कोरोना, यूक्रेन युद्ध और आक्रामक वित्तीय नीति के कारण महंगाई का वैश्विकीकरण हो रहा है – रिज़र्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास

हैदराबाद – कोरोना की महामारी खत्म होने के बाद अर्थव्यवस्था सामान्य स्तर पर आ रही थी कि तभी यूरोप में युद्ध शुरू हुआ। इसकी वजह से महंगाई बढ़ी। ऐसी स्थिति में सप्लाई चेन बाधित होने से महंगाई का वैश्विकीकरण हुआ है, ऐसा बयान रिज़र्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने किया। कोरोना की महामारी, यूक्रेन युद्ध और इसके बाद देशों द्वारा अपनी वित्तीय नीति में किए गए आक्रामक बदलाव, यह तीन झटके हमें लगे हैं। इन झटकों की वजह से आर्थिक व्यवस्था बाधित हुई और आर्थिक एवं वित्तीय नीति बनाने के लिए आवश्यक जानकारी के स्रोत भी इससे प्रभावित हुए हैं, इस बहुत ही अहम बात पर रिज़र्व बैंक के गवर्नर ने ध्यान आकर्षित किया।

महंगाई का वैश्विकीकरणरिज़र्व बैंक के ‘डिपार्टमेंट ऑफ इकॉनॉमिक ऐण्ड पॉलिसी रिसर्च’ नामक सालाना समारोह में गवर्नर शक्तिंकांत दास बोल रहे थे। कोरोना की तीसरी लहर के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था संभल रही थी। ऐसे समय पर यूरोप में युद्ध शुरू हुआ। इस युद्ध का असर पूरे विश्व को भुगतना पड़ा और इसी कारण अनाज एवं ईंधन की किल्लत निर्माण हुई। यूक्रेन युद्ध की वजह से सप्लाई चेन बाधित हुई और इसकी वजह से महंगाई में उछाल आया। सप्लाई चेन की इस समस्या के कारण महंगाई का वैश्विकीकरण हुआ, इन शब्दों में शक्तिकांत दास ने देश के सामने खड़ी आर्थिक समस्या की जानकारी साझा की।

सन २०२० के मार्च महीने से अब तक कोरोना की महामारी, यूक्रेन युद्ध और विभिन्न देशों ने अपनाई आक्रामक वित्तीय नीति, यह तीन झटके भारत को लगे हैं। सीधे ज़िक्र किया ना हो, लेकिन अमरीका के फेडरल रिज़र्व द्वारा बढ़ाए गए ब्याजदर सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि विश्व के सभी प्रमुख देशों की अर्थव्यवस्थाओं के लिए चिंता का विषय बने हुए हैं। इस वजह से अंतरराष्ट्रीय मुद्रा अमरिकी डॉलर के मूल्य में बढ़ोतरी हुई और इसके सामने अन्य देशों की मुद्राओं के मूल्यों में गिरावट आई। इसका असर भारत पर भी पडा। इसका दाखिला रिज़र्व बैंक के गवर्नर देते हुए दिखाई दिए। खास तौर पर इन तीनों झटकों के बाद स्थिति अब भी संभली नहीं है। इसकी वजह से आर्थिक और वित्तीय नीति बनाते समय काफी बड़ी समस्या सामने आ रही है, इस पर दास ने ध्यान आकर्षित किया।

आर्थिक और वित्तीय नीति तय करते हुए कौनसी ज़रूरी सामान की किमतें स्थिर रखनी हैं, किसे कर में रियायत देनी है और किस पर अनुदान देना है, यह सोचना पडता है। इसके लिए गहरा परीक्षण एवं सर्वे किया जाता है। लेकिन, अर्थव्यवस्था को लगे तीन झटकों के सारे परिणाम अब भी सामने नहीं आए हैं। इस वजह से आर्थिक और वित्तीय नीति तय करने में बडी कठिनाई होती है, यह दावा रिज़र्व बैंक के गवर्नर ने किया। लेकिन, रिज़र्व बैंक अर्थव्यवस्था से जुडे इन सभी मुद्दों पर बारिकी से नज़र रखे हुए है, इसकी जानकारी भी शक्तिकांत दास ने इस दौरान साझा की।

मौजूदा समय की भू-राजनीतिक गतिविधियों की वजह से वैश्विक अर्थव्यवस्ता विभिन्न हिस्सों में बांटी गई है। ऐसी स्थिति में किसी भी तरह के सप्लाई के लिए सिर्फ एक ही स्रोत पर निर्भर रहना घातक साबित हो सकता है, इसका अहसास भी रिज़र्व बैंक के गवर्नर ने कराया।

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