डॉ. विक्रम साराभाई भाग-१

हमारे देश का स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद स्वतंत्र एवं समर्थ अंतरिक्ष संशोधन करने का सपना साकार करने का कार्य जिन वैज्ञानिकों ने साकार किया, उनमें से एक प्रमुख नाम है, डॉ. विक्रम साराभाई। उन्होंने चुनौतियों का स्वीकर कर देश के सपने को प्रत्यक्ष रूप में साकार करने की दिशा में कदम आगे बढ़ाये। इन प्रयासों को देखकर कुछ लोगों ने यह कहना शुरू कर दिया कि जो देश अपनी भूखी जनता को पेट भर अनाज पूरा नहीं कर पा रहा है, उसे अंतरिक्ष संशोधन कार्य के खर्चीले सपने को देखने की क्या आवश्यकता है? इस प्रकार की आलोचनायें की गईं। परन्तु डॉ. साराभाई जैसे पचास वर्ष आगे के समय की आवश्यकताओं की दृष्टि रखनेवाले द्रष्टा इन बातों से विचलित न हुए। ‘दुनिया के नक्शे में समर्थ राष्ट्र के रूप में अपना स्थान बनाये रखने के लिए आधुनिक तकनीकों का उपयोग करते हुए आगे बढ़नेवाले देशों की बराबरी में हर एक क्षेत्र में स्वयंपूर्ण होना ही चाहिए। केवल अपनी फौजी ताकत दुनिया को दिखाना ऐसा कोई भी इरादा इसमें नहीं था। अपनी अंतर्गत समस्यायें स्वयं की ताकत पर दूर करने के लिए जरूरी तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता हमें हैं।’ यह उनका दृष्टिकोन था।

विक्रम अंबालाल साराभाई का जन्म १२ अगस्त १९१९ में गुजरात के अहमदाबाद में हुआ। साराभाई एक गुजराती वैभवसंपन्न व्यापारी घराने के थे। उनके पिता की अपनी स्वयं की कुछ मिलें थीं। साराभाई परिवार स्वतंत्रता संग्राम में भी भाग लेनेवालों में से एक था। इसी कारण पंडित नेहरू, मोतीलाल नेहरू, महात्मा गांधी, रविन्द्रनाथ टैगोर जैसे महान लोगों के घर उनका आना-जाना लगा रहता था। इस सहवास एवं वातावरण का विक्रम साराभाई पर काफ़ी प्रभाव था। उनकी दादी (नानी) सरलादेवी इन्होंने अपने आठ बच्चों एवं पास पड़ोस के बच्चों को इकठ्ठा कर इन सब के लिए एक निजी पाठशाला स्वयं शुरु की थी।

गणित यह बचपन से ही डॉ. साराभाई का पसंदीदा विषय था। गुजरात कॉलेज से प्राथमिक शिक्षा पूरी कर, अगली शिक्षा उन्होंने लंडन के सेंट जॉन कॉलेज एवं केंब्रिज महाविद्यालय से पूर्ण की (१९४० में)। इसी दौरान द्वितीय महायुद्ध के कारण वे भारत लौट आये। नोबेल पुरस्कर विजयता, संशोधनकर्ता सी. व्ही. रामन, इनके साथ ‘इंडियन इन्स्टिट्यूट ऑफ सायन्स’ नामक बंगलुरु संस्था में इन्होंने अपने कार्य का आरंभ किया।

१९४२ में मृणालिनी नामक विश्‍वप्रसिद्ध नृत्यांगना के साथ वे चेन्नई में विवाहबद्ध हो गए। कार्तिकेय और मल्लिका नाम की उनकी दो संताने थीं, इनमें से मल्लिका साराभाई यह आज सुप्रसिद्ध नृत्यांगना हैं।

‘कॉस्मिक रे पार्टिकल्स’ नामक इस विषय पर डॉ. साराभाई ने विशेष संशोधन किया है। १९४५ में वे पुन: केंब्रिज गए और १९४७ में उन्हें डॉक्टरेट की उपाधि प्रदान की गई। ‘कॉस्मिक रेज’ इनव्हिस्टिगेशन अन्य ट्रॉपिकल लॅटिट्युड’ नामक यह प्रबंध उन्होंने प्रस्तुत किया।

अनेक मान्यवर संशोधक, तकनिशन, वैज्ञानिक आदि उनके संपर्क में आये, यह भी एक विशेष सौभाग्य की बात है। ‘विश्‍व किरणों की व्युत्पत्ति’ यह भी डॉ. साराभाई के संशोधन का विषय था। १९४७ में अहमदाबाद में उन्होंने अपना स्वयं का स्वतंत्र ‘फिजिकल रिसर्च इन्स्टिट्यूट’ निर्माण करने का संकल्प पूरा करके दिखाया। यहीं पर प्राथमिक स्वरूप में अंतरिक्ष संशोधन कार्य आरंभ हुआ। विज्ञान यह केवल शहरों तक ही रहने से इसका कोई उपयोग नहीं। इसे गाँवों-गाँवों में पहुँचाना भी उतना ही जरूरी है। इसके लिए ‘कम्युनिटी सायन्स सेंटर’ नामक संस्था की स्थापना उन्होंने की। इसके अन्तर्गत साराभाई ग्लास, साराभाई केमिकल्स, औषधि निर्मिति करनेवाले कारखने इन सब का समावेश था। १९६१ के पश्‍चात जब व्यवस्थानशास्त्र को भारत में उतना महत्त्व नहीं था। उस वक्त इस शास्त्र को लोगों तक पहुँचाने हेतु ‘इंडियन इन्स्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट’ (अहमदाबाद) की स्थापना की गई। और वे ही उसके संचालनकर्ता भी थे। पुणे के करीब होनेवाला आर्वी यह उपग्रह केन्द्र शुरू करने में भी उनका विशेष स्थान था।

विज्ञान क्षेत्र में अतुलनीय एवं मूलभूत कार्य से संबंधित डॉ. साराभाई द्वारा विकसित किए गए देश के विविध क्षेत्रों के कार्य, उनकी देख-रेख में आगे बढ़नेवाले संशोधक और उनके उल्लेखनीय कार्य हम पढ़ेंगे, अगले लेख में।

Leave a Reply

Your email address will not be published.