के विश्लेषकों ने प्रधानमंत्री मोदी के नेपाल दौरे से पहले इस तरह के अनुमान दर्ज़ किए हैं।

who-improvementsबुद्धजयंती के अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी नेपाल के लुंबिनी में स्थित मायादेवी मंदिर जाएँगे। साथ ही नेपाल में भारत द्वारा जारी ‘हेरिटेज सेंटर’ के शिलान्यास के समारोह में भी प्रधानमंत्री मोदी शामिल होंगे। इस दौरे में नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देवबा से प्रधानमंत्री मोदी की द्विपक्षीय चर्चा होगी। इस द्विपक्षीय चर्चा की ओर दक्षिणी एशियाई क्षेत्र के देशों की नज़रें लगी हैं। शेर बहादुर देवबा ने अप्रैल में ही भारत का दौरा किया था। इस दौरान दोनों देशों की चर्चा के मुद्दों को आगे बढ़ाया जाएगा, ऐसा दावा किया जा रहा है। विशेषकर दोनों देशों का जल-बिजली प्रकल्प और कनेक्टिवीटी से संबंधित प्रकल्पों को लेकर भारत के प्रधानमंत्री खास उत्सुकता दिखा रहे हैं।

भारत और नेपाल के सांस्कृतिक एवं शिक्षा क्षेत्र में प्रधानमंत्री मोदी की इस यात्रा में सहयोग समझौते होंगे, यह जानकारी साझा की जा रही है। इसी बीच नेपाल में पहले सरकार बनानेवाले के.पी.शर्मा ओली की सरकार ने चीन के संबंधों को खास अहमियत दी थी। नेपाल के संबंधों को पूरी तरह से अनदेखा करके चीन को अति अहमियत देने की ओली सरकार की नीति का बुरा असर नेपाल को भुगतना पड़ा। इसका लाभ उठाकर चीन ने नेपाल के कुछ हिस्से पर कब्ज़ा किया था। साथ ही नेपाल को भी अपने कर्ज़ के जाल में फंसाने की पूरी कोशिश चीन ने की थी।

भारत के साथ नेपाल की परंपरागत मित्रता और सहयोग की नीति को ही के.पी.शर्मा ओली की सरकार ने चुनौती दी। इसके अलावा भारत के साथ सीमा विवाद निर्माण करके दोनों देशों की सीमा पर तनाव निर्माण करने की कोशिश भी शर्मा की सरकार ने की थी। यह सभी चीन के प्रभाव में आकर करने के आरोप लगे थे। इसके खिलाफ नेपाल की जनता में असंतोष फैला था। भारत और चीन की सेनाओं के गलवान में संघर्ष के बाद चीन के सरकारी मुखपत्र ने धमकाया था कि, नेपाल का भी इस्तेमाल करके पाकिस्तान भारत को एक ही समय पर तीन मोर्चों पर लड़ने के लिए मज़बूर कर सकता है। चीन की इस भारत विरोधि साज़िश का के.पी.शर्मा ओली की सरकार ने तब साथ दिया था। इसी कारण उनकी सरकार गिरने के बाद सत्ता की बागड़ोर संभालने पर प्रधानमंत्री शेर बहादुर देवबा की सरकार ने भारत के साथ नए से सहयोग स्थापित करने की दिशा में कदम बढ़ाए।

इससे नेपाल पर चीन का वर्चस्व खत्म होता हुआ दिखाई दे रहा है। साथ ही भारत और नेपाल का परंपरागत सहयोग नए से स्थापित होता देखकर चीन के साथ पाकिस्तान भी बेचैन होने के संकेत मिल रहे हैं। पाकिस्तान के समाचार चैनलों पर बोलते हुए कुछ विश्लेषकों ने दावा किया कि, नेपाल पर अपना प्रभाव फिर से स्थापित करने की बड़ी कामयाबी भारत को हासिल हुई है। साथ ही आनेवाले दिनों में भारत नेपाल में चीन को बिल्कुल स्थान लेने नहीं देगा, ऐसा पाकिस्तानी विश्लेषकों का कहना है। नेपाल ही नहीं, बल्कि श्रीलंका में भी ऐसी ही स्थिति बनी है और यह दोनों देश अब भारत के प्रभाव में आने के दावे पाकिस्तान के विश्लेषक कर रहे हैं।

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