अंतरिक्ष-शास्त्र वैज्ञानिक डॉ. विक्रम साराभाई भाग-२

उपग्रह, अंतरिक्ष संशोधन ऐसे क्षेत्रों में जो कुछ भी भव्यदिव्य कार्य आज दिखाई देता है, उसकी नींव डालनेवाले शास्त्रज्ञ के रूप में जाने-माने डॉ. भाभा के समकालीन एक अंतरराष्ट्रीय कीर्ति प्राप्त वैज्ञानिक थे, डॉ. विक्रम साराभाई। डॉ. साराभाई को आदर्श मानकर उनके बाद के अनेक संशोधकों ने उनसे प्रेरणा लेकर संशोधन के इस भार को, कार्य को आगे बढ़ाने का महत्त्वपूर्ण कार्य पूरा किया। भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति, अपने समय के सर्वोत्तम शास्त्रज्ञ मा. डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम एवं अन्य अनेकों के वे आदर्श हैं। डॉ. कलाम के आंतरिक गुणों को ढूँढ़कर, अवसर प्रदान कर उन्हें प्रगति की दिशा में ले जानेवाले विशेष व्यक्ति डॉ. साराभाई ही थे। डॉ. कलाम द्वारा उल्लेख किए गए उनके व्यक्तित्व के अनुसार इनके व्यक्तित्व को जान पाना भी काफी महत्त्वपूर्ण साबित होगा।

उस दौर में वैज्ञानिक सहायक के रूप में काम करनेवाले डॉ. कलाम के साथ मुलाकात डॉ. साराभाई ने अन्य दो वरिष्ठ अधिकारियों के साथ मिलकर की। डॉ. कलाम को उस मुलाकात में डॉ. साराभाई के व्यक्तित्व पर गौर करने पर इस बात का अहसास हुआ था कि उनमें मैत्री की तीव्र इच्छा एवं लगाव था। संवेदनशील नौजवान के साथ मुलाकात करते समय घमंड की ओर झुकनेवाले श्रेष्ठत्व की वृत्ति का नामोनिशान तक उनमें नहीं दिखाई दिया। मेरे ज्ञान की मेरे क्षमता की परीक्षा लेने के बजाय मैं और अधिक क्या कर सकता हूँ, इस बात का अंदाजा लगाया जा सके, ऐसी बातें उन्होंने उस मुलाकात में पूछी थीं। कलाम के सपने भी एक महान व्यक्ति के ही स्वप्न का एक हिस्सा था और यह साक्षात्कार का अर्थात् इंटरव्ह्यू का विषय था। प्रो. साराभाई हर किसी को काम के लिए उद्युक्त करने में काफी कुशल थे। उनकी बुद्धि की, कल्पना की उड़ान हमें विस्मित कर देती है, साथ ही उनकी दूरदर्शिता हमें काफी प्रशंसनीय लगती है। संशोधन क्षेत्र में एक नेता को कैसा होना चाहिए इस बात का प्रो. साराभाई एक उत्तम आदर्श थे। कुछ सहकारियों से बातचीत के दौरान प्रो. साराभाई ने कहा कि ‘मेरा कार्य निर्णय लेना है यह मैं मान्य करता हूँ और यह बात भी मेरे दृष्टिकोन से निर्णय लेने के समान ही महत्त्वपूर्ण है। उनके द्वारा निश्‍चित किये गये कुछ फैसले आगे चलकर कुछ लोगों के जीवन का ध्येय बन गए।

थुंबा इक्केटोरियल लाँच स्टेशन पर रोहिणी एवं मेनका ये दो भारतीय बनावट के रॉकेट्स अंतरिक्ष में स्वतंत्र रूप में विहार करने के लिए तैयार थे। प्रो. साराभाई ने वहाँ के हर एक वैज्ञानिक के ज्ञानकौशल्य का अति उत्तम तरीके से उपयोग किया। हर किसी को ऐसा ही प्रतीत हो रहा था कि यह प्रकल्प उसका अपना ही है। इस प्रकार से विश्‍वास की भावना उन सभी के मन में उत्पन्न करने में वे सफल रहे। ऐसा ही स्वभाव उनका रोजमर्रा के व्यवहार में भी था। अपना निराकरण वे कभी छिपाकर नहीं रखते थे। अपने सहकारियों के साथ चर्चा करते समय वे बिलकुल निष्पक्ष हुआ करते थे। कभी-कभी निश्‍चित समय पर दिए गए उद्देश्यों की पूर्ति नहीं हो पाती थी तो वे जो हो चुका होता था, उसी हिस्से की सराहना करते थे।

इन दो दिग्गजों की एक और मुलाकात भी महत्त्वपूर्ण रही। एक काल्पनिक आशावादी संशोधक, सत्य की खोज में संशोधन का मार्ग ढूँढ़नेवाले डॉ. कलाम और दूसरे थे प्रत्यक्ष रूप में संशोधन की दुनिया में नव-नवीन निर्मिति करते हुए सफलता के शिखर तक पहुँचनेवाले प्रो. साराभाई। दिल्ली के अशोका हॉटेल में प्रो. साराभाई ने डॉ. कलाम को साक्षात्कार (इंटरव्ह्यू) के लिए बुलाया था। समय था, जनवरी महीने की कड़कड़ाती ठंड की रात्रि के साढ़े तीन बजे का। समय से दो घंटे पहले ही वहाँ पहुँचकर कलाम शांतिपूर्वक वहीं बैठे और वहाँ पर रखी हुई एक पुस्तक पढ़ रहे थे। उन्हें जब इस बात का पता ही नहीं था कि आखिर उनसे क्या पूछा जायेगा तो वे तैयारी भी किस बात की करते। दिए गए समय पर प्रो. साराभाई वहाँ पर आ गए, कॉफी पीते-पीते उनके बीच चर्चा हुई। ‘राटो’ संकल्पना (रॉकेट असिस्टेड टेक ऑफ सिस्टिम) एकमत के साथ मान्य की गई। तुरंत ही दिल्ली के पर्वतीय क्षेत्र में जाकर ‘राटो’ इंजन देखकर डॉ. साराभाई तत्कालीन प्रधानमन्त्रीजी के निवास स्थान पर सुबह के नास्ते के लिए जा पहुँचे। जन सामान्य को सोचने पर मजबूर कर देनेवाली एक सीधी-सादी सी बात यह है कि इन दो चार संशोधकों के लिए दिन-रात-मध्यरात्रि, अपरात्रि आदि बातें कोई मायने नहीं रखती थीं।

कोई भी सफलता गलतियों के कारण हाथ से निकल जाती है, इसमें कोई भी संदेह नहीं, परन्तु गलतियों के कारण किसी कार्य के समग्रता को ध्यान में रखकर नये कार्य का आरंभ कर प्रयोग करनेवाले संशोधक डॉ. साराभाई के समान शायद ही कोई हो। डॉ. साराभाई लोगों की परख करने एवं उनका समूह बनाने में माहिर थे। उनके साथ काम करनेवाले संशोधकों का कहना है कि ‘अदृश्य नेता के विशेष गुण यही हैं कि वह पारंपारिक दृष्टिकोन से हटकर नवीन मार्गक्रमण करता है, वरिष्ठ बनने के बजाय प्रशिक्षक बन जाता है। नव-नवीन व्यक्तित्व निर्माण करनेवाला सलाहगार बनकर दिग्दर्शक की अपेक्षा अपने सहकारियों को उनके ध्येय प्राप्ति तक ले जानेवाला सहकारी बनता है। आदर माँगने की बजाय वे कुछ निर्माण कर सके ऐसा उनका बर्ताव होता है।

केरल के थुंबा नामक स्थान पर होनेवाले क्षेपणास्त्र, उपग्रह प्रक्षेपण केंद्र की स्थापना में भी डॉ. साराभाई का महत्त्वपूर्ण योगदान था। अग्निबाण के उड़ान के साथ साथ अणुउर्जा निर्मिति आदि क्षेत्रों में और उस समय के प्राथमिक अवस्था में होनेवाले दूरचित्रवाणी प्रक्षेपण में भी डॉ. साराभाई ने सराहनीय कार्य किए हैं। ‘इंडियन नेशनल कमिटी फॉर स्पेस रिसर्च’ जैसी संस्थाओं की स्थापना उन्होंने की।

फिजिकल सायन्स इस विषय के प्रति उन्हें शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार, पद्मभूषण, पद्मविभूषण के समान नागरी पुरस्कारों से गौरवान्वित किया गया।

रोबदार, हँसमुख, बुद्धिमान और अल्प अवधि में ही ख्याति प्राप्त इस संशोधन कर्ता का हृदयविकार के कारण ३० दिसंबर १९७१ के दिन अचानक निधन हो गया।

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