१४ साल पहले भारत के साथ असैन्य परमाणु समझौते के कार्यान्वयन के लिए अमरीका की गतिविधियां शुरू

नई दिल्ली – अमरीका ने भारत के साथ १४ साल पहले किए हुए परमाणु समझौते का प्रत्यक्ष कार्यान्वयन करने की तैयारी की है। साल २००८ में भारत और अमरीका ने असैन्य परमाणु ऊर्जा सहयोग समझौता किया था। लेकिन, परमाणु दायित्व कानून जैसे अहम मुद्दों पर दोनों देशों में गंभीर मतभेद निर्माण हुए थे। इसकी वजह से वर्णित समझौते का लाभ उठाना दोनों देशों को मुमकिन नहीं हो पाया था। लेकिन, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी बड़े बदलाव हो रहे हैं और ऐसे में अमरीका को भारत के साथ इस समझौते की बात फिर से याद है।

परमाणु समझौतेयूक्रेन युद्ध के बाद अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में ईंधन की कीमतों में भारी उछाल आया। अमरीका ने रशिया से ईंधन की खरीदारी रोकने के लिए यूरोपिय और अन्य देशों पर दबाव बढ़ाया और रशिया के ईंधन निर्यात पर प्रतिबंध लगाए थे। इससे यूरोप समेत अन्य देशों को भी बडा नुकसान हो रहा है। ऐसी स्थिति में ऊर्जा स्रोत के विकल्प इस्तेमाल करने की ज़रूरी है, इसका अहसास सभी देशों को हुआ है। अमरीका ने भी इसके लिए कदम बढ़ाए हैं और ऊर्जा की मांग भारी मात्रा में बढ़ रहे भारत को परमाणु ऊर्जा मुहैया कराने के लिए पहल की है। अमरिकी ‘एनर्जी रिसोर्सेस’ विभाग के उपमंत्री जेफ्री पेयॉट ने भारत की यात्रा करके दोनों देशों के परमाणु ऊर्जा संबंधित सहयोग बढ़ाने के लिए चर्चा की।

साल २००८ में ही भारत और अमरीका ने असैन्य परमाणु ऊर्जा सहयोग समझौता किया था। ऊर्जा की भारी मांग बढ़ने वाले देश के तौर पर भारत की पहचान बनी है। ऊर्जा निर्माण क्षेत्र में शीर्ष स्थान पर रही अमरीका का भारत के साथ सहयोग करना स्वाभाविक बात मानी जा रही थी। फिर भी यह सहयोग उम्मीद के अनुसार गति प्राप्त नहीं कर सका था क्योंकि, भारत में परमाणु ऊर्जा प्रकल्प स्थापित करने के लिए उत्सुक अमरिकी कंपनियों को भारत का परमाणु दायित्व कानून स्वीकार नहीं था। इसके अलावा अन्य कुछ मुद्दों पर भी सहमति न होने से भारत और अमरीका ने परमाणु समझौता करने के बावजूद यह सहयोग आगे बढ़ नहीं पाया था।

लेकिन, अब स्थिति बदल चुकी है और तेज़ आर्थिक विकास करने वाले भारत में ऊर्जा की मांग आनेवाले समय में बडी मात्रा में बढ़ती रहेगी। साथ ही भारत परंपरागत ईंधन के विकल्पों के अलावा परमाणु ऊर्जा का इस्तेमाल करे, इसमें अमरीका के भी हित छुपे हुए हैं क्योंकि, इससे अमरिकी कंपनियों को बड़े लाभ प्राप्त हो सकते हैं। इस पृष्ठभूमि पर अमरिकी ‘एनर्जी रिसोर्सेस’ विभाग के उपमंत्री जेफ्री पेयॉट ने भारत यात्रा करके दोनों देशों के असैन्य परमाणु ऊर्जा समझौते का कार्यान्वयन करने की कोशिश की। ‘पीटीआई’ को दिए गए साक्षात्कार में इस समझौते के कार्यान्वयन में बाधा वाले मुद्दों पर काम करने की ज़रूरत होने का बयान पेयॉट ने किया। इसके साथ ही असैन्य परमाणु ऊर्जा के कारोबार में काफी बड़े बदलाव किए गए हैं, इस पर भी पेयॉट ने ध्यान आकर्षित किया।

वर्तमान में अमरीका छोटे और कम क्षमता वाले परमाणु रिएक्टर विकसित करने की पहल कर रही है। यह मॉडल भारत के लिए भी उपयुक्त साबित होगा, ऐसा विश्वास पेयॉट ने व्यक्त किया है। साथ ही ग्रीन हाइड्रोजन के क्षेत्र में भी अमरीका भारत को भारी मात्रा में सहयोग कर सकेगी, यह दावा भी पेयॉट ने किया है।

भारत अमरीका का नैसर्गिक भागीदार देश है – अमरिकी सांसद का दावा

वॉशिंग्टन – अमरिकी कंपनियां अपनी सप्लाइ चेन में विविधता लाने की तैयारी में होने की स्थिति में भारत अमरीका का नैसर्गिक भागीदार है, ऐसा दावा अमरिकी सांसद अमी बेरा ने किया है। भारत की एअर इंडिया अमरीका की बोईंग कंपनी से २२० यात्री विमान खरीद रही है। इस तकरीबन ३४ अरब डॉलर्स के कारोबार की वजह से अमरीका के ४४ प्रांतों में दस लाख लोगों को रोजगार मिलेगा। इस कारोबार का दाखिला देते हुए अमरिकी कांग्रेस सदस्य अमी बेरा ने भारत के साथ अमरीका के आर्थिक सहयोग की अहमियत रेखांकित की।

कोरोना महामारी के बाद अपने उत्पादन के लिए चीन पर भारी मात्रा में निर्भर अमरिकी कंपनियों ने सबक सीखा है। अमरिकी कंपनियों को सप्लाइ चेन में विविधता लाने की ज़रूरत का अहसास हुआ है और इसके लिए भारत ही बेहतर विकल्प होने का अहसास कांग्रेसमन बेरा ने कराया। साथ ही एअर इंडिया और बोईंग के समजौते की वजह से अमरीका में दस लाख लोगों को रोज़गार मिलने के मुद्दे पर ध्यान आकर्षित करके अमी बेरा ने भारत से सहयोग के काफी बड़े आर्थिक लाभ अमरीका को प्राप्त होंगे, इस पर ध्यान आकर्षित किया।

भारत का औषधि निर्माण क्षेत्र काफी प्रगत है, तथा रक्षा सामान निर्माण का उद्योग, प्रौद्योगिकी के मोर्चे पर भी भारत ने काफी प्रगति की है। ऐतिहासिक नज़रिये से भारत किसी भी गुट का हिस्सा हुए बिना गुटनिरपेक्ष भूमिका अपनानेवाला देश है और मौजूदा समय पर भारत काफी बड़ी आर्थिक शक्ति बना है। इसके अलावा भारत ही अमरीका का समुद्री सुरक्षा के क्षेत्र में अहम साथी है। इसके साथ ही भारत की अमरीका के साथ व्यापारी स्तर पर भागीदारी विकसित हो रही है, ऐसा अमी बेरा ने कहा।

भारत से जुडी यह जानकारी साझा करने के बीच चीन के राष्ट्राध्यक्ष शी जिनपिंग हमारे देश को अगल दिशा में आगे बढ़ा रहे हैं, ऐसी चेतावनी बेरा ने दी। भारत की ईशान कोण सीमा में चीन की आक्रामक गतिविधियां और श्रीलंका को कर्ज़ के फंदे में फंसाकर उसे तबाह करने का काम जिनपिंग के नेतृत्व में चीन ने किया, इस पर भी बेरा ने गौर किया। ऐसी स्थिति में भारत, जापान, दक्षिण कोरिया और यूरोप के सहयोगी देशों के विकास के लिए अमरीका को कोशिश करनी पडेगी। अफ्रीकी महाद्वीप को भी अब चीन के आर्थिक फंदे का अहसास हुआ है। अफ्रीकी देशों में बसे भारतियों की संख्या काफी बड़ी होने के मुद्दे पर भी बेरा ने ध्यान आकर्षित किया।

ऐसी स्थिति में भारत के साथ अमरीका के आर्थिक एवं अन्य मोर्चों के सहयोग की अहमियत काफी बढ़ने का अहसास भी अमी बेरा ने कराया। अमरीका के कुछ जनप्रतिनिधि और माध्यमों का एवं विश्लेषकों का गुट भारत के लोकतंत्र पर बयान कर रहे हैं। ऐसे में भारतीय वंश के अमरिकी जनप्रतिनिधि अमी बेरा ने भारत के सहयोग की अहमियत रेखांकित करने वाले यह बयान अमरीका में मौजूद भारत विरोधी गुट के लिए एक तमाचा है।

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