विल्यम हॅलस्टेड (१८५२-१९२२)

न्यूयॉर्क के बेलेव्ह्यु चिकित्सालय में प्रशिक्षणार्थी शल्यशास्त्र विशेषज्ञ (सर्जन) के रूप में डॉक्टर विल्यम दाखिल हुए। एक नामी बड़े सर्जन के साथ काम करने का अवसर उन्हें प्राप्त हुआ। विल्यम ने देखा कि उस सर्जन ने किसी के द्वारा उपयोग में लाया गया अस्वच्छ सा अ‍ॅप्रन पहन लिया था। उनकी जेब में मरीज की जखम को सिलाने के लिए उपयोग में लाये जानेवाले टाँके एवं सुइयाँ रखी गयी थीं।

ऑपरेशन की शुरुआत होने पर इस शल्यचिकित्सक के कौशल्य की शुरुआत हुई। नापसंद हथियारों को उन्होंने नीचे जमीन पर फेंक दिया। हाथों में ग्लोव्हज़् न पहने हुए और मरीज के खून से सने हुए भीगे हाथों को पहने हुए उस अ‍ॅप्रन में ही पोंछ दिया। ऑपरेशन थिएटर में ताजे फूल लगाये गए थे। यह भी ठीक नहीं था। डॉ. विल्यम को यह सब देख काफी आश्‍चर्य हुआ। वे हैरान रह गए। इससे तो जंतुसंसर्ग होता है, पर कहने का वह मौका नहीं था।

विल्यम हॅलस्टेड१९ वी शताब्दी के उत्तरार्ध की यह सत्यकथा है। शरीरक्रियाशास्त्र का गहराई से अध्ययन करनेवाले डॉ. जॉन डाल्टन की सलाह के अनुसार विल्यम ने ‘सर्जरी’ इस शाखा का चुनाव किया। जो उस काल में कुछ अधिक आकर्षक नहीं थी। युद्ध में होनेवाले ज़ख्म, घाव, हाथ-पैर निकालने वाली शस्त्रक्रिया का प्रमाण अधिक था। लुई पाश्‍चर, जोसेफ लिस्टर (कार्बोलिक अ‍ॅसिड का उपयोग, उबलने तक गरम करना आदि) इनके द्वारा प्रतिपादित किये गये सिद्धान्तों पर विल्यम का पूरा विश्‍वास था। सर्जरी के दौरान होनेवाला जन्तुसंसर्ग और उससे होनेवाली मृत्यु की रोकथाम हेतु सर्जरी के अन्तर्गत निर्जंतुकीकरण प्रक्रिया अति आवश्यक है ऐसा उनका कहना था।

१८५२ में न्यूयॉर्क में जन्म लेनेवाले डॉ. विल्यम हॅलस्टेड को निर्जंतुकीकरण का प्रणेता माना जाता है। अमेरिकन-११ फुटबॉल टीम के वे एक उत्कृष्ट खिलाड़ी थे। सर्जरी के अनुभव के लिए वे पॅरिस जाने के लिए निकल पड़े। उस समय वैद्यकीय क्षेत्र के सभी स्तरों पर यूरोप का स्थान अग्रगण्य था। बिलरॉय, डॉ. वॉन वॉकमन आचार्य जैसे महान विशेषज्ञ यूरोप में थे। उनसे दीक्षा लेने हेतु डॉ. विल्यम हॅलस्टेड निकल पड़े थे। सफर में उनके सहयात्री के रूप में उन्हें डॉ. वोकमन से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। लिस्टर के प्रति विल्यम के मन में होनेवाले आदरभाव को देख साथ ही ऑपरेशन की सदोष पद्धति को बदल देने की तड़प, जंतुसंसर्ग के प्रति होनेवाली राय यह सब डॉ. वॉकमॅन को का़फी पसंद आयी। उन्होंने डॉ. विल्यम को चिकित्सालय में आकर मिलने को कहा और रॉबर्ट कॉक (टी. बी. के संशोधक) से मिलकर उनसे इस विषय में चर्चा करने की सलाह दी। रॉबर्ट कॉक ने अपना संशोधन कार्य डॉ. विल्यम को दिखाया और उन्हें महत्त्वपूर्ण संदेश भी दिया।

‘मुझे पूरी दुनिया का भ्रमण करना था, परन्तु इसके लिए मेरे पास पैसे नहीं थे। फिर मैंने इस सूक्ष्मदर्शक यंत्र से दिखाई देनेवाली एक नयी दुनिया की खोज की और ये जीवजंतु मेरे हमेशा के, हक के संगी-साथी हैं। तुम सपने देखो, कोई भी स्वप्न सहज साध्य नहीं हुआ करते हैं। इसके लिए स्वप्न में भी सत्य को देखने की धुन होनी चाहिए। इसके लिए जीवनयज्ञ करना पड़ता है।’

अमेरिका में लौटने पर विल्यम निर्जंतुकीकरण की अपनी पद्धति को उपयोग में लाने के लिए वहाँ से सर्जनों के प्रति मन-मनौति करने लगे। सर्वत्र विरोध ही था। बेलेव्ह्यु चिकित्सालय के मैदान में तंबू बनाकर वहाँ के थिएटरों में शस्त्रक्रिया शुरू हो गई। स्वच्छता, निर्जंतुकीकरण, टीप-टॉप रहने की शर्तें थी। इन सब बातों का पालन करते हुए की गयीं शस्त्रक्रियाओं के अन्तर्गत जंतुसंसर्ग में काफी कमी दिखायी दी ।

२०वीं शताब्दी के आरंभिक दौर में विल्यम ने एक प्रशंसनीय प्रयोग किया। हार्ट सर्जरी करते समय यह प्रयोग अब नियमित हो गया है। जर्मनी में हायडलबर्ग में नेत्रविशेषज्ञों की होनेवाली सभा में डॉ. विल्यम उपस्थित रहे। इस स्थान पर दिखाये जानेवाले ऑपरेशन के आधार पर विल्यम ने स्वयं अपना अलग ही संशोधन किया। इसके अनुसार उसी स्थान पर इंजेक्शन देकर बधिरता लाना Nerve Block तथा Infiltraction Anaesthesia इस संकल्पना का जन्म हुआ।

विल्यम की छोटी बहन प्रसूति के पश्‍चात् अतिरक्तस्राव के कारण मरणासन्न अवस्था में पड़ी थी। ऐसे में विल्यम ने स्वयं अपने शरीर से रक्त निकालकर तत्काल उसे दिया। कुछ ही घंटों के पश्‍चात् वह ठीक हो गई। विल्यम स्वयं कमजोर पड़ गए थे। परन्तु आज होनेवाले (blood transfusion) ब्लड ट्रान्सफ्युजन की नींव इसी घटना से पड़ गई थी। फर्क केवल इतना है कि आज कल की प्रक्रिया में दक्षतापूर्वक अनेक सुधार किए गए हैं।

न्यूयॉर्क शहर के ही करीब बल्हिमोर नामक स्थान पर जॉन हॉपकिन्स चिकित्सालय के सर्जरी विभाग के प्रमुखपद की सारी ज़िम्मेदारी विल्यम पर आ पड़ी। इसी दौरान हर्निया के ऑपरेशन का नया यंत्र विल्यम ने विकसित किया। निर्जंतुकीकरण की प्रथा जारी रही। शारीरिक होशियारी के साथ साथ यदि बारीकी से सभी बातों पर गौर किया जाए तो उसे अपने-आप ही बड़प्पन, महत्त्व आदि प्राप्त होता है। विल्यम के साथ काम करनेवाली परिचारिका कॅरोलिन को कार्बोलिक से हाथ धोते समय अ‍ॅलर्जी हो गई।

इस पर विल्यम ने ट्रक टायर बनानेवाले गुड इयर कंपनी से कहकर बिलकुल नाजुक पारदर्शक दो रबर के हँड ग्लोव्हज़् बनवा लिए और इसके पश्‍चात् ही ग्लोव्हज् का उपयोग करने की पद्धति सर्वत्र रूढ़ होती गई।

१८९० में स्नातक के कर्करोग पर की जानेवाली शस्त्रक्रिया विल्यम ने नये सिरे से विकसित की। ‘हॅलस्टेड प्रोसिजर’ इस नाम से यह यंत्र पहचाना जाता है। येल विश्‍वविद्यालय से १९०४ में डॉक्टरेट उपाधि प्राप्त करने के पश्‍चात् विविध संस्थाओं ने विल्यम का आदरसत्कार अनेक बार किया। १९२२ में अमेरिकन डेंटल असोसिएशन ने विल्यम को गोल्ड मेडल दिया।  नस बधिरीकरण यंत्र विकसित करने का वह सम्मान था। रॉजर बेकन ने विल्यम का गौरव अपने पास होनेवाली प्रथम ‘ग्रेज अ‍ॅनॅटामी’ की प्रत (कॉपी) देकर किया।

थायरॉईड ग्रंथी, हर्निया, गॉल ब्लॅडर एवं उसकी (duct) नलिका इनके ऑपरेशन की नयी पद्धति उन्होंने ही विकसित की। स्वयं के संशोधन के बारे में १८० पेपर्स का प्रबंध उन्होंने प्रकाशित किया। डॉक्टर वॉल्टर डॅडी, न्यूरो सर्जरी के विशेषज्ञ संशोधक हार्वे कुशिंग आदि शिष्य डॉ. विल्यम की देखरेख में तैयार हुए। कोशिश करनेवाले को कदम-कदम पर मदद का हाथ मिलता ही है, उसी तरह विल्यम को हर एक पड़ाव पर मार्गदर्शक गुरु मिलते ही रहे। ग्रंथ तो हाथों में था ही, परन्तु गुरु एवं ग्रंथ का उपयोग करने का कर्तृत्व उन्होंने निभाया ही, जिससे कि उनका नाम भी अमर हो गया। उनके पास होनेवाली संशोधन करने की वृत्ति यह हमारे लिए प्रेरणादायी है।

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