‘५जी’ तंत्रज्ञान की ट्रायल के लिए चीनी कंपनियों को मौका न देने का भारत का फैसला निराशाजनक – चीन के दूतावास की प्रतिक्रिया

नई दिल्ली – भारत ने ‘५जी’ टेलिकॉम कंपनियों को ट्रायल की अनुमति दी, लेकिन उससे चीन की कंपनियों को दूर रखा गया है। उस पर भारत स्थित चीन के दूतावास ने नाराज़गी ज़ाहिर की। यह फैसला केवल चीन के वैध अधिकारों को ही पैरों तले नहीं कुचल रहा है, बल्कि इससे भारतीय उद्योग क्षेत्र का वातावरण भी प्रभावित होगा, ऐसा चीन के दूतावास के प्रवक्ता वँग शिओजिआन ने कहा है। एक तरफ लद्दाख की एलएसी पर बड़े पैमाने पर तैनाती कायम रखनी है और दूसरी तरफ चीन को भारत से व्यापारी फायदे निगलने हैं, यह चीनी दूतावास के प्रवक्ता की प्रतिक्रिया से फिर एक बात स्पष्ट हुआ है।

भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर जी७ परिषद के लिए ब्रिटेन में हैं। भारत और चीन के संबंध इन दिनों मुश्किल स्थिति में होने की बात जयशंकर ने इस परिषद के दौरान स्पष्ट की। चीन ने भारत की एलएसी पर भारी पैमाने पर लष्करी तैनाती की है। इससे दोनों देशों के संबंधों में तनाव उत्पन्न हुआ है, इसे नकारा नहीं जा सकता, ऐसा जयशंकर ने कहा। चीन की यह लष्करी तैनाती साल भर से है और चीन यहाँ से पीछे हटने के लिए तैयार नहीं है। इससे सीमा पर तनावपूर्ण माहौल है। ४५ साल बाद इस सीमा पर पिछले साल पहली ही बार खूनखराबा हुआ, ऐसा कहकर विदेश मंत्री ने गलवान वैली के संघर्ष की याद करा दी।

एक तरफ धमकियाँ देना, खूनखराबा कराना और उसी समय दूसरी तरफ, अन्य क्षेत्रों में उत्तम संबंध स्थापित करने के प्रस्ताव रखकर, उसे प्रतिसाद मिलेगा ऐसी उम्मीद रखना, यह व्यवहार्य नहीं है। एलएसी पर कुछ हद तक तनाव कम हुआ है यह सच है, लेकिन यह तनाव खत्म नहीं हुआ है। इसलिए भारत और चीन के संबंध पहले जैसे नहीं बने हैं, ऐसा बताकर जयशंकर ने वास्तविकता का एहसास करा दिया। उनके इन बयानों से, चीन के संदर्भ में भारत की भूमिका अधिक ही सुस्पष्ट हुई है। ५जी तंत्रज्ञान के बारे में भारत ने किए फैसले पर चीन ने व्यक्त की नाराज़गी का भारत पर असर नहीं होगा, यह बात जयशंकर के बयान से सामने आ रही है।

मंगलवार को भारत के दूरसंचार विभाग ने कुछ कंपनियों को ५जी ट्रायल्स की अनुमति दी थी। इनमें रिलायन्स जिओ, भारती एअरटेल, व्होडाफोन आयडिया और एमटीएनएल इन कंपनियों का समावेश है। लेकिन इनमें से कोई भी कंपनी चीन के तंत्रज्ञान का इस्तेमाल ना करें, ऐसे निर्देश दिए गए हैं। इससे चीन की टेलीकॉम कंपनियों को बहुत बड़ा नुकसान हुआ है। इससे पहले चीन की ५जी क्षेत्र की कंपनियाँ भारत की ओर बहुत बड़े मार्केट के रूप में देख रहीं थीं। लेकिन अब भारत ने किनारा करने के बाद इन कंपनियों का व्यवसाय खतरे में पड़ा स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगा है।

ऐसी परिस्थिति में चीन के भारत स्थित दूतावास ने व्यक्त की नाराज़गी, यह बहुत ही स्वाभाविक बात साबित होती है। लेकिन एलएसी पर भारत के विरोध में अपनाई भूमिका की ज़बरदस्त आर्थिक क़ीमत सहने पर चीन को मजबूर करने का निर्णय भारत ने किया है। उसके परिणाम दिखाई देने लगे होकर, सीमा विवाद और द्विपक्षीय सहयोग ये दो अलग-अलग बातें हैं, ऐसी सुलहकारी नीति चीन अपना रहा है। लेकिन अगर चीन सहयोग चाहता है, तो भारत की सीमा से चीन का लष्कर पीछे हटाकर आनेवाले समय में भी जिम्मेदारी से गतिविधियाँ करें, ऐसी चेतावनी भारत द्वारा दी जा रही है।

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