प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों काशी विश्वनाथ कॉरिडोर राष्ट्र को समर्पित

नई दिल्ली – प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार के दिन काशी विश्वनाथ कॉरिडोर राष्ट्र को समर्पित किया| वाराणसी स्थित काशी विश्वेश्वर का इलाका अतिक्रमण से मुक्त करके भाविकों को सीधे गंगा घाट से मंदिर पहुँचना मुमकिन हो सके, ऐसी व्यवस्था इस कॉरिडोर से उपलब्ध हुई है| साथ ही मंदिर के इलाके का भी विस्तार किया गया है और एक ही समय पर ५० से ७५ हज़ार श्रद्धालु इस क्षेत्र में समा सकेंगे| ‘माता गंगा उत्तरवाहिनी बनकर विशेषरूप से भगवान विश्वनाथ की काशी पहुँचती है| यही माता गंगा आज प्रसन्न हुई होगी क्योंकि, अब काशी विश्वेश्वर के दर्शन करने से माता गंगा को स्पर्ष करके आनेवाली हवा हमें स्नेह देगी’, इन शब्दों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विश्वनाथ कॉरिडोर और मंदिर के खुले हुए क्षेत्र का वर्णन किया|

काशी विश्वनाथ कॉरिडोर, मंदिर के विस्तारित एवं सुशोभित इलाके का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों उद्घाटन किया गया| इससे पहले मात्र तीन हज़ार चौरस फीट का यह मंदिर क्षेत्र अब पांच लाख चौरस फीट तक विस्तारित किया गया है| इससे एक ही समय पर हज़ारों श्रद्धालु मंदिर और मंदिर इलाके में उपस्थित रह सकते हैं| गंगा स्नान करके श्रद्धालुओं को सीधे विश्वेश्वर का दर्शन करना मुमकिन होगा, ऐसी सुविधा की गई है| यहां पर परिक्रमा मार्ग भी बनाया गया है और ३५२ वर्ष बाद पहली बार ज्ञानव्यापी मंड़प-पूक और आदि विश्वेश्वर नंदी अब मुख्य मंदिर के क्षेत्र का हिस्सा बने हैं| साथ ही मंदिर के चारों ओर ३२ फीट उंचे विशाल  दरवाजे बनाए गए हैं| यहां पर शिववन का निर्माण भी किया गया है और इसमें रुद्राक्ष, हरसिंगार और मंदारा जैसे वृक्ष लगाए गए हैं|

काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के तहत इस क्षेत्र के कुछ घरों को हटाकर उनका पुनर्वास किया गया है| साथ ही इन घरों की भीड़ में खोए २७ प्राचिन मंदिरों की मणीमाला भी इस योजना के तहत मुक्त की गई है| इसके अलावा मंदिर के इलाके की दिवार पर काशी की महानता चित्र के स्वरूप में वर्णित की गई है| साथ ही वाराणसी गैलरी में काशी के इतिहास से जुड़े सभी मुद्दे देखे जा सकेंगे| श्रद्धालु वाराणसी में किए गए इस बदलाव का तहे दिल से स्वागत कर रहे हैं|

‘जहां पर जागृति है, मृत्यु का भी उत्सव है, जहां पर सत्य ही संस्कृति है, वह काशी है’, इन शब्दों में प्रधानमंत्री ने काशी का वर्णन किया| जगत्गुरू शंकराचार्य ने देश को एकता के धागे में बांधने का संकल्प जहां पर किया, गोस्वामी तुलसीदास ने भगवान शंकर की प्रेरणा से रामचरितमानस जैसी अलौकिक रचना जहां पर की, भगवान बुद्ध का ज्ञान विश्‍व के सामने जहां पर प्रकट हुआ, समाज की उन्नती के लिए कबीरदास जैसे ऋषि जहां पर अवतरित हुए, वह काशी भारत के चैतन्य का प्रतीक है, ऐसा प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर कहा|

आज का भारत अपनी खोई हुई विरासत फिर से जीवित कर रहा है, यह भी प्रधानमंत्री ने रेखांकित किया| गुलामी के लंबे समय ने भारतीय नागरिकों का आत्मविश्‍वास तोड़ा था| स्वनिर्माण पर से भरोसा उठ गया था| लेकिन, अब आत्मविश्‍वास निर्माण करें, नूतन बाते करें, नवीनता के मार्ग से करें, यह आवाहन हज़ारों वर्ष की परंपरा रखनेवाली काशी से हम हर देशवासी से करते हैं, ऐसा प्रधानमंत्री ने कहा| इस दौरान प्रधानमंत्री ने सबसे स्वच्छ और आत्मनिर्भर भारत का संकल्प करने का आवाहन भी किया|

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