चीन ने दिए कर्जे अपारदर्शी और शिकारी अर्थनीति का भाग – विश्‍लेषकों का दावा

शिकारी अर्थनीतिपॅरिस/बीजिंग – चीन द्वारा दुनिया के विभिन्न देशों को दिए जा रहे कर्जे अपारदर्शी होकर, उस देश की शिकारी अर्थनीति का भाग होने का दावा विश्‍लेषक फॅबिअन बोसार्ट ने किया है। विकास के लिए अर्थसहायता दे रहा होने का दावा करके चीन जो कर्जे दे रहा है, उनमें से लगभग ६० प्रतिशत कर्ज़े व्यवसायिक दरों से दिए गए हैं, इस पर बोसार्ट ने गौर फरमाया। ‘टाईम्स ऑफ इस्रायल’ इस अखबार ने इस संदर्भ में प्रकाशित की खबर में, अमरिकी और युरोपीय अभ्यास गुटों ने जारी की एक रिपोर्ट का भी हवाला दिया गया है।

चीन के राष्ट्राध्यक्ष शी जिनपिंग ने पिछले दशक में महत्त्वाकांक्षी ‘बेल्ट ऍण्ड रोड इनिशिएटिव्ह’ की घोषणा की थी। इस योजना के तहत चीन ने अफ्रीका, एशिया, लैटिन अमरीका, साथ ही युरोपीय देशों में बड़े पैमाने पर शिकारी अर्थनीतिप्रोजेक्ट का निर्माण शुरू किया। इन प्रोजेक्ट के लिए चीन ने ही इन देशों को अर्थसहायता प्रदान की। दुनियाभर के विभिन्न देशों को चीन ने दिए कर्जे की मात्रा, ‘वर्ल्ड बँक’ और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने दिए कुल कर्जे से भी अधिक है। फिलहाल दुनियाभर के विभिन्न देशों को प्रदान किए गए कर्जे में से ६५ प्रतिशत हिस्सा चीन का है।

यह कर्जा देते समय, उसमें अन्य किसी भी प्रकार की विशेष शर्तें लागू नहीं होंगी, ऐसे दावे चीन द्वारा किए गए थे। लेकिन ये दावे झूठे होने का आरोप विश्‍लेषक बोसार्ट ने किया है। चीन ने विभिन्न देशों को दिए कर्जे का इस्तेमाल, उन देशों को चीन पर निर्भर बनाने के लिए तथा अपने राजनीतिक हेतु पूरे करने के लिए किया होने का आरोप भी उन्होंने किया। कुछ ही महीने पहले ‘हाऊ चायना लेंड्स’ नामक एक रिपोर्ट भी प्रकाशित हुई होकर, उसमें भी बोसार्ट ने किए आरोपों की पुष्टि की गई है।

इस रिपोर्ट में, चीन ने विभिन्न देशों के साथ किए १०० समझौतो का उल्लेख किया गया है। उसमें श्रीलंका, म्यानमार, मालदीव, इंडोनेशिया जैसे देशों को किस प्रकार कर्जे के चंगुल में फँसाया गया, इसकी जानकारी दी गई है।

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