लीझ माइट्नर

हिटलर के शासनकाल में जिसे अनेक मानसिक क्लेश सहने पड़े, एक वैज्ञानिक होने का अधिकार भी जिससे छीन लिया गया, किन्तु वह नहीं डगमगाई। परमाणु विखंडन की महत्त्वपूर्ण खोज करने के बावजूद उसे उसका श्रेय नहीं मिला, वह निराश हो गई किन्तु हताश नहीं हुई। अंत तक उसने अपना संशोधन जारी रखा। किरणोत्सार और अणुगर्भविज्ञानक्षेत्र में बुनियादी संशोधन करनेवाली यह शास्त्रज्ञ थी, लीझ माइट्नर।

आईन्स्टाईन उसे ‘हमारी ‘मादाम क्यूरी’ इस नाम से संबोधित करते थे। इस महान संशोधक का नाम १५ बार नोबेल पुरस्कार के लिए दिया गया। किन्तु एक बार भी उसे यह पुरस्कार नहीं मिला, तो इस अणु विखंडन के संशोधन में उसकी मदत करनेवाले ‘आटो हान’ को उस खोज का श्रेय देकर नोबेल पुरस्कार दिया गया। रसायानशास्त्र और भौतिकशास्त्र इन दोनों क्षेत्रों में भारी कार्य करने पर भी उसका श्रेय उससे छीन लिया गया। किन्तु ऐसा होने पर भी उसने अणुबम निर्मिति के लिए प्रकल्प का निमंत्रण होते हुए भी स्वीकार नहीं किया, जब कि इस आमंत्रण का स्वीकार करने से उसे पैसा और प्रतिष्ठा दोनों ही प्राप्त हो सकती थी। किन्तु उसे यह मान्य नहीं था। अपने ज्ञान का उपयोग उसे अणुबम निर्मिति के लिए नहीं करना था। उसका ज्ञान समाज के कल्याण अअके लिए हो ऐसा उसे लगता था। इसीलिए उसने अणुबम निर्मिति के कार्य के लिए कठोरता से नहीं कहा, जिस में उसका दृढ़ निश्‍चय झलकता है।

द्वितीय विश्‍वयुद्ध के काल में ज्यू वंशियों पर जो अनेक अत्याचार हुए, हिटलर के नाझी राज्यकाल में मानवता पर कालिख पोतनेवाली अनेक घटनाएँ घटित हुईं, वे मानवता पर विश्‍वास रखनेवाले किसी को भी शर्म से गर्दन झुकाने जैसी ही हैं। हिटलर के इस अत्याचार की शिकार ‘लीझ माइट्नर’ भी हुई। ‘लीझ माइट्नर’ अर्थात अणु विखंडन का महत्त्वपूर्ण शोध लगानेवाली महान शास्त्रज्ञ थीं। किन्तु उन्हें इस बात का श्रेय किसी के भी द्वारा नहीं मिला। किन्तु उसकी मृत्यु के बाद उसके संशोधन और त्याग का महत्त्व पूरे विश्‍व की समझ में आया।

परमाणु विखंडन

जब हिटलर सत्ता में आया, तब उसने ज्यू वंशियों पर अनेक अत्याचार करना शुरु कर दिया। इसमें अनेक शास्त्रज्ञ भी थे। उनमें से एक लीझ भी थी। हिटलर ने सारे जर्मन नागरिकों के द्वारा फार्म भरवाया। इसमें उन्हें अपनी व्यक्तिगत जानकारी देनी थी। क्योंकि हिटलर ने एक नया कानून लगाया था। इसके अनुसार ज्यू वंशज सारे लोगों को सरकारी नौकरी से कम करना था। किन्तु जो ज्यू सेना में लड़ रहे हैं या जिसके पिता, पुत्र युद्ध में शहीद हुए हैं, उनको इसमें सहूलियत थी। लीझ माइट्नर यह जन्म से ज्यू थी। उसने प्रॉटेस्टंट धर्म का स्वीकार किया था, मग़र ‘पूर्वज ज्यू थे’ यह बात उसने नहीं छिपाई थी। इसी लिए ज्यू विरोधी लहर में वह भी फँस गई। उसे जर्मनी छोड़ना पड़ा। अल्बर्ट आईन्स्टाईन जैसे महान वैज्ञानिक ने पहले ही जर्मन छोड़ दिया था। और जो वैज्ञानिक जर्मनी में थे, वे लीझ माइट्नर की तरह ही जर्मनी छोड़ रहे थे।

इसी कारण लीझ का संशोधन दुर्लक्षित हो गया। लीझ का जन्म १७ नवम्बर सन् १८७८ को ऑस्ट्रेलिया के एक ज्यू परिवार में हुआ था। किन्तु उसकी कर्मभूमि जर्मनी, स्वीडन रही। जर्मनी छोड़ने पर वह स्वीडन में गई। और वहाँ पर उसने अपना आगे का संशोधन शुरु किया। भौतिकशास्त्र में डॉक्टरेट की पदवी हासिल करनेवाली लीझ ने अपना अगला जीवन भौतिकशास्त्र के लिए ही समर्पित किया। उस समय उसने किरणोत्सार और अणु संशोधनक्षेत्र में ही कार्य करने की शुरुआत की। अणुगर्भ विज्ञानशास्त्र में भी उसने संशोधन शुरु किया। उस काल में इस विज्ञान संशोधन क्षेत्र में पुरुषों का ही एकाधिकार था। किन्तु पहली महिला नोबेल पुरस्कार विजयी शास्त्रज्ञ मादाम क्युरी से उसमें महिलाओं का आगमन हुआ। किन्तु ऊंगलियों पर गिनने जितनी ही महिलाएँ भौतिक और रसायनशास्त्र में संशोधन कर रही थीं, उनमें लीझ माइट्नर भी थीं। लीझ ने अपना सारा जीवन भौतिकशास्त्र के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने शादी भी नहीं की। हिटलरशाही में उनका संशोधन कर सकना यही उनके लिए सबसे बड़ी सज़ा थी।

लीझ ने अणु विखंडन क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण कार्य किए। इस संशोधन में ऑटो हान और फ्रिट्झ स्ट्रिसमन उनके सहायक थे। अनेक रातें जागकर, बिना विश्राम किए अविरत परिश्रम करते हुए लीझ ने अणुविखंडन क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण कार्य किए हैं। इसी अणुविखंडन के कारण अणुऊर्जा और अणुबम इन दो विरोधी शक्ति का निर्माण हुआ।

किन्तु मेरे द्वारा संशोधन किए गए कार्य का लाभ इस विश्‍व की भलाई के लिए ही हो, ऐसा लीझ को लगता था। शायद सामान्य परिस्थिति में उनके इस शोधकार्य का उपयोग अणुऊर्जा के लिए हो सकता था। किन्तु वह समय दूसरे विश्‍वयुद्ध का था। अणुविखंडन का प्रयोग सफल होने के बाद उससे और अधिक भयंकर अस्त्र किस तरह से बनाये जा सकते हैं, इसी में राजकीयकर्ताओं की रुचि थी। किन्तु अणुबम निर्माण में मैं सहायता नही करूँगी, यह बात कठोरता से कहनेवाली लीझ ने विजनवास में जाना पसंद किया।

जब तक वे जीवित थीं, लीझ के एक स्त्री होने के कारण उनके किए गए संशोधन का श्रेय उन्हें नहीं दिया गया। उनके सहायक रहनेवाले ‘हान’ को उस संशोधन का कर्ता घोषित किया गया। मुख्य रुप से लीझ को नोबेल न देना यह उस काल के पुरुषप्रधान संस्कृति का ही भाग था। इसके विपरीत उनके द्वारा किए गए संशोधन का श्रेय हान को मिलना यह बहुत बड़ा दुर्भाग्य था। किन्तु कालांतर में यह बात सारे जग को माननी ही पड़ी कि लीझ एक महान शास्त्रज्ञ थीं। किन्तु लीझ के जीते जी यह सुख उन्हें नहीं मिल सका, इसे उनका दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है।

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