जर्मन अर्थव्यवस्था पर बना कर्ज का भार विक्रमी स्तर पर – कर्ज राशि जीडीपी के ६६ प्रतिशत हुई

बर्लिन – कोरोना की महामारी और रशिया-यूक्रेन युद्ध के कारण ईंधन की कीमतों के हुए उछाल की पृष्ठभूमि पर जर्मन अर्थव्यवस्था पर बना कर्ज का भार विक्रमी स्तर पर जा पहुंचने की बात स्पष्ट हुई हैं। जर्मनी के फेडरल स्टैटिस्टिक्स ऑफिस ने साझा की हुई जानकारी के अनुसार देश की अर्थव्यवस्था  पर कुल २.३७ ट्रिलियन युरो का कर्ज हैं। जर्मनी की अर्थव्यवस्था (जीडीपी) ३.७२ ट्रिलियन युरो हैं और कर्ज की मात्रा बढ़कर ६६ प्रतिशत तक पहुंची हैं। जर्मनी यूरोपिय महासंघ की प्रमुख अर्थव्यवस्था होने से इसपर बढ़ा कर्ज का भार और इसका असर यूरोपिय अर्थव्यवस्था की चिंता बढ़ाने का कारण बनता है।

यूरोपिय महासंघ का गठन करने के वजह बनी ‘मास्ट्रिच ट्रिटी’ के अनुसार महासंघ के सदस्य देशों ने जीडीपी के ६० प्रतिशत से अधिक कर्ज ना उठाएं, ऐसा निर्धारित किया गया था। साल २००८-०९ की आर्थिक मंदी के बाद अधिकांश युरोपिय देशों ने यह मर्यादा तोड़ दी थी। इससे यूरोपिय महासंघ को कर्ज के संकट (डेब्ट् क्राइसिस) का भी सामना करना पड़ा था। कुछ सदस्य देशों को बेलआउट देने की मज़बूरी हुई थी। इस संकट के बाद महासंघ ने फिर एक बार कर्ज से संबंधित नियम सख्त किए थे।

लेकिन, कोरोना की महामारी और बाद में शुरू हुए रशिया-यूक्रेन युद्ध जैसी घटनाओं की वजह से यूरोपिय अर्थव्यवस्था को फिर से झटके लगना शुरू हुआ है। कोरोना के दौर में स्वास्थ और उद्योग क्षेत्र के साथ कुल अर्थव्यवस्था को सरकारी स्तर से भारी मात्रा में आर्थिक सहायता देनी पड़ी थी। इसके बाद अर्थव्यवस्था सामान्य होने के आसार दिखाई दे रहे थे तभी रशिया-यूक्रेन युद्ध शुरू हुआ। इस युद्ध की पृष्ठभूमि पर ईंधन की कीमतों का भारी उछाल हुआ और इससे महंगाई का विस्फोट हुआ।

ईंधन की कीमत और महंगाई काबू करने के लिए यूरोपिय देशों को अतिरिक्त आर्थिक सहायता का ऐलान करना पड़ा। इसके लिए कई देश फिर से बड़ा कर्ज उठाने के लिए मज़बूर हुए। इससे कर्ज की मात्रा फिर से बढ़नी शुरू हुई हैं और जर्मनी ने घोषित किए आँकड़ों से इसकी पुष्टि हुई है। साल २०२१ की तुलना में साल २०२२ में जर्मन अर्थव्यवस्था के कर्ज का भार दो प्रतिशत बढ़ने की जानकारी केंद्रीय बैंक ने जारी की थी। जर्मनी के हर नागरिक के सिर पर २८,१५५ युरो कर्ज होने की बात सामने आयी है।

कर्ज के बढ़ते भार के कारण इसका भुगतान करने के लिए बजट में अधिक प्रावधान करना होगा। इसका असर सरकारी खर्च और निवेश के हिस्से पर होगा, ऐसी चेतावनी आर्थिक विशेषज्ञ कार्सटन ब्रझेस्की ने दी। इस दौरान उन्होंने महासंघ के अन्य सदस्य देशों पर कर्ज का भार बढ़ने का अहसास भी कराया।

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