भारत के प्रधानमंत्री रशिया और युक्रेन के राष्ट्राध्यक्षों के साथ चर्चा कर रहे हैं – विदेशमंत्री एस. जयशंकर

वियन्ना – ‘युक्रेन के युद्ध को लेकर भारत को गंभीर चिंता प्रतीत हो रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मामले में रशिया और युक्रेन के राष्ट्राध्यक्षों के साथ कई बार चर्चा की थी। युद्ध से इस समस्या का हल नहीं निकलेगा, बल्कि राजकीय बातचीत से ही इस समसया का निराकरण हो सकता है, ऐसा भारत ने समय समय पर जताया था’, इन शब्दों में विदेशमंत्री जयशंकर ने देश की भूमिका रखी। ऑस्ट्रिया की राजधानी वियन्ना में भारतीय समुदाय को विदेशमंत्री जयशंकर संबोधित कर रहे थे। इस समय उन्होंने, 77 साल पूरे हो चुके संयुक्त राष्ट्रसंघा को ‘रिफ़्रेश’ करने की तथा उसमें सुधारणा लाने की आवश्यकता है, ऐसी फ़टकार भी लगाई।

रशिया और युक्रेनसाइप्रस के बाद विदेशमंत्री जयशंकर ऑस्ट्रिया के लिए रवाना हुए। उन्होंने रविवार को ऑस्ट्रिया की राजधानी वियन्ना स्थित भारतीय समुदाय के साथ संवाद किया। इस समय उन्होंने, युक्रेन के युद्ध से लेकर संयुक्त राष्ट्रसंघ में सुधार, और पाकिस्तान का आतंकवाद तथा चीन के वर्चस्ववाद के कारण भारत के सामने निर्माण हुईं चुनौतियों के संदर्भ में भारत की भूमिका स्पष्ट रूप में रखी। युक्रेन के युद्ध को लेकर भारत को बहुत बड़ी चिंता प्रतीत हो रही है। इस युद्ध की तीव्रता ना बढ़ें इसलिए भारत के प्रधानमंत्री मोदी ने रशिया के राष्ट्राध्यक्ष पुतिन तथा युक्रेन के राष्ट्राध्यक्ष झेलेन्स्की के साथ कई बार चर्चा की थी। सितम्बर महीने में उज़बेकिस्तान के समरकंद में हुई एससीओ की बैठक में भारत के प्रधानमंत्री ने राष्ट्राध्यक्ष पुतिन के सामने ही कहा था कि यह युद्ध का दौर नहीं है, इसकी भी याद जयशंकर ने करा दी।

युक्रेन के युद्ध में भारत ने रशिया के विरोध में भूमिका नहीं अपनाई है, इसके लिए पश्चिमी देश भारत को लगातार लक्ष्य कर रहे हैं। लेकिन युक्रेन के युद्ध में भारत किसी एक देश के पक्ष में नहीं, बल्कि शांति के पक्ष में खड़ा है, यह विदेशमंत्री जयशंकर ने स्पष्ट किया। सिर्फ़ भारत ही नहीं, बल्कि दुनियाभर के अधिकांश देशों की भूमिका भी भारत जैसी ही है, इस बात पर जयशंकर ने इस समय ग़ौर फ़रमाया। उसीके साथ विदेशमंत्री ने यह डटकर कहा कि संयुक्त राष्ट्रसंघ को ‘रिफ्रेश’ करने की आवश्यकता है। 77 साल पूरे हो चुके संयुक्त राष्ट्रसंघ में सुधार लाना अत्यावश्यक है, यह बताकर विदेशमंत्री जयशंकर ने यह माँग की कि राष्ट्रसंघ में अन्य देशों को अधिक प्रतिनिधित्व मिलना ही चाहिए।

इसी बीच, संयुक्त राष्ट्रसंघ में नियुक्त भारत की राजदूत रूचिरा कंबोज ने भी यह आलोचना की है कि राष्ट्रसंघ में अफ़्रीका तथा एशिया महाद्वीपों के छोटे देशों का पक्ष रखनेवाला कोई नहीं है। इससे राष्ट्रसंघ अपना प्रभाव खो रहा होकर, उसका स्थान ‘जी20’ जैसे, अन्य देशों को अधिक प्रतिनिधित्त्व देनेवाले संगठन ले रहे हैं, ऐसा दावा राजदूत रूचिरा कंबोज ने किया है। उस पृष्ठभूमि पर, विदेशमंत्री जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्रसंघ में सुधारों को लेकर की हुई माँग ग़ौरतलब साबित होती है। साथ ही, इस साल भारत में होनेवाली जी20 परिषद को भी बहुत बड़ा महत्त्व दिया जा रहा है, इसपर भी विदेशमंत्री ने ग़ौर फ़रमाया।

जागतिक सप्लाई चेन पर बहुत बड़ा आर्थिक तनाव आ रहा है और राजकीयदृष्टि से दुनिया का बँटवारा भी हो रहा है, ऐसे में सभी प्रमुख देश एक टेबल पर बैठकर चर्चा करनेवाले हैं, यह बात आश्वासक साबित होती है। इसीलिए, भारत में हो रही यह जी20 परिषद बहुत ही अलग है, ऐसा दावा विदेशमंत्री जयशंकर ने किया। अपने संबोधन में जयशंकर ने पाकिस्तानपुरस्कृत आतंकवाद पर भी कठोर प्रहार किये। सीमा के पार से हो रही आतंकवाद की निर्यात केवल एक ही क्षेत्र में कार्रवाई करके रोकी नहीं जा सकती। क्योंकि यह आतंकवाद नशीले पदार्थों का व्यापार, हथियारों के अवैध व्यापार के साथ तथा अन्य क़िस्म की गुनाहगारी की जड़ के साथ दृढ़तापूर्वक जुड़ा हुआ है। उसपर एक अकेला देश कार्रवाई नहीं कर सकता, उसके लिए अन्य देशों का सहयोग भी आवश्यक है। जागतिक आतंकवाद का केंद्र भारत की सीमा से बहुत ही नज़दीक होने के कारण, इस मामले में होनेवाला भारत का अनुभव तथा अंर्तदृष्टि अन्य देशों के लिए बहुत ही फ़ायदेमन्द साबित हो सकती है, ऐसा ताना भारत के विदेशमंत्री ने मारा है।

पाकिस्तान का ठेंठ नामोल्लेख न करते हुए जयशंकर ने यह आलोचना की। उसी समय, भारत की सुरक्षाविषयक नीति में अहम बदलाव हो रहे होकर, उसके लिए चीन से सामने आ रहीं चुनौतियाँ ज़िम्मेदार हैं, इस बात पर भी विदेशमंत्री ने ध्यान आकर्षित किया।

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