ब्रिटेन-ऑस्ट्रेलिया के बीच ऐतिहासिक मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर

लंडन/कॅनबेरा – ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के बीच ऐतिहासिक मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर हुए हैं। इस समझौते के कारण दोनों देशों के व्यापार में १३ अरब डॉलर से अधिक की वृद्धि होगी कामा ऐसा बताया जाता है। ब्रिटेन ने युरोपीय महासंघ से बाहर निकलने के बाद प्रस्तावित किया और सफलता प्राप्त किया यह पहला मुक्त व्यापार समझौता साबित हुआ है। यह समझौता ब्रिटेन के साथ ‘स्पेशल रिलेशनशिप’ अधिक मज़बूत करनेवाला है, ऐसी प्रतिक्रिया ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने दी। चीन के साथ जारी व्यापार युद्ध की पृष्ठभूमि पर यह समझौता ऑस्ट्रेलिया के लिए राहत साबित हो सकता है, ऐसा दावा विश्लेषक कर रहे हैं।

शुक्रवार को हुए ‘वर्चुअल’ कार्यक्रम में ब्रिटेन की व्यापार मंत्री अ‍ॅन-मारि ट्रेव्हेलिअन और ऑस्ट्रेलिया के मंत्री डॅन टेहान ने समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस समय दोनों देशों के उच्चायुक्त और वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे। नए समझौते के अनुसार, दोनों देश ९० प्रतिशत से अधिक निर्यात पर टैक्स रद्द करनेवाले हैं। सेवा क्षेत्र के लिए होनेवाले नियम सुलभ किए गए होकर, ३५ साल से कम उम्र के नागरिकों को वीज़ा देने की प्रक्रिया भी आसान की गई है। दोनों देशों ने, आपस की कंपनियाँ और निवेशकों को प्राथमिकता देने की बात भी मान्य की है।

आने वाले समय में ब्रिटेन की गाड़ियां, बिस्किट्स, सिरॅमिक्स और मद्य इनकी ऑस्ट्रेलिया में होने वाली निर्यात अधिक आसान तथा सस्ती होनेवाली है। ऑस्ट्रेलिया से ब्रिटेन में निर्यात होनेवाले धातु, मशिन्स तथा कृषि से संबंधित उत्पादों पर टैक्स भी कम कर दिया गया है।

ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के बीच सन २०२० में २० अरब पौंड (२८.३ अरब डॉलर्स) इतना द्विपक्षीय व्यापार हुआ था। इसमें धातु, दवाइयाँ, गाड़ियाँ, मशीन्स और वाइन इनका प्रायः समावेश है। ब्रिटेन के व्यापार विभाग ने जारी की जानकारी में, ऑस्ट्रेलिया के साथ हुए मुक्त व्यापार समझौते से ब्रिटेन की निर्यात लगभग १ अरब डॉलर्स से बढ़ेगी, ऐसा दावा किया जा रहा है। वहीं, ब्रिटेन के साथ हुए समझौते के कारण, इससे पहले युरोपीय महासंघ ने लगाए प्रतिबंधों और नियमों से ऑस्ट्रेलियन किसानों को छुटकारा मिला होने का दावा माध्यमों द्वारा किया जा रहा है।

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉन्सन ने युरोपीय महासंघ से बाहर निकलते समय ‘ग्लोबल ब्रिटेन’ की घोषणा की थी। उसके पीछे ब्रिटेन का अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार और सामरिक क्षेत्र में स्थान मज़बूत करना यह मुख्य हेतु माना जाता है। उसी के एक भाग के रूप में, ब्रिटेन ने अपनी विदेश नीति में ‘इंडो-पैसिफिक’ क्षेत्र को प्राथमिकता देने के संकेत दिए थे।

जापान के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर किए गए हस्ताक्षर यह उसका पहला चरण बताया जाता है। उसके बाद ब्रिटेन ने, ११ देशों का समावेश होनेवाले ‘सीपीटीपीपी’ इस बहुराष्ट्रीय व्यापारिक समझौते में सहभागी होने की घोषणा की थी। इस घोषणा के तुरंत बाद भारत और ऑस्ट्रेलिया जैसे प्रमुख देशों के साथ व्यापारिक समझौते के लिए गतिविधियाँ भी शुरू कीं थीं। जापान और ऑस्ट्रेलिया इन दोनों देशों के साथ व्यापारिक समझौता संपन्न होने के कारण ब्रिटेन का ‘सीपीटीपीपी’ इस बहुराष्ट्रीय व्यापारिक समझौते में समावेश आसान हुआ माना जाता है।

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