‘जैविक आतंकवाद’ का सामना करने के लिए सुरक्षादल तैयार रहें – रक्षामंत्री राजनाथ सिंग

नई दिल्ली – ‘युद्ध की प्रगत तकनीक की वजह से नई नई चुनौतियां खडी हो रही है| युद्ध की नई तकनीक की वजह से यह चुनौतियां और भी कठिन बन रही है, यह कहते समय भविष्य में जैविक आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए सुरक्षा दलों को तैयार होना होगा’, ऐसा रक्षामंत्री राजनाथ सिंग ने कहा है|

‘शांघाय को-ऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन’ (एससीओ) की पहली ‘आर्म फोर्स मेडिकल सर्व्हिसेस कान्फरन्स’ (एएफएमसी) का आयोजन किया गया था| पूर्वीय देशों की संगठन के तौर पर एससीओ को पहचाना जाता है| एशिया-प्रशांत क्षेत्र के देश इस संगठन का हिस्सा है| दुनिया के प्रभावी देश इस संगठन में शामिल है और इस क्षेत्र की सुरक्षा के नजरिए से यह संगठन काफी अहम होने की बात रक्षामंत्री राजनाथ सिंग ने कही| साथ ही युद्ध की बदल रही और प्रगत तकनीक का दाखिला देते समय उन्होंने ‘जैविक आतंकवाद’ का सामना करने की क्षमता बढाने की जरूरत रखांकित की|

‘युद्ध की परिभाषा और युद्ध की तकनीक में तेजी से बदलाव हो रहे है| आधुनिक तकनीक की वजह से चुनौतियां और भी बढी है| परमाणु, रासायनिक और जैविक युद्ध तकनीक ने इस स्थिति की कठिनाईयां और भी बढाई है’, ऐसा राजनाथ सिंग ने कहा है|

इस दौरान राजनाथ सिंग ने ‘जैविक आतंकवाद’ के खतरे की ओर ध्यान आकर्षित किया| जैविक आतंकवाद का खतरा सबसे अधिक है और यह खतरा किसी भी संक्रमित बिमारी की तरह फैल रहा है| सुरक्षा दलों ने इस चुनौती का सामना करने के लिए तैयार रहना होगा| युद्ध के बीच में जख्मी होनेवालों पर वैद्यकीय सेवा तुरंत उपलब्ध करने की बडी जिम्मेदारी सुरक्षा दलों के वैद्यकिय दल पर होती है| इस कारण सुरक्षा दलों में वैद्यकिय अधिकारी और तकनीकी विशेषज्ञों ने ‘जैविक आतंकवाद’ के खतरे की पहचान करके इसका सामना करने के लिए प्रगत तकनीक और साहित्य के साथ तैयार होना होगा, ऐसा राजनाथ सिंग ने कहा|

दिल्ली में आयोजित इस बैठक के लिए चीन, कझाकिस्तान, किरगिझीस्तान, पाकिस्तान, रशिया, ताजिकीस्तान और उजबेकिस्तान इन एससीओ के सदस्य देशों के प्रतिनिधी उपस्थित रहे| इसके अलावा २७ अंतरराष्ट्रीय शिष्टमंडल और ४० भारतीय शिष्टमंडल भी इस परिषद में शामिल हुए थे|

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