११५. इस्रायल की महाप्रभावी गुप्तचरसंस्था- मोस्साद

   

‘रफी ऐतान’, ‘एली कोहेन’, …. इन नामों से शायद इस्रायली जनता परिचित हो सकती है, लेकिन दुनिया के अन्य लोग इन नामों से परिचित होंगे ही, ऐसा नहीं है| लेकिन ये हैं, इस्रायल में मानो दंतकथा (‘लिजेंड्स’) ही बन चुके हीरोज् के नाम – इस्रायल की विश्‍वविख्यात गुप्तचरसंस्था ‘मोस्साद’ के सिक्रेट एजंट्स के नाम, जिन्होंने देश की रक्षा के लिए, देश की प्रतिष्ठा को बरक़रार रखने के लिए, व़क्त आने पर अपनी जान की बाज़ी लगाकर, नामुमक़िन प्रतीत होनेवाले ऑपरेशन्स को मुमक़िन कर दिखाया|

‘मोस्साद’ यह इस्रायली गुप्तचरयंत्रणा का तीसरा महत्त्वपूर्ण अंग है| मोस्साद यह रक्षा मंत्रालय, संसद अथवा अन्य किसी भी लोकप्रातिनिधिक या प्रशासनिक संस्था की कार्यकक्षा में नहीं आता, मोस्साद के अध्यक्ष ये ठेंठ प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करते हैं और प्रधानमंत्री से ही ऑर्डर्स लेते हैं; मग़र फिर भी मोस्साद का कार्य यह ‘राष्ट्रीय कार्य’ ही माना जाता है| इन्साफ़, निष्ठा, नीति, विश्‍वासार्हता, अनुशासन, गोपनीयता इन तत्त्वों पर मोस्साद हमेशा अड़िग रहती है| कड़ी कसौटियों से परखकर नियुक्त किये गए अपनी कर्मचारी यही अपना बलस्थान है, यह पहचानकर मोस्साद ने हमेशा ही उनका विविधांगी विकास करने पर ज़ोर दिया है| किसी भी कार्य में कर्मचारी संघवृत्ति से काम करें, लेकिन व़क्त आनेपर ज़रूरत के समय उचित कल्पकता का इस्तेमाल कर स्वतंत्र रूप में निर्णय लेने के लिए कर्मचारियों में नेतृत्वगुण विकसित हों; साथ ही, योजना अचूक होने के लिए टीम में होनेवालीं मतभिन्नताओं का भी विचार किया जायें, यही उनके प्रशिक्षण का ध्येय होता है|

जर्मनी की नाझी पार्टी के विश्‍वयुद्धकालीन प्रमुख अधिकारी ऍडॉल्फ आईचमन पर चल रहे मुक़दमे का क़ामकाज़|

आज जागतिक संघर्ष का रूप बदल गया है| पहले राष्ट्रों में, समूहों में युद्ध होते थे| लेकिन आतंकवाद का प्रवेश हुआ और सारे गणित ही बदल गये| अब आतंकवाद के रूप में संघर्ष देशों की सीमाओं से देश की आम जनता के घरों तक आ पहुँचा है| ऐसे हालात में सेना जितना ही गुप्तचरयंत्रणा का भी महत्त्व अधोरेखांकित होता है| इस्रायल के शत्रुओं द्वारा आतंकवादी कारनामों का अवलंब किया जाने लगने के बाद मोस्साद के काम में बहुत ही बढ़ोतरी हुई है| कई बार इस्रायल के शत्रुओं के ‘घर में घुसकर भी’ मोस्साद ने उन्हें सबक़ सिखाया है|

मोस्साद की कार्यपद्धति बहुत ही जटिल है| इस्रायल की सीमाओं के बाहर गोपनीय जानकारियॉं इकट्ठा करना; इस्रायल के साथ राजनैतिक संबंध न होनेवाले और कुछ कारणवश संबंध ना रख सकनेवाले, लेकिन अन्दर से इस्रायल को प्रतिकूल ना होनेवाले राष्ट्रों की गुप्तचरयंत्रणाओं के साथ गुप्तसंधान बॉंधना; इस्रायल के शत्रुराष्ट्रों द्वारा अपारंपरिक शस्त्रास्त्र विकसित किये जाने में या उनका संग्रह किये जाने में रोड़ें पैदा करना; इस्रायलस्थित अथवा इस्रायल के बाहर होनेवाले इस्रायली आस्थापनों पर आतंकवादी हमलें ना होने देना; इस्रायल में लौटना चाहनेवाले ज्यूधमिर्ंयों को यदि कुछ मुश्किलें आ रही हैं, तो उन्हें सुरक्षित आने में उनकी सहायता करना; इस्रायल के हित का कोई भी काम करना – ऐसा मोस्साद का कार्य बहुस्तरीय है| उसके लिए आवश्यक होनेवालीं गोपनीय जानकारियॉं प्राप्त करने के लिए मोस्साद मानवी स्रोत तथा तंत्रज्ञानिक माध्यम दोनों का भी मुक्त रूप में इस्तेमाल करती है| उसीके साथ, इस्रायल के दोस्तराष्ट्रों की गुप्तचरयंत्रणाओं के साथ सहयोग बढ़ाते रहकर उनकी सर्वतोपरी सहायता करना, यह भी मोस्साद का महत्त्वपूर्ण कार्य है|

मोस्साद का कार्य सर्वोच्च गोपनीय पद्धति से चलता है| मोस्साद के तक़रीबन ७ हज़ार से अधिक कर्मचारी/सिक्रेट-एजंट्स होने का अन्दाज़ा व्यक्त किया जाता है और मोस्साद का वार्षिक बजेट लगभग २ अरब डॉलर्स से भी अधिक है ऐसा बताया जाता है|

‘मोस्साद’ की कार्यपद्धति का अन्दाज़ा हो जाने के लिए, बाद में इतिहास में विख्यात हुए कुछ गोपनीय ऑपरेशन्स पर संक्षेप में नज़र डालते हैं|

ऑपरेशन एन्टेबी के सूत्रधार योनाथन नेतान्याहू

द्वितीय विश्‍वयुद्धपूर्व दौर में जर्मनी का सर्वेसर्वा बने हिटलर की नाझी पार्टी ने ज्यू वंशसंहार का रवैया (‘फायनल सोल्युशन’) अपनाया था| उसे बनाने में और उसपर अमल करने में अग्रसर होनेवाले सभी नाझी अधिकारियों को, विश्‍वयुद्ध ख़त्म होने के बाद के दौर में, वे दुनिया के किसी भी कोने में, कहीं भी अज्ञातवास में छिपे बैठे हों, मोस्साद ने उन्हें ढूँढ़ निकालकर मौत के घाट उतार दिया है| उदा. अर्जेंटिना में अज्ञातवास में जीवन व्यतीत कर रहे ऍडॉल्फ आईचमन इस प्रमुख नाझी अधिकारी को मोस्साद ने सन १९६० में ढूँढ़ निकाला और उसे हवाईमार्ग से ही, लेकिन गोपनीय पद्धति से इस्रायल में लाया गया और उसपर मुक़दमा चलाकर उसने सारे अपराध क़बूल करने के बाद उसे मृत्युदंड दिया गया| मुख्य बात यानी उसे इस प्रकार दूसरे देश में से अपहरण कर इस्रायल में लाया गया है, यह बात उसपर मुक़दमा चलाने की घोषणा की जाने तक किसी को भी पता नहीं था| उपरउल्लेखित रफी ऐतान यह मोस्साद का सिक्रेट एजंट इस ऑपरेशन का सूत्रधार था|

‘ऑपरेशन व्रॅथ ऑफ गॉड’ – सन १९७२ में जर्मनी में जब म्युनिक ऑलिंपिक्स जारी थे, तब ‘ब्लॅक सप्टेंबर’ इस पॅलेस्टिनी आतंकवादियों के एक गुट ने ११ इस्रायली खिलाड़ियों का अपहरण कर उन्हें बंधक बनाकर रखा| उन्हें रिहा करने के बदले, इस्रायल की जेल में होनेवाले लगभग २३० से अधिक पॅलेस्टिनी विद्रोहियों को इस्रायल रिहा कर दें, ऐसी उनकी मॉंग थी| आतंकवादियों से किसी भी प्रकार की चर्चा नहीं, यह इस्रायल की नीति होने के कारण उन्होंने इस मॉंग को ठुकरा दिया| जर्मन पुलीस ने उनकी रिहाई के लिए किया हुआ ऑपरेशन फँसकर उसकी परिणती उन ११ खिलाड़ियों को जान से मार देने में हुई| लेकिन उसके बाद इस्रायल की तत्कालीन प्रधानमंत्री गोल्डा मायर की ऑर्डर से मोस्साद ने ‘ऑपरेशन व्रॅथ ऑफ गॉड’ शुरू कर, ‘ब्लॅक सप्टेंबर’ गुट के उस म्युनिक हत्याकांड में सहभागी हुए एक-एक सदस्य को विभिन्न स्थानों से ढूँढ़ निकालकर मौत के घाट उतार दिया|

‘ऑपरेशन मोझेस’ – वैसे ही, सन १९८० के दशक में सुदान में नागरी युद्ध शुरू होने के बाद जब वहॉं के ज्यूधर्मियों (‘इथियोपियन ज्यू’) के लिए संगीन हालात पैदा हुए, तब मोस्साद ने अगले कुछ साल गोपनीय हवाई ऑपरेशन (‘ऑपरेशन मोझेस’) चलाकर, उसके ज़रिये हज़ारो ज्यूधर्मियों को वहॉं से सुरक्षित रूप में इस्रायल लाया गया|

‘ऑपरेशन एन्टेबी’ – २७ जून १९७६ को तेल अवीव्ह से पॅरिस के लिए रवाना हुए ‘एअर फ्रान्स’ के एक हवाई जहाज़ का, ‘पॅलेस्टाईन लिबरेशन ऑर्गनायझेशन’ (‘पीएलओ’) के एक गुट ने अपहरण किया| अन्य यात्रियों के साथ ही १०६ इस्रायली यात्री भी होनेवाले इस विमान को, पूर्व अफ्रिका के युगांडास्थित ‘एन्टेबी’ हवाईअड्डे की ओर मोड़ा गया और उन सबको बंधक बनाया गया| अपहृत यात्रियों की रिहाई के बदले में, इस्रायल की जेल में होनेवाले कुछ पॅलेस्टिनी अरब सशस्त्र विद्रोहियों की रिहाई की मॉंग अपहरणकर्ता कर रहे थे|

लेकिन अपहरणकर्ताओं की मॉंगें पूरी करना यानी आतंकवाद के सामने सिर झुकानेसमान था, जो इस्रायल के तत्त्वों से विपरित था| सारी दुनिया इस्रायल के प्रतिसाद की ओर आँखें लगाकर बैठी थी| तब तक विभिन्न स्रोतों से जानकारियॉं हासिल करने का काम मोस्साद कर ही रही थी| आख़िरकार अपहरणकर्ता राज़ी नहीं हो रहे हैं यह देखकर लष्करी विकल्प का ही अवलंबन करना तय किया गया| अपहरणकर्ताओं को चर्चाओं में व्यस्त रखकर समांतर रूप में लष्करी मुहिम की तैयारी शुरू हुई| हवाईदल तथा कमांडोज् शामिल हुए इस मुहिम के सूत्रधार थे जोनाथन नेतान्याहू – विद्यमान इस्रायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतान्याहू के बड़े भाई (जो इस ऑपरेशन में शहीद हुए)!

चार इस्रायली हर्क्युलिस विमानों ने लगभग १०० सैनिक तथा सभी प्रकार के शस्त्रास्त्रों के साथ इस्रायल से उड़ान भरी| हज़ारो मीलों का प्रवास था और विभिन्न स्थानों में तैनात रडार यंत्रणाओं पर दिखने का डर होने के कारण ये विमान कई बार समुद्र पर से केवल सौ फीट की उँचाई पर उड़ रहे थे| विमान एन्टेबी हवाईअड्डे पर पहुँचने के बाद, पहले तय कियेनुसार सैनिक विभाजित हुए| मोस्साद ने अचूकतापूर्वक निकाली जानकारी का इस्तेमाल कर तेज़ी से आगे बढ़ते हुए, ‘नंॉईजलेस’ रायफलों की सहायता से, बीच में आनेवाले अपहरणकर्ताओं तथा हवाईअड्डे पर के सुरक्षारक्षकों को मारते हुए इस्रायली कमांडोज् आगे आगे सरक रहे थे| आख़िरकार सभी अपहरणकर्ताओं तथा युगांडा के सैनिकों को मार देने में क़ामयाबी मिली| महज़ ५३ मिनटों में यह ऑपरेशन ख़त्म हुआ था| तेज़ी से सब यात्रियों को उन विमानों में भरकर विमान पुनः इस्रायल लौट भी आये| मोस्साद की कीर्ति में और चार चॉंद लग गये थे|

जहॉं आम जनता के लिए प्रवेशबंदी थी, ऐसे सिरिया के कई स्थानों में प्रवेश करने की एली कोहेन को इजाज़त थी|

वैसे ही, ‘एली कोहेन’ इस मोस्साद के साहसी सिक्रेट एजंट ने सन १९६१-६५ ये पॉंच साल, जान की परवाह न करते हुए सिरिया में – सिरियन बिझनेसमन होने का बहाना कर वास्तव्य किया और वहॉं के राजकीय एवं लष्करी अंतर्गत दायरे में महत्त्वपूर्ण स्थान (सिरियन रक्षामंत्री के प्रमुख सलाहगार) हासिल कर वहॉं की महत्त्वपूर्ण ख़बरें वह मोस्साद को देता रहा| ऐसा कहा जाता है कि सन १९६७ के ६-दिवसीय युद्ध में सिरिया से इस्रायल ने गोलन पहाड़ियॉं जीत लेने में, एली ने सिरिया में किये हुए इस गुप्तकार्य का अहम हिस्सा था| लेकिन आख़िरकार उसके बारे में सिरियन गुप्तचरखाते को शक़ पैदा होकर उसे पकड़ा गया और उसपर मुक़दमा चलाकर उसे ज़ाहिर रूप में फॉंसी दी गयी|

ऐसे अनगिनत साहसी ऑपरेशन्स को अब तक मोस्साद ने अंजाम दिया है और उसी का ख़ौफ़ इस्रायल-शत्रुओं के दिल में हमेशा के लिए पैदा हुआ है और मोस्साद के ईर्दगिर्द एक क़िस्म का गूढ वलय निर्माण हुआ है| जो भी हो, लेकिन मोस्साद यह इस्रायल के अस्तित्व का एक मुख्य आधार बनी है, यह बात नकारी नहीं जा सकती!(क्रमश:)

– शुलमिथ पेणकर-निगरेकर

 

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