फ्रान्स, जर्मनी, इटली में ईंधन की किमतों में उछाल और नाटो के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन

नाटो के खिलाफपैरिस/बर्लिन/रोम – ईंधन की कीमतों में उछाल और इससे बढती हुई महंगाई की गूंज अब फ्रान्स, जर्मनी, इटली जैसे यूरोप के प्रमुख देशों में सुनाई देने लगी है। फ्रान्स के कारोबारियों ने मंगलवार को सरकार के खिलाफ देशव्यापी हड़ताल की। इसे फान्स के सभी स्तरों से बड़ा अच्छा समर्थन मिला। ‘युद्ध का ऐलान करने के लिए पैसे हैं, लेकिन, जनता को खिलाने के लिए पैसे नहीं है’, ऐसे नारे लगाकर जर्मनी की राजधानी बर्लिन में प्रदर्शनाकारी असंतोष व्यक्त कर रहे हैं। जर्मनी में ईंधन की किल्लत के मसले का हल नहीं निकाला गया तो संघर्ष छिड़ जाएगा, ऐसी चेतावनी विश्लेषक दे रहे हैं। इसी बीच फ्रान्स, जर्मनी की तरह इटली में भी नाटो के खिलाफ प्रदर्शन होने की खबरें प्राप्त हो रही हैं।

नाटो के खिलाफपिछले कुछ हफ्तों से अंतरराष्ट्रीय वित्तसंस्था और संगठन ईंधन संकट, वैश्विक महंगाई और यूरोपिय देशों की अर्थव्यवस्थाओं के मुद्दों पर रपट जारी कर रही हैं। रशिया-यूक्रेन युद्ध के कारण यूरोपिय देशों में ईंधन का बड़ा संकट निर्माण हुआ है, ऐसा दावा किया जा रहा है। इसके बावजूद यूरोपिय देश रशिया पर प्रतिबंध बढ़ाकर और यूक्रेन को हथियार प्रदान करके युद्ध के लिए तैयार करते ही जा रहे हैं। इसकी गूंज यूरोप के ‘कॉस्ट ऑफ लीविंग’ पर पड रही है, ऐसी आलोचना इन देशों के माध्यम कर रहे हैं।

फ्रान्स, जर्मनी, जैसे यूरोप के प्रमुख देशों में ‘कॉस्ट ऑफ लीविंग’ बढ़ रही है, ऐसी आलोचना अब स्थानीय लोग भी करने लगे हैं।

नाटो के खिलाफफ्रान्स और जर्मनी की जनता बड़ी संख्या में सड़कों पर उतरकर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही है। अपने देश को ईंधन की कीमतें में उछाल और महंगाई के संकट में धकेल रहे नाटो और यूरोपिय महासंघ से बाहर निकलें, ऐसी माँग इन प्रदर्शनों द्वारा की जा रही है। फ्रान्स में महंगाई भत्ता बढ़ाने की माँग के लिए ईंधन कंपनियों के कर्मचारियों ने शुरू की हुई हड़ताल में रेल, बस परिवहन कंपनियों के कर्मचारी एवं स्कूलों के शिक्षक और सरकारी अस्पतालों के कर्मचारी भी शामिल हुए हैं। इसकी वजह से मंगलवार को फ्रान्स में सरकार विरोधी प्रदर्शन अधिक तीव्र हुए हैं।

जर्मनी में भी नाटो के खिलाफ बड़े प्रदर्शन हो रहे हैं। ईंधन संकट के कारण जर्मनी की जनता आक्रामक बनी है। दो दिन पहले जर्मन पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर आक्रामक कार्रवाई की। इसके बाद विकसनशील देशों को मानव अधिकारों का पाठ पढ़ाने वाले जर्मनी यही कर रहा है, ऐसी आलोचना हुई थी। जब तक रशिया पर प्रतिबंध जारी रहेंगे तब तक जर्मनी के साथ यूरोप अस्थिर रहेगा। इस वजह से जर्मनी में चरमपंथी विचारधारा बढ़कर अपने देश में हिंसा भड़क सकती है, ऐसी चिंता जर्मन नेता व्यक्त कर रहे हैं।

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