मनाली-लेह की दूरी कम करनेवाले ‘अटल टनेल’ का काम हुआ पूरा

नई दिल्ली – मनाली और लेह की दूरी कम करनेवाला ‘अटल टनेल’ तैयार हो चुका है। विश्‍व में सबसे लंबी और समुद्री सतह से १० हज़ार फीट की ऊंचाई पर बने ‘अटल टनेल’ का निर्माण पीरपंजाल’ की पहाडियों में किया गया है। इस टनेल की वजह से संघर्ष के समय चीन की सीमा पर भारतीय सैनिक और लष्करी सामान तेज़ी से पहुँचाना संभव होगा। इस वजह से ‘अटल टनेल’ के मार्ग को बड़ी सामरिक अहमियत प्राप्त हुई है।

Leh-Manaliलद्दाख में भारत और चीन के बीच कभी भी जोरदार संघर्ष की स्थिति के चलते सामरिक नज़रिए से इस अहम टनेल का काम तेज़ी से पूरा किया गया है। इस महीने के अन्त में प्रधानमंत्री के हाथों इस टनेल का उद्घाटन किया जाएगा।

इस टनेल मार्ग के शिलान्यास के समय इसे ‘रोहतांग टनेल’ नाम दिया गया था। कुछ महीने पहले भारत के दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के स्मरण में इसे ‘अटल टनेल’ नाम दिया गया। कुछ तकनीकी कारणों से इस टनेल का काम बंद था। बीते कुछ वर्षों से ‘बॉर्डर रोड ऑर्गनायशेशन’ (बीआरओ) के इंजिनियर्स और श्रमिक कड़ी मेहनत करके और प्रतिकूल मौसम का मुकाबला करके इस टनेल का निर्माण कर रहे थे। ऊंचाई पर होने से इस निर्माण कार्य में काफी बाधा आ रही थी।

कोरोना वायरस के कारण सिर्फ दस दिन के लिए इस टनेल का काम रुका था। इसके बाद ‘बीआरओ’ ने केंद्र सरकार से विशेष अनुमति प्राप्त करके काम शुरू किया और सितंबर में इस टनेल का निर्माण कार्य पूरा हुआ। इस टनेल का काम पूरा होने के लिए दस वर्ष लगे। इसकी लंबाई ८.८२ किलोमीटर है।

Leh-Manaliप्रति दिन तीन हज़ार गाड़ियां इस टनेल से आवाजाही कर सकेंगी। इस टनेल के हर ५०० मीटर की दूरी पर इमर्जन्सी एक्ज़िट बनाए गए हैं। साथ ही हर ६० मीटर पर सीसीटीवी कैमरा लगाए गए हैं। इसके अलावा टनेल में फायर सिस्टिम भी लगाया गया है। इस टनेल के निर्माण कार्य में ऑस्ट्रेलियन तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। इस टनेल की विशेषता यह होगी कि, यह टनेल बारह महीने बिल्कुल प्रतिकूल मौसम में भी इस्तेमाल किया जा सकेगा। ठंड़ शुरू होन के बाद रोहतांग पास का रास्ता छह महीनों के लिए बंद रहता है। लेकिन, अब इस टनेल की वजह से लेह पहुँचने के लिए एक और सुरक्षित मार्ग उपलब्ध हुआ है।

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