अमरीका भारत के साथ, नाटो के सदस्यदेशों जितना ही रक्षाविषयक सहयोग बढ़ायेगी

अमरिकी संसद में विधेयक प्रस्तुत

George-Holding

भारत के साथ अमरीका का रक्षाविषयक सहयोग नाटो के सदस्य देशों जितना ही दृढ़ करने के लिए अमरिकी जनप्रतिनिधियों के प्रयास शुरू हुए हैं। जल्द ही इस हेतु अमरिकी संसद में विधेयक प्रस्तुत किया जायेगा। अमरीका द्वारा भारत को अति-आधुनिक रक्षाविषयक तंत्रज्ञान उपलब्ध करा देना, यह अमरीका की सुरक्षा एवं आर्थिक उन्नति के लिए आवश्यक है, ऐसा कहते हुए अमरिकी काँग्रेस के सदस्यों ने इस विधेयक का समर्थन किया। भारत को यह सहायता करते समय, अमरीका का विश्वासघात करनेवाले पाक़िस्तान को अमरीका द्वारा दी जानेवाली लगभग ४५ करोड़ डॉलर्स की अर्थसहायता रोकने के लिए उपरोक्त विधेयक में प्रावधान किया गया है।

भारत के प्रधानमंत्री अगले महीने अमरीका दौरे पर जानेवाले होकर, इस दौरे में दोनों देशों के बीच अत्यधिक महत्त्वपूर्ण सहयोग-समझौते किये जानेवाले हैं। अमरीका में उसकी पूर्वतैयारी भी शुरू हुई है। काँग्रेस सदस्य जॉर्ज होल्डिंग एवं एमी बेरा ने, भारत के साथ रहनेवाले अमरीका के सहयोग को, नाटो के सदस्यदेशों के स्तर तक बढ़ाने की अनुमति देनेवाला यह विधेयक प्रस्तावित किया है। नाटो के सदस्यदेशों की रक्षा के लिए अमरीका आज तक अति-आधुनिक तंत्रज्ञान की आपूर्ति करती आयी है। ठीक उसी तरह भारत के साथ भी रक्षाविषयक सहयोग करना अमरिका के लिए आवश्यक होने का दावा होल्डिंग ने किया है।

ami-bera‘इंडो-पॅसिफ़िक’ क्षेत्र की गतिविधियाँ और उनके अमरिका की सुरक्षा पर होनेवाले परिणामों को मद्देनज़र रखते हुए अमरीका को चाहिए कि वह भारत की रक्षाविषयक क्षमता को बढाने के प्रयास करें। अमरीका की एशिया-पॅसिफ़िक नीति में भारत को सबसे अहम स्थान है। इसीलिए भारत के साथ सामरिक सहयोग को विकसित करना अमरीका की सुरक्षा की दृष्टि से और अमरीका की आर्थिक उनति के लिए महत्त्वपूर्ण साबित होता है, ऐसा होल्डिंग ने अपने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा है। ‘नॅशनल डिफ़ेन्स ऑथरायझेशन अ‍ॅक्ट (एनडीएए), २०१७’ इस विधेयक में किये जानेवाले ये प्रावधान, चीन के विस्तारवाद को मद्देनज़र रखते हुए प्रस्तुत किये गये हैं, यह स्पष्ट हो रहा है।

‘एनडीएए’ में, आतंकवादविरोधी युद्ध में अमरीका का अपेक्षाभंग करनेवाले पाक़िस्तान को दी जानेवाली लगभग ४५ करोड़ डॉलर्स की अर्थसहायता को रोकने का भी प्रावधान किया गया है। यदि पाक़िस्तान ने अमरीका की माँग पूरी की, तो ही पाक़िस्तान को यह निधि मिलेगी, ऐसी शर्त इस विधेयक में रखी गयी है। तालिबान के हक्कानी गुट पर कार्रवाई करने से पाक़िस्तान ने इन्कार कर दिया था। साथ ही, अन्य आतंकवादी संगठनों के ख़िलाफ़ पाक़िस्तान सख़्त कार्रवाई नहीं करता, ऐसी अमरीका की शिक़ायत है। इसलिए गत कुछ महीनों से अमरीका ने पाक़िस्तान के ख़िलाफ़ आक्रामक भूमिका अपनायी है, ऐसा दिखायी दे रहा है।

पाक़िस्तान की आतंकवाद-परस्त भूमिका के साथ साथ चीन के साथ पाक़िस्तान की बढ़ती हुई नज़दीक़ी, यह भी अमरीका की नाराज़गी का विषय बन चुका है। अपने ‘ग्वादर’ बंदरगाह को चीन के हाथों सौंपकर पाक़िस्तान चीन के साथ ‘इकॉनॉमिक कॉरिडॉर’ प्रकल्प विकसित कर रहा है। इसपर अब अमरीका द्वारा प्रतिक्रिया आने लगी होकर, पाक़िस्तान के ही कुछ विश्लेषकों और पत्रकारों ने यह चेतावनी दी थी कि ‘आनेवाले समय में, पाक़िस्तान को चीन के साथ के सहयोग के अधिक विघातक परिणाम सहन करने पड़ेंगे।’ भारत के साथ अमरीका के बढ़ते सामरिक सहयोग के पीछे, पाक़िस्तान एवं चीन के बीच विकसित हो रहे इन संबंधों की भी पार्श्वभूमि है, इस बात की ओर जानकार ग़ौर फ़रमा रहे हैं।

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