ईंधन कटौती से बचने के लिए अमरीका ‘ओपेक प्लस’ पर दबाव बनाने की कोशिश में

वॉशिंग्टन/वियना – ईंधन उत्पादक देशों की शीर्ष संगठन ‘ओपेक’ और अन्य उत्पादक देशों के समावेश से बने ‘ओपेक प्लस’ गुट की बैठक बुधवार को आयोजित हुई। वैश्विक अर्थव्यवस्था की मंदी के संकेत और अन्य मुद्दों की पृष्ठभूमि पर इस बैठक में ईंधन उत्पादन बडे पैमाने पर कम करने का निर्णय लिया जा सकता है। लेकिन, ईंधन उत्पादन में कटौती ना हो, इसके लिए अमरीका ने जोरदार कोशिश शुरू की है और ‘ओपेक’ के सदस्य होनेवाले खाड़ी देशों पर दबाव डाला जा रहा है। बायडेन प्रशासन के वरिष्ठ नेता और अधिकारी चर्चा के माध्यम से दबाव डाल रहे हैं और कटौती का निर्णय हुआ तो अमरीका के साथ संबंध बिगड़ेंगे, ऐसी चेतावनी भी देने की बात कही जा रही है। अमरीका के प्रमुख माध्यमों ने इससे संबंधित वृत्त प्रसिद्ध किया है।

पिछले कुछ हफ्तों से अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं एवं आर्थिक विशेषज्ञ लगातार आर्थिक मंदी का अनुमान लगा रहे हैं। अमरीका समेत कई प्रमुख देशों की आर्थिक रपट भी इसकी पुष्टि करती हैं। संभावित मंदी की पृष्ठभूमि पर ईंधन की माँग कम होने की संभावना है और इस वजह से ईंधन की कीमतों की भारी गिरावट आएगी, यह दावा भी किया जा रहा है। पिछले कुछ दिनों से कच्चे तेल की कीमतें प्रति बैरल ९० डॉलर्स तक फिसली थीं। इस ‘पृष्ठभूमि’ पर ‘ओपेक प्लस’ गुट कच्चे तेल के उत्पादन में भारी कटौती करने की तैयारी करने लगा है। कच्चे तेल का उत्पादन प्रति दिन १० लाख बैरल्स से अधिक घटाया जाएगा, यह जानकारी सूत्रों ने प्रदान की।

इस कटौती की वजह से कच्चे तेल की कीमतें फिर से १०० डॉलर्स तक उछल सकती हैं। यह बात बायडेन प्रशासन को झटका देनेवाली साबित हो सकती है। अमरीका के आम चुनाव डेढ़ महीने बाद हो रहे हैं और इसी दौरान ईंधन की कीमतों का फिर से उछलना राष्ट्राध्यक्ष बायडेन और शासक दल के लिए बड़ा झटका होगा। बायडेन ने अमरीका के ‘स्ट्रैटेजिक रिज़र्व’ का इस्तेमाल करके ईंधन की कीमतें कुछ हद तक कम करने में सफलता हासिल की थी। इस सफलता पर ओपेक प्लस का निर्णय पानी फेर सकता है। इस वजह से बायडेन प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारी ने यूएई और कुवेत समेत अन्य कुछ खाड़ी देशों पर दबाव डालना शुरू किया है। इनमें वित्तमंत्री जैनेट येलेन समेत नैशलन सिक्युरिटी कौन्सिल के अधिकारी एवं ऊर्जा क्षेत्र के लिए नियुक्त किए गए विशेष दूत और विदेश विभाग के अधिकारियों का समावेश होगा।

लेकिन, इससे पहले बायडेन प्रशासन के साथ यूरोपिय देशों की कोशिशों को ओपेक गुट और खाड़ी के देशों ने ज्यादा रिस्पान्स नहीं दिया था। ओपेक प्लस के निर्णय में सौदी अरब और रशिया दोनों का प्रभाव है और यह दोनों अमरीका के दबाव पर ध्यान नहीं देंगे। इस वजह से अन्य देशों पर दबाव डालकर निर्णय रोकने की गतिविधियों को अमरीका ने गतिमान किया, ऐसा कहा जा रहा है।

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