अमरीका के सहयोगी भारत के अलावा हज़ारों अमरिकी सैनिक इस्लामाबाद में क्या कर रहे हैं? – पाकिस्तान के विपक्षी नेता का सवाल

इस्लामाबाद – अफ़गानिस्तान से बाहर निकले हुए हज़ारों अमरिकी सैनिक पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में दाखिल हुए हैं। अमरिकी सेना के लिए पाकिस्तान सरकार ने इस्लामाबाद के होटल्स में कमरे बुक करने का आरोप पाकिस्तान के विपक्षी नेता लगा रहे हैं। भारत  अमरीका का रणनीतिक सहयोगी देश होने के बावजूद अफ़गानिस्तान से बाहर निकली अमरिकी फौज पाकिस्तान की राजधानी में क्यों ठहरी हुई है? यह सवाल करके विपक्ष और माध्यम पाकिस्तान सरकार से तीखे सवाल पूछ रहे हैं। लेकिन, अमरिकी सेना का इस्लामाबाद में रुकना अस्थायी होने का बचाव अंदरुनि सुरक्षामंत्री शेख रशीद ने किया है।

अफ़गानिस्तान से जुड़ी तोर्खम सीमा से तकरीबन २,१९२ और विमान से तकरीबन १,६२७ अमरिकी सैनिक इस्लामाबद पहुँचे हैं। कुछ अमरिकी सैनिक चमन सीमा से भी दाखिल हुए। लेकिन, यह अफ़गानिस्तान से सेना वापसी के बाद हुई आम बात है। अमरीका के यह सैनिक इस्लामाबाद में लंबे समय तक नहीं, बल्कि मात्र २१ से ३० दिन ही रुकेंगे। इतने दिनों का विजा उन्हें प्रदान किया गया है, यह बात पाकिस्तान के अंदरुनि सुरक्षामंत्री ने स्पष्ट कही। लेकिन, उनका यह बचाव विरोधियों ने स्वीकारने की बिल्कुल ही संभावना नहीं है।

us-soldiers-islamabadअफ़गानिस्तान से वापसी के बाद अमरीका पाकिस्तान में मौजूद अड्डों पर अपनी सेना तैनात करेगी, यह संकेत अमरीका ने दिए थे। इस पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इम्रान खान ने बड़े गर्व से ‘एब्सुल्युटली नॉट’ यानी बिल्कुल संभव नहीं, ऐसी प्रतिक्रिया दर्ज़ की थी। इसका उनके समर्थकों ने स्वागत भी किया था। लेकिन अब प्रधानमंत्री इम्रान खान की सरकार अमरीका के दबाव से झुक गई है। इस्लामाबाद में दाखिल हुए हज़ारों अमरिकी सैनिकों से यही दिख रहा है, ऐसी आलोचना पाकिस्तान के सोशल मीडिया में होने लगी था।

इन अमरिकी सैनिकों के लिए पाकिस्तान सरकार ने ही इस्लामाबाद के होटल्स खाली करवाकर कमरे बुक किए थे, यह आरोप ‘जमियत उलेमा-ए-इस्लाम’ नामक विपक्षी दल के नेता मौलाना फज़लूर रेहमान ने लगाया। ‘भारत अमरीका का रणनीतिक सहयोगी देश होने के बावजूद अमरीका की सेना पाकिस्तान की राजधानी में क्यों पहुँची है? अमरिकी सेना भारत क्यों नहीं गई?’ ऐसे सवाल ‘जमात-ए-इस्लामी’ पार्टी के प्रमुख ‘सिराज उल हक’ ने पाकिस्तान सरकार से किए हैं। अफ़गानिस्तान को लेकर अमरीका को पाकिस्तान ने इतनी सहायता करने के बावजूद अमरीका के राष्ट्राध्यक्ष पाकिस्तान के प्रधानमंत्री से फोन पर बातचीत करने के लिए भी तैयार नहीं हैं, इस ओर भी सिराज उल हक ने ध्यान आकर्षित किया।

९/११ के हमले के बाद अमरीका को अफ़गानिस्तान में आतंकवाद विरोधी युद्ध के लिए पूरी तरह से सहयोग करने की तैयारी पाकिस्तान के भूतपूर्व तानाशाह परवेज़ मुशर्रफ ने दिखाई थी। इम्रान खान की सरकार ने पाकिस्तान को फिर से मुशर्रफ के दौर में पहुँचाया है क्या?, ऐसे सवाल सोशल मीडिया पर किए जा रहे हैं। पाकिस्तान के ज्येष्ठ पत्रकारों ने भी अमरिकी फौज भारत जाने के बजाय पाकिस्तान में किस कारण रुकी है, इस पर आश्‍चर्य जताया है।

पहले के दौर में गर्व दिखानेवाली पाकिस्तान सरकार अब अमरीका के दबाव में आ गई है, यह आरोप अमरिकी सैनिकों के इस्लामाबाद में ठहरने से अधिक ही तीव्र हुआ है। साथ ही अमरीका और पाकिस्तान की सरकारों ने कोई गुप्त समझौता किया है क्या, यदि हाँ तो उस डील की जानकारी सार्वजनिक क्यों नहीं की जा रही है?, ऐसी चर्चा भी पाकिस्तान के माध्यमों में जारी है। इसके अलावा यदि पाकिस्तान सरकार ने अमरीका के साथ खुफिया सहयोग किया है तो तालिबान का रोष पाकिस्तान को सहना पड़ेगा, यह अहसास भी पाकिस्तान के विश्‍लेषक अपनी सरकार को करा रहे हैं।

पाकिस्तान में आतंकी गतिविधियों को अंजाम दे रही ‘तेहरिक-ए-तालिबान’ संगठन के नेता और सदस्य अफ़गानिस्तान में तालिबान के आश्रय में हैं। उनका इस्तेमाल करके तालिबान पाकिस्तान में आतंकी हमलों का भयंकर सत्र शुरू कर सकती है। यही रणनीति बनाकर तालिबान ने पाकिस्तान को बंधक बना रखा है, इस ओर भी पाकिस्तानी विश्‍लेषक ध्यान आकर्षित कर रहे हैं। अफ़गानिस्तान में तालिबान ने हासिल की हुई जीत का उत्सव मनानेवाले पाकिस्तान को इसके भयंकर परिणाम भुगतने पड़ेंगे, यह अब स्पष्ट होने लगा है। पाकिस्तान के बुद्धिजीवी ऐसी पूर्व सूचना भी दे रहे थे। यह खतरा अब सच साबित होने जा रहा है और तालिबान के समर्थक पाकिस्तान के चरमपंथी पत्रकार और विश्‍लेषक अब तालिबान की आलोचना करते दिखाई दे रहे हैं।

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