११०. सदा सुसज्जित ‘आयडीएफ’

इस्रायल देश उसके जन्म से ही इतने संघर्षों में उलझा है कि आज हम यदि इंटरनेट पर ‘इस्रायल’ सर्च करते हैं, तो प्रायः इस्रायल से संबंधित किसी न किसी संघर्ष की ही, युद्ध की ही ख़बर ऊपर दिखायी देती है| इससे यह पता चलता है कि इस देश के लिए सेनादलों की कितनी अहमियत है|

लेकिन इस्रायली सेनादल का अर्थात् ‘इस्रायली डिफेन्स फोर्सेस’ (‘आयडीएफ’) का योगदान केवल इस्रायल की रक्षा में ही नहीं, बल्कि कुल मिलाकर इस्रायल के समूचे विकास में ही महत्त्वपूर्ण है| ‘स्टार्टअप नेशन’ कहलानेवाले इस्रायल के सर्वाधिक स्टार्टअप्स इन, इस्रायली सेनादल से यानी ‘आयडीएफ’ से प्रशिक्षण लेकर बाहर निकले युवाओं ने ही शुरू किये हैं|

इस सफलता में अहम भूमिका निभाता है, वह हायस्कूल के बाद सभी ज्यूधर्मीय छात्रों के लिए बंधनकारक होनेवाला सैनिकी प्रशिक्षण| जिस उम्र में दुनिया के अन्य देशों के छात्र अपने दोस्तों-सहेलियों के साथ कॉलेजलाईफ ‘एन्जॉय’ करते हैं, उस उम्र में इस्रायली बच्चें देश के लिए संघर्ष करने तैयार होते हैं – शारीरिक-मानसिक एवं बौद्धिक दृष्टि से भी! और इस प्रशिक्षण के दौरान भी उन्हें जीवन-मृत्यु जितने महत्त्वपूर्ण फ़ैसलें करने पड़ने के कारण और उन फ़ैसलों का उत्तरदायित्व भी उन्हीं के कँधों पर दिया जाने के कारण ज़िम्मेदारीपूर्वक फ़ैसलें करने की आदत उन्हें हो जाती है| इस कारण ये युवा इतनी छोटी उम्र से ही जीवन के संघर्ष भी समर्थ रूप से झेल सकते हैं, जिसका फ़ायदा उन्हें उनके उद्योगव्यवसाय में भी होता है|

३१ मई १९४८ को एक सादे समारोह में ‘आयडीएफ’ की स्थापना की गयी|

आज प्रत्यक्ष युद्ध का सर्वाधिक अनुभव होनेवाले दुनिया के सेनादलों में जिसकी गिनती होती है, ऐसे इस ‘इस्रायली डिफेन्स फोर्सेस’ का गठन ३१ मई १९४८ को; यानी इस्रायल की आज़ादी के दो ही हफ़्तों में किया गया| सन १९२० के दशक से ही ज्यूधर्मियों की स्वसुरक्षा के लिए स्थापन किये गये और कुछ समय से इस्रायल की आज़ादी के लिए प्रयास करनेवाले हॅगाना जैसे निमलष्करी दल का, तथा इर्गुन, लेही जैसे सशस्त्र गुटों के सदस्यों का इस सेना में समावेश किया गया था| इस्रायल का स्वतंत्रतायुद्ध उस समय शुरू हो चुका था और वह भी बड़े प्रस्थापित अरब शत्रुराष्ट्रों के विरोध में|

इस्रायल की अखंडता और सार्वभौमत्व को बरक़रार रखना, इस्रायल से युद्ध का ऐलान किये हुए शत्रुओं का ख़ात्मा करना, इस्रायल के संभाव्य शत्रुओं को भविष्य में इस्रायल से युद्ध छेड़ने से परावृत्त कैसे किया जाये यह देखना – प्रथम राजकीय स्तर पर और ऐसे प्रयास नाक़ाम होने पर ही सैनिकी स्तर पर, ये ‘आयडीएफ’ के प्रमुख उद्देश्य हैं| उनमें बाद के समय में, किसी भी प्रकार के आतंकवाद से इस्रायल को सुरक्षित रखना, यह भी अहम उद्देश्य समाविष्ट हो गया|

इतनी सदियों के महत्प्रयासों के बाद ज्यूधर्मियों का स्वयं का राष्ट्र, अपनी हक़ की भूमि में स्थापित हुआ था, उसे गँवाना मुनासिब ही नहीं था| इस कारण, उस युद्ध में और बाद के सभी युद्धों में भी, उपरोक्त उद्देश्यों के साथ ही, ‘आयडीएफ’ की मार्गदर्शक तत्त्वप्रणाली का पहला तत्त्व यही था कि किसी भी युद्ध में इस्रायल का शत्रुराष्ट्र कितना भी ताकतवर क्यों न हों, इस्रायली सेना को अब इसके आगे कभी भी, एक भी लड़ाई हारकर नहीं चलेगा|

उसीके साथ, इस्रायल का क्षेत्रफल इतना कम है कि किसी भी लड़ाई को इस्रायल की भूमि में भीतर तक आने देना यह इस्रायल के लिए मुनासिब ही नहीं था| इस कारण हर एक आक्रमण का जल्द से जल्द अंदाज़ा लेकर (‘अर्ली वॉर्निंग’) उसे प्रायः सीमा पर ही रोकने के प्रयास ‘आयडीएफ’ करता है| उसके लिए सेना का स्थलांतरण तथा अन्य निर्णयप्रक्रिया तेज़ गति से होना आवश्यक होने के कारण, सेना में पदक्रम के सोपान (‘हायरार्की’) कम से कम रखे गये हैं और कई ज़िम्मेदारी के फ़ैसलें स्थानिक स्तर पर ही करने की पद्धति अपनायी गयी है|

‘आयडीएफ’ में बतौर सैनिक भर्ती करते समय पुरुष एवं महिलाओं में किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाता| इस कारण महिलाएँ भी पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर युद्ध में सहभागी होतीं दिखायी देतीं हैं|

मूलतः जनसंख्या कम होने के कारण, युद्ध में सहभागी हो सकनेवाले सक्षम युवाओं की संख्या भी कम ही रहनेवाली थी| संख्याबल की इस कमी को शस्त्रास्त्रयंत्रणाओं की अत्याधुनिकता से और भेदकता से पूरा करने का ‘आयडीएफ’ का प्रयास रहता है और ये यंत्रणाएँ ‘आयडीएफ’ की विशिष्ट ज़रूरतों के अनुसार प्रायः इस्रायल में ही बनायीं जातीं हैं| मुख्य बात, संख्याबल हालॉंकि कम है, लेकिन जो भर्ती हुए हैं, वे इस्रायली सैनिक बहुत ही मुश्किल चयनप्रक्रिया के ज़रिये आये होने के कारण उच्चक्षमता के होते हैं और देश के लिए कुछ भी करने की उनकी तैयारी रहती है| ये उच्चक्षमता के इस्रायली सैनिक ही ‘आयडीएफ’ की मुख्य ताकत है|

लेकिन व़क्त आने पर आक्रमक बन सकनेवाला ‘आयडीएफ’ नीतियों की दृष्टि से बचावात्मक ही है; अर्थात् ‘आयडीएफ’ यह किसी भी कारणवश स्वयं होकर किसी पर भी आक्रमण नहीं करता, यहॉं तक कि भूमिविस्तार के लिए भी नहीं| सिर्फ़ इस्रायल पर हुए आक्रमणों से इस्रायल का बचाव करने के लिए आवश्यक उतनी आक्रमकता ‘आयडीएफ’ धारण करता है|

इस्रायल में बतौर एक नागरिक, महिलाएँ और पुरुष समान ही हैं| इसलिए देशसेवा का अवसर भी दोनों को समान रूप में दिया जाता है| ‘आयडीएफ’ में सैनिक के रूप में भर्ती करते समय पुरुष और महिलाओं में किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाता| इस कारण महिलाएँ भी पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर युद्ध में सहभागी होते दिखायी देती हैं| केवल गर्भवति महिलाओं को इसमें से छूट दी जाती है और उनके पेट में, ज्यूधर्म की परंपरा को आगे ले जानेवाला एक भविष्यकालीन सदस्य बढ़ रहा है, यह ध्यान में लेकर उनका सर्वतोपरी खयाल रखा जाता है|

‘आयडीएफ’ यह ‘कॉन्-स्क्रिप्शन आर्मी’ (इस्रायली जनता में से ही सैनिकभर्ती किया जानेवाला) होने के कारण उसकी संरचना भी अनोखी है| दुनिया की अन्य सेनाओं की तरह, पूर्ण सुसज्जित वायुसेना तथा नौसेना ये उसके महत्त्वपूर्ण घटक हैं ही| लेकिन भूसेना के दो अहम भाग होते हैं – १. पूर्णसमय सुसज्जित सेना (‘स्टँडिंग आर्मी’) और २. प्रारक्षित सेना (‘रिझर्व्हिस्ट्स’)|

इनमें से ‘स्टँडिंग आर्मी’ यानी पूर्णसमय (फुलटाईम) सैनिकों की सेना| यह हालॉंकि संख्या से बहुत बड़ा नहीं होता, लेकिन व़क्त आने पर बहुत ही कम समय में युद्ध के लिए तैनात किया जा सकता है| वहीं, प्रारक्षित सेना यानी हायस्कूल के बाद बंधनकारक होनेवाला सैनिकी प्रशिक्षण लेकर बाहर निकले इस्रायली युवा स्त्री-पुरुष| स्टँडिंग आर्मी की तुलना में इनकी संख्या बहुत ज़्यादा होती है| सैनिकी प्रशिक्षण के बाद उनमें से हर एक जन प्रारक्षित सेनाटुकडियों में से किसी एक टुकड़ी के साथ जुड़ जाता है और आपत्कालीन परिस्थिति में बुलावा आने पर वह उसी टुकड़ी को रिपोर्ट करता है|

इस्रायली ‘चीफ ऑफ जनरल स्टाफ’ अवीव कोचावी अमरिकी सेनानी के साथ चर्चा करते हुए|

सैनिकी प्रशिक्षण ख़त्म होने के बाद ये युवा अपने अपने उद्योगव्यवसाय में-शिक्षा में व्यग्र होते हैं और केवल आपत्कालीन परिस्थिति में ही इन्हें शीघ्र बुलावा भेजकर रिपोर्ट करने के लिए कहा जाता है| हालॉंकि ये पूर्णसमय सैनिक नहीं होते, मग़र उनसे युद्धअभ्यास नियमित रूप से कराया जाता है और सेना में विभिन्न सेवाओं में सहभागी होने का मौक़ा उन्हें मिलता है| ये प्रारक्षित सैनिक प्रत्यक्ष युद्ध में सहभागी होने के साथ साथ बतौर तंत्रज्ञ, संपर्क एवं गुप्तचर अधिकारी, कॉम्बॅट प्रशिक्षक, कार्टोग्राफर (ऩक्शानिर्माण), प्रशासन, कॉम्प्युटर ऑपरेटर, डॉक्टर, वकील अथवा सेना के लिए आवश्यक ऐसी तत्सम किसी भी सेवा में भर्ती किये जाते हैं| अब महिलाएँ भी पुरुषों की बराबरी में, अन्य सेवाओं के साथ साथ प्रत्यक्ष युद्ध में भी अधिक से अधिक संख्या में सहभागी हो रहीं हैं|

भूसेना, नौसेना तथा वायुसेना इन तीनों का भी एक एकत्रित सेनाप्रमुख होता है (‘चीफ ऑफ जनरल स्टाफ’), जो रक्षामंत्री को रिपोर्ट करता है|

‘आयडीएफ’ अपने सैनिकों का चरितार्थ चलाने के साथ ही उनके सर्वांगीण विकास का भी खयाल रखता है| उदा. जिन सैनिकों को, आगे पढ़ने की इच्छा होकर भी प्रतिकूल परिस्थिति के कारण पढ़ाई अधूरी छोड़नी पड़ी है, ऐसे सैनिकों को पढ़ाई पूरी करने का अवसर दिया जाता है| वैसे ही, सैनिक यदि सेना के लिए सहायकारी साबित होनेवाला ऐसा कोई नया तंत्रज्ञान आत्मसात करना चाहें, तो उसे सरकारी खर्चे से सीखने का अवसर मिलता है|

तो ऐसा यह ‘आयडीएफ’ वास्तविक रूप में ‘जनता की सेना’ है, जिसके लिए ‘इस्रायल की सुरक्षा’ यही प्रथम एवं एकमात्र प्राथमिकता है और जिसे वे जान हथेली पर रखते हुए निभाते हैं|(क्रमश:)

– शुलमिथ पेणकर-निगरेकर

 

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