११३. सदा संघर्षग्रस्त इस्रायल-२

   

सन १९५६ के सुएझ युद्ध के बाद आंतर्राष्ट्रीय पटल पर इस्रायल का दबदबा बहुत ही बढ़ गया गया था| लेकिन सशस्त्र पॅलेस्टिनी अरबों से इस्रायल पर होनेवाले हमलें कुछ कम नहीं हुए थे, बल्कि वे धीरे धीरे बढ़ते ही जा रहे थे| इस कारण पहले के दशकों की तरह ही, युद्धों के बीच की कालावधियों में भी इस्रायली सेनादलों को ‘रिप्रायझल ऑपरेशन्स’ जारी ही रखनी पड़ीं|

लेकिन सन १९५६ के इजिप्त के साथ के युद्ध में इस्रायल ने जीत लिया ‘सिनाई’ प्रांत इस्रायल के पास ही था और उसे पुनः जीत लेने का मौक़ा ही इजिप्त ढ़ूँढ़ रहा था| वह मौक़ा इजिप्त को मिला, सन १९६७ के – ‘अरब-इस्रायली ६-दिवसीय युद्ध’ के रूप में (‘६-डे वॉर’)|

इस्रायल विरुद्ध इजिप्त-सिरिया-जॉर्डन इनमें लड़े गए इस युद्ध के कई कारण थे| सिनाई रेगिस्तान का इस्रायल के पास होनेवाला कब्ज़ा, इस मुद्दे को लेकर इजिप्त के साथ झगड़ा था, सिरिया के साथ गोलन पहाड़ियों के कब्ज़े पर से झगड़ा था; वहीं, जॉर्डन के साथ जॉर्डन नदी के पानी के बँटवारे को लेकर झगड़ा था| उसीके साथ, सिरिया, लेबॅनॉन और जॉर्डन की भूमि का इस्तेमाल कर पॅलेस्टिनी सशस्त्र अरब गुट इस्रायल में उपद्रव मचाते हैं, यह भी झगड़े का मुद्दा था ही|

एक पॅलेस्टिनी सशस्त्र अरब गुट ने नवम्बर १९६६ में इस्रायल में कराये हुए ऐसे ही एक आतंकवादी कारनामे का कारण हुआ और उसके सुराग, उस समय जॉर्डन के कब्जे में होनेवाले वेस्ट बँक के एक गॉंव तक पहुँचे| आयडीएफ ने सीधे उस गॉंव पर हमला किया| इस कार्रवाई में गॉंव के १८ अरब मारे गये और ५४ लोग ज़ख्मी हुए| वहॉं तैनात जॉर्डन का सेना को आयडीएफ ने खदेड़ दिया| जॉर्डन इस युद्ध में उतरने के लिए यह तात्कालिक कारण हुआ|

उसीके साथ, इस्रायली हवाईदल की सिरियन हवाईदल के साथ हुई मुठभेड़ में इस्रायल ने सिरिया के छः लड़ाक़ू विमान गिरा दिए|

इसके बाद, इजिप्त के साथ लष्करी सहायता के समझौते रहनेवाले सिरिया और जॉर्डन को इस्रायलविरुद्ध के इन संघर्षों में सहायता ना करने की वजह से इजिप्त के राष्ट्राध्यक्ष नासर की उन दोनों ने आलोचना शुरू की| उससे बेचैन होकर नासर ने आक्रमक कदम उठाना शुरू किया| इजिप्त ने २३ मई १९६७ को पुनः इस्रायली जहाज़ों के लिए ‘स्ट्रेट ऑफ तिरान’ बंद कर रहे होने की घोषणा की और सिनाई के रेगिस्तान की सीमा पर सेना को इकट्ठा करना शुरू किया| दरअसल ‘इस्रायली जहाज़ों के लिए स्ट्रेट ऑफ तिरान का बंद किया जाना’ यह ‘युद्ध की घोषणा’ मानी जायेगी, ऐसा इस्रायल ने वारंवार चेताया था, फिर भी नासर ने यह कदम उठाया| इजिप्त ने अचानक अपनायी इस भूमिका के लिए, ‘सोव्हिएत द्वारा उन्हें इस्रायली सेना की हलचल के बारे में दी गयी ग़लत जानकारी’ यह भी एक तात्कालिक कारण बताया जाता है|

५ जून १९६७ को इस्रायली हवाईदल ने इजिप्त की एअरस्ट्रिप्स पर हमलें कर अधिकांश इजिप्शियन लड़ाक़ू विमान नाक़ाम कर दिए| उसके बाद जब सिरिया और जॉर्डन इजिप्त के पक्ष में इस युद्ध में उतरे, तब अगले छः दिनों में इस्रायली सेनादल ने उन्हें भी मुँहतोड़ जवाब दिया| अगले छः दिनों में इस्रायल ने – इजिप्त से सिनाई का सुएझ नहर तक का लगभग सारा भूभाग एवं गाज़ापट्टी; साथ ही, सिरिया से गोलन पहाड़ियों का अधिकांश भाग और सन १९४८ का युद्ध का बाद जॉर्डन का कब्ज़े में होनेवाले वेस्ट बँक का अधिकांश भाग और सबसे अहम बात यानी पूर्व जेरुसलेम शहर भी जीत लिया था| १० जून को युद्ध समाप्त हुआ था!

इस्रायल ने जीते हुए अरबों के खिलाफ़ के ‘६-डे वॉर’ में इजिप्त के हज़ारों सैनिक मारे गये थे; वहीं, हज़ारों की तादात में इस्रायली सेना के हाथ लगे थे|

इस प्रकार इस्रायली सेनादलों ने अभूतपूर्व वीरता दिखाकर केवल छः ही दिनों में इस्रायल की सीमाओं का अच्छाख़ासा विस्तार किया था| इस्रायली सेनादलों का मनोबल बहुत ही बढ़ गया था; वहीं, अरब सेनाओं का मनोबल पूरी तरह टूट चुका था| इस युद्ध में इस्रायल के लगभग आठसौ-नौंसो सैनिक मारे गये थे; वहीं, अरब राष्ट्रों के मृत सैनिकों की संख्या तक़रीबन दस हज़ार से पंद्रह हज़ार बतायी जाती है|

इस युद्ध के बाद अरब राष्ट्रों में इस्रायल के प्रति होनेवाली शत्रुभावना और भी बढ़ी थी| सितम्बर १९६७ में खार्टूम परिषद में अरब राष्ट्रों ने इस्रायल के साथ की ‘३-नो’ नीति घोषित की| अब इसके आगे अरब राष्ट्रों द्वारा – इस्रायल के साथ शांति ‘नहीं’, इस्रायल को मान्यता ‘नहीं’ और इस्रायल के साथ चर्चा ‘नहीं’ यह नीति अपनायी जानेवाली थी|

इस पराजय के कारण उबल रहे इजिप्त ने शुरू शुरू में सुएझ नहर की रेखा में कई स्थानों पर इस्रायली सेना के साथ मुठभेड़ें शुरू कीं, सिनाई प्रांत में घुसपैंठ की कोशिशें चालू कीं| इन छोटीमोटी मुठभेड़ों के सिलसिले का रूपान्तरण आगे चलकर बाक़ायदा युद्ध में हुआ| ८ मार्च १९६९ को नासर ने युद्ध का औपचारिक ऐलान किया, जिसे ‘वॉर ऑफ़ ऍट्रिशन’ (इस्रायली सेना को कई जगहों पर मुठभेड़ों में उलझाकर थका देते हुए सिनाई का कब्ज़ा छोड़ने पर मजबूर करना) कहा जाता है| सन १९६७ से १९७० ऐसे तीन साल यह युद्ध चला और उसके बाद अमरीका की मध्यस्थता से युद्धविराम का समझौता किया गया|

लेकिन ज़ाहिर है, अरब, ख़ासकर इजिप्त चुपचाप बैठनेवाला नहीं था| सन १९७० में नासर का मृत्यु हुई| उसके बाद इजिप्त के राष्ट्राध्यक्षपद पद पर विराजमान हुए अन्वर सादात ने सावधानी से अगले २-३ सालों में इजिप्त के सेनादल की ताकत बढ़ाना शुरू किया| उसीके साथ उन्होंने अन्य अरब राष्ट्रों से नये से संधान बांधकर इस्रायल के साथ संभाव्य युद्ध के लिए उन्हें तैयार करना शुरू किया| पिछले अनुभवों से, ठेंठ युद्ध के लिए कोई भी अरब राष्ट्र शुरू शुरू में तैयार नहीं था| लेकिन इजिप्त को सोव्हिएत से मिग-२१ विमान, टँक्स तथा अन्य शस्त्रास्त्र बड़े पैमाने पर मिलना तय होने के बाद उनका मनोबल बढ़ गया|

इजिप्त की सेना ने ६ अक्तूबर १९७३ को इस्रायल पर हमला किया| वह दिन ज्यूधर्मियों के सर्वोच्च पवित्र त्योहार का – ‘योम किप्पूर’ का था| ज़ाहिर है, पूरे इस्रायल भर में यह त्योहार मनाया जा रहा था और ठीक त्योहार के दिन ही इजिप्त हमला करेगा, इसका अँदाज़ा ना होने के कारण इस्रायली सेनादल उतना सिद्ध नहीं था| उसी समय गोलन पहाड़ियों की ओर से सिरिया ने भी इस्रायली सेनादलों पर हमलें किये| इस धक्कातंत्र (‘शॉक ट्रीटमेंट’) के कारण शुरुआती दौर में अरब सेनाओं को थोड़ीबहुत सफलता मिली| लेकिन अल्प-अवधि में ही सँभलकर इस्रायल ने अपनी रिज़र्व्ह सेना सिद्ध करके प्रतिहमला किया| लेकिन कुछ ही दिनों में उनके संसाधन जल्द ही ख़त्महोने के असार दिखायी देने लगे| तब इस्रायल की तत्कालीन प्रधानमंत्री गोल्डा मायर ने अमरीका के पास सहायता मॉंगी| लेकिन अरबों ने तेल की सप्लाई पर पाबंदी लगाने की धमकी देने के कारण शुरू शुरू में अमरीका ने कुछ ख़ास उत्साह नहीं दर्शाया; लेकिन सोव्हिएत द्वारा इजिप्त की सहायता की जा रही है, यह देखने के बाद अमरीका ने इस्रायल को संसाधनों की सप्लाई करना चालू किया| अमरिकी सप्लाई शुरू होने के बाद आयडीएफ का मनोबल बढ़ गया और उन्होंने इजिप्त और सिरियन सेनाओं को पीछे धकेलना शुरू किया| इजिप्त के मोरचे पर उन्होंने सुएझ नहर को तो क़ाबू में कर ही लिया; साथ ही वे कैरो से १०० किमी की दूरी तक जा पहुँचे| सिरियन मोरचे पर भी आयडीएफ ने गोलन पहाड़ियों पर तो कब्ज़ा कर ही लिया; साथ ही और आगे जाकर वे दमास्कस से तोपों की रेंज की दूरी तक जा पहुँचे|

सन १९७३ के योम किप्पूर वॉर में इस्रायली हवाई हमले में ध्वस्त हो चुकी सिरिय की राजधानी – दमास्कसस्थित सिरियन सेना के मुख्यालय की ईमारत

मध्यपूर्व के हालात नियंत्रण से बाहर जा रहे हैं यह देखकर, युद्धविराम के लिए दोनों महासत्ताओं के प्रतिनिधियों की परदे के पीछे की चर्चाएँ, प्रस्ताव शुरू ही थे| उन्हों आख़िरकार सफलता प्राप्त हुई और यह युद्ध २६ अक्तूबर १९७३ को ख़त्म हुआ| जनवरी १९७४ में इजिप्त के साथ इस्रायल का युद्धविराम समझौता भी हुआ| यह युद्ध इस्रायल, इजिप्त और सिरिया तीनों के लिए भी आर्थिक दृष्टि से भारी साबित हुआ|

इस कारण इस्रायल और अरबों में शांति स्थापित होनी चाहिए ऐसा इस्रायल के साथ साथ इजिप्त को भी लगने लगा और उस दिशा में खुले आम तथा परदे के पीछे का प्रयास शुरू हुए| उनके परिणामस्वरूप सन १९७८ का इस्रायल-इजिप्त समझौता (‘कँप डेव्हिड अकॉर्ड’) संपन्न हुआ| अमरीका के अध्यक्ष जिमी कार्टर की मध्यस्थता से व्हाईट हाऊस में इस्रायली प्रधानमंत्री मेनाकेम बेगिन तथा इजिप्त के अध्यक्ष अन्वर सादात के बीच ये समझौते हुए, जिनपर आधारित मार्च १९७९ में इस्रायल-इजिप्त के बीच शांतिसमझौता हुआ| इस शांतिसमझौते के अनुसार इस्रायल ने सिनाई प्रांत पुनः इजिप्त को लौटाना क़बूल किया| मध्यपूर्व में शांति ला सकनेवाला यह शांतिसमझौता करने के कारण मेनाकेम बेगिन और अन्वर सादात इन दोनों को सन १९७८ का नोबेल शांतिपुरस्कार संयुक्त रूप में दिया गया|

अमरिकी अध्यक्ष जिमी कार्टर ( मध्यस्थान पर) की मध्यस्थता से इस्रायली प्रधानमंत्री मेनाकेम बेगिन (दाहिनी ओर के) और इजिप्त के राष्ट्राध्यक्ष अन्वर सादात के बीच शांतिसमझौता हुआ|

अब ऐसा पहली ही बार हो रहा था कि एक अरब राष्ट्र ने इस्रायल के साथ चर्चा की, एक ‘राष्ट्र’ के रूप में इस्रायल को अधिकृत रूप में मान्यता दी और इस्रायल के साथ शांतिसमझौता किया….| (क्रमश:)

– शुलमिथ पेणकर-निगरेकर

 

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