चीन-पाकिस्तान के विरोध में ‘ग्रे झोन वॉरफेअर’ करने की क्षमता देश विकसित करें – सेनाप्रमुख जनरल मनोज पांडे

नई दिल्ली – भारत और चीन का सीमा विवाद जटिल समस्या हैं। लेकिन, इसपर युद्ध या संघर्ष करने की इच्छा दोनों देश नहीं रखते, ऐसा दावा भारत में चीन के राजनीतिक अधिकारी मा जिया ने किया है। उनके इस दावे को प्रसिद्ध मिल रही थी तभी भारत के सेनाप्रमुख जनरल मनोज पांडे ने यह संदेश दिया कि, ‘देश ‘ग्रे जोन वॉरफेअर’ के लिए यानी प्रत्यक्ष नहीं, अप्रत्यक्ष युद्ध के लिए तैयार रहें। चीन और पाकिस्तान जैसें देशों के साथ खत्म नहीं हो सके सीमा विवाद का दाखिला देकर इस क्षण भी यह देश भारत विरोधी ‘ग्रे झोन वॉरफेअर’ की हरकतें कर रहे होंगे, ऐसा इशारा सेनाप्रमुख ने दिया है।

मौजूदा समय में सीधे युद्ध करने का खत्म उठाए बिना शत्रु देश को अपनी गुप्त गतिविधियां और साज़िशों से बेहाल करना, शत्रु देश में अस्थिरता एवं बेदिली फैलाना और उस देश का आत्मविश्वास खत्म करने की कोशिश करने की पद्धती ‘ग्रे झोन वॉरफेअर’ का हिस्सा बनती है। इससे सीधे युद्ध किए बिना भी युद्ध के परिणाम पाने की सफलता प्राप्त हो सकती है और इसके लिए बड़ी किमत भी अदा करने की जरूरत नहीं होती। इसत तरह की युद्ध नीति में चीन उस्ताद होने के दावे किए जा रहे हैं। लद्दाख के गलवान घाटी में भारतीय सेना के साथ हुए संघर्ष से पहले चीन की सेना ने एलएसी पर लगातार घुसपैठ करके पीछे हटने का सिलसिला जारी रखा था। इस तरह से आगे आगे बढ़कर एलएसी से जुड़े भारत के हिस्से पर अपना दावा मज़बूत करने की रणनीति इसके पीछे थी। इस पद्धती को सलामी स्लाइसिंग कहा जाता है और यह चीन के ‘ग्रे झोन’ युद्धनीति का हिस्सा था।

चीन और पाकिस्तान स्पष्ट ज़िक्र किए बिना सेनाप्रमुख जनरल मनोज पांडे ने इस नई युद्धनीति के मोर्चे पर देश अपनी तैयारी रखे, ऐसा संदेश दिया। बल्कि, हमारे विरोध में इस तरह की युद्धनीति का इस्तेमाल करने का अवसर किसी को प्राप्त नहीं हो सके, उतनी क्षमता भारत विकसित करें, ऐसा सेनाप्रमुख ने कहा है। हमारे शत्रु को ऐसी साज़िश करने का अवसर भी नहीं मिलना चाहिये, यह कहकर इस मोर्चे के लिए भारत रणनीति तय करें, ऐसा सेनाप्रमुख ने सुचित किया है।

‘पीएचडीसीसीआई डीईएफ एक्स टेक इंडिया २०२३’ नामक नई दिल्ली में आयोजित परिषद में सेना प्रमुख ने यह कहा। हम यहा यह कह रहे हैं तभी देश के विरोध में ‘ग्रे झोन वॉरफेअर’ की गतिविधियां शुरू होंगी, ऐसा कहकर जनरल पांडे ने देश को इससे आगाह किया।

इसी बीच, मौजूदा समय का युद्ध काफी गतिमान और अल्प समय का होगा, यह विचार यूक्रेन युद्ध ने दूर किया हैं, ऐसा सेनाप्रमुख ने स्पष्ट किया। यूक्रेन युद्ध की वजह से सेना के परंपरागत युद्ध की क्षमता बरकरार रखने की ज़रूरत नए से साबित हुई हैं। सटिक हमला करने की क्षमता के लंबी दूरी के मिसाइलों की वजह से दूरी की ज्यादा अहमियत नहीं रही। क्यों कि, प्रगत मिसाइलें दूर से ही अपना लक्ष्य तबाह कर सकते हैं। साथ ही हवाई हमले करने के लिए अब लड़ाकू विमानों की ज़रूरत नहीं रहीं, शस्त्रों से लैस ड्रोन्स यह काम कर सकते हैं, यह भी यूक्रेन युद्ध ने दिखाया है, इसपर सेनाप्रमुख मनोज पांडे ने ध्यान आकर्षित किया। साथ ही रशिया का मास्कोवा युद्धपोत महज दो युद्धपोत विरोधी मिसाइलों के हमले से डुब गई थी, इसकी याद भी सेनाप्रमुख ने ताज़ा की।

ज़मीनी क्षेत्र ही मौजूदा समय के युद्ध में भी सबसे अहम घटक है और जीता हुआ क्षेत्र ही जीत का मानदंड़ समझा जाता है, यह भी यूक्रेन युद्ध के कारण साबित हुआ हैं। इस बात पर गौर करके इससे संबंधित प्रगत तकनीक अपनाकर आधुनीकीकरण करना होगा, ऐसा सेनाप्रमुख ने कहा। भारतीय सेना के आधुनिकीकरण से संबंधित अहम जानकारी भी सेनाप्रमुख पांडे ने साझा की। ‘सेना ने अपने लिए करीबन ४७ अतिप्रगत प्रौद्योगिकी की सूची बनाई है और पहले किए एवं इन नई प्रौद्योगिकी का संतुलन बनाने की कोशिश सेना कर रही हैं। भारतीय सेना के रक्षा सामान में ४७ प्रतिशत परंपरागत एवं ४१ प्रतिशत मौजूदा समय का एवं १२ प्रतिशत नवीनतम युद्ध सामान होने की जानकारी जनरल पांडे ने साझा की। साल २०३० तक इसमें बदल होगा और २० प्रतिशत परंपरागत, ३५ प्रतिशत मौजूदा समय के एवं ४० से ४५ प्रतिशत प्रगत रक्षा सामान भारती रक्षा बलों के पास होगा, यह विश्वास सेनाप्रमुख ने व्यक्त किया।

इस आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में भारत के निजी उद्योगक्षेत्र का काफी बड़ा योगदान होगा, यह भी जनरल मनोज पांडे ने कहा हैं।

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