‘फेडरल रिज़र्व’ के प्रमुख पॉवेल के बयान के बाद वैश्विक शेअर बाज़ार में गिरावट

वॉशिंग्टन – पिछले कुछ दिनों में सामने आए आर्थिक आंकड़े उम्मीद से अधिक मजबूत अर्थव्यवस्था के संकेत देते हैं। इसकी वजह से करीबी समय में ब्याजदर की बढ़ोतरी पहले के अनुमान से अधिक हो सकती है, ऐसा इशारा फेडरल रिज़र्व के प्रमुख जेरोम पॉवेल ने दिया। पॉवेल के इस बयान का वैश्विक शेअर बाज़ार पर गहरा असर पडा है और कई निदेशांकों में गिरावट आई। एशिया के प्रमुख शेअर बाज़ार में से एक ‘हैंग सैंग’ लगभग ढ़ाई प्रतिशत गिरा। इसके अलावा दक्षिण कोरिया के ‘कॉस्पि’ में १.३ प्रतिशत गिरावट आई।

पिछले कुछ महीनों में वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी समान माहौल है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, वर्ल्ड बैंक, संयुक्त राष्ट्र संगठन, वैश्विक व्यापार संगठन के साथ कई प्रमुख संगठन एवं वित्त क्षेत्र की कंपनियों ने साल २०२३ में मंदी से नुकसान होगा, ऐसा अनुमान लगाया है। इसके लिए विश्व के प्रमुख देश कर रहे ब्याजदर की बढ़ोतरी एक प्रमुख कारण होगी, ऐसा कहा जा रहा है। अमरीका, यूरोप और अन्य प्रमुख देशों ने महंगाई में उछाल को रोकने का कारण बताकर ब्याजदर बढ़ोतरी का लगातार समर्थन किया है।

पिछले महीने अमरीका की ‘फेडरल रिज़र्व’ समेत ‘यूरोपियन सेंट्रल बैंक’ और ‘बैंक ऑफ इंग्लैण्ड’ ने ब्याजदर में बढ़ोतरी की थी। ‘फेडरल रिज़र्व’ ने ०.२५ प्रतिशत बढ़ोतरी करने से अमरीका में ब्याजदर बढ़कर ४.७५ प्रतिशत हुआ था। लेकिन, इसके बाद दर बढ़ोतरी की गति धीमी होगी और वह ना के बराबर होगी, ऐसा फेडरल ने कहा था। मंगलवार को अमरिकी संसद के सामेन सुनवाई के दौरान पॉवेल की भूमिका में बदलाव दिखाई दिया।

अर्थव्यवस्था अधिक मज़बूत होने के आंकड़े सामने आए हैं और इसकी वजह से महंगाई निदेशांक बढ़ सकता है, यह दावा पॉवेल ने सिनेट पैनल के सामने किया। इसकी वजह से महंगाई रोकने के लिए ब्याजदर में अधिक बढ़ोतरी की जाएगी और वह इससे पहले के अनुमान से अधिक होगी, ऐसा उन्होंने कहा। फेडरल रिज़र्व ने पिछले साल से अब तक आठ बार ब्याजदर बढाया है। इसमें ०.७५ से ०.२५ प्रतिशत बढ़ोतरी का समावेश था। पिछले महीने ०.२५ प्रतिशत ब्याजदर बढ़ोतरी करने के बाद अगली बढ़ोतरी ना के बराबर होगी, ऐसा कहा जाता रहा। लेकिन, पॉवेल की वजह से यह बढ़ोतरी भी बड़ी होने के संकेत प्राप्त हो रहे हैं।

डॉलर का ब्याजदर बढ़ने पर अन्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर इसका बुरा असर पडेने की बात पिछले साल से सामने आयी है। इसकी वजह से पॉवेल का बयान अंतरराष्ट्रीय स्तर के निवेशकों के लिए झटका होगा। इसकी गूंज वैश्विक शेअर बाज़ार में सुनवाई दी। एशिया और यूरोप के अधिकांश शेअर बाज़ारों में गिरावट आई। इनमें चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, जर्मनी, फ्रान्स, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया के प्रमुख निदेशांकों का समावेश है।

अमरीका के साथ कई पश्चिमी देशों में महंगाई दर ने विक्रमी स्तर तक छलांग लगाई थी। महंगाई में बढ़ते उछाल के कारण आम जनता को भारी नुकसान पुहंचा है और कई देशों में ‘कॉस्ट ऑफ लीविंग क्राइसिस’ निर्माण हो गया था। महंगाई और इससे जुडी समस्याओं का ठिकरा पश्चिमी देशों ने रशिया-यूक्रेन युद्ध एवं कोरोना के फैलाव पर फोड़ा था। लेकिन, वास्तव में इन देशों की गलत नीति ही इसके लिए ज़िम्मेदार होने पर कई आर्थिक विशेषज्ञ और विश्लेषकों ने बार-बार ध्यान आकर्षित किया है।

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