तुर्की को रोकने के लिए अमरीका और युरोप को एक साथ होना होगा – अमरिकी विदेशमंत्री माईक पोम्पिओ

पैरिस – ‘तुर्की ने बीते कुछ महीनों में शुरू की हुईं गतिविधियाँ अधिक से अधिक आक्रामक होतीं हुईं दिख रहीं हैं। फ्रान्स के राष्ट्राध्यक्ष इमैन्युएल मैक्रोन के साथ हुई चर्चा के दौरान इस मुद्दे पर हमारी सहमति हुई है। तुर्की द्वारा जारी हरकतें तुर्की की जनता के हित में नहीं होंगी, इस बात का अहसास राष्ट्राध्यक्ष एर्दोगन को दिलाना होगा। इसके लिए अमरीका और युरोप ने एकजूट के साथ कदम बढ़ाना आवश्‍यक है’, इन शब्दों में अमरिकी विदेशमंत्री माईक पोम्पिओ ने, आनेवाले दिनों में तुर्की के खिलाफ कार्रवाई अधिक तेज़ होगी और इसका दायरा अधिक बढ़ सकता है, ऐसे संकेत दिए हैं।

अमरीका और युरोप

पिछले कुछ वर्षों में, तुर्की के राष्ट्राध्यक्ष रेसेप एर्दोगन ने अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए कई देशों में दखलअंदाज़ी करना शुरू किया हैं। सीरिया में राष्ट्राध्यक्ष बशर अल अस्साद की हुकूमत गिराने की कोशिश नाकाम होने के बाद तुर्की ने लीबिया, इराक, पैलेस्टिन, आर्मेनिया-अज़रबैजान में दखलअंदाज़ी करना शुरू किया है। इसके साथ ही, भूमध्य समुद्री क्षेत्र में मौजूद ईंधन के भंड़ारों पर कब्ज़ा करने के लिए ग्रीस के साथ विवाद निर्माण किया है। ग्रीस नाटो का सदस्य देश है और तुर्की भी नाटो का हिस्सा है। ऐसा होने के बावजूद तुर्की ने तनाव अधिक बढ़ाना जारी रखने के कारण, अमरीका और युरोपिय देशों से तीखीं प्रतिक्रिया प्राप्त हुई हैं।

युरोपिय महासंघ ने तुर्की को इससे पहले ही कड़े शब्दों में समझाकर, युरोप ग्रीस के समर्थन में खड़ा रहेगा, यह चेतावनी भी स्पष्ट रूप से दी है। अमरिकी विदेशमंत्री माईक पोम्पिओ ने ग्रीस की यात्रा करके पहले ही तुर्की को आवश्‍यक चेतावनी दी थी। लेकिन, इसके बाद भी तुर्की अपनी भूमिका अधिक आक्रामक कर रहा है और अगर यही स्थिति बनी रहीं, तो अमरीका और युरोप एक साथ मिलकर तुर्की को सबक सिखा सकते हैं, ऐसें संकेत अमरिकी विदेशमंत्री के बयान से प्राप्त हो रहे हैं।

अमरीका ने इससे पहले तुर्की पर लगाए प्रतिबंधों की वजह से, तुर्की का चलन एवं अर्थव्यवस्था को बड़े झटके लगे थे। आनेवाले दिनों में अमरीका के साथ यदि युरोप ने भी ऐसी ही कार्रवाई की, तो राष्ट्राध्यक्ष एर्दोगन को बड़ा झटका लग सकता है। दो महीनें पहले अमरीका ने, तुर्की के लिए संवेदनशील मुद्दा बने सायप्रस पर लगाए प्रतिबंध हटाए थे। इसके बाद अमरिकी सांसदों ने, तुर्की में मौजूद अमरीका का लष्करी अड्डा वहाँ से हटाने की दिशा में गतिविधियाँ शुरू होने के संकेत भी दिए थे।

‘एस-४००’ मिसाइल यंत्रणा के मुद्दे पर तुर्की को लक्ष्य किया जाएगा, यह इशारा अमरीका ने हाल ही में दिया है। साथ ही, फ्रान्स और जर्मनी जैसें युरोप के प्रमुख देशों ने भी तुर्की के खिलाफ आक्रामक भूमिका अपनाई है। साथ ही, खाड़ी देशों ने भी तुर्की की नीतियों के खिलाफ भूमिका अपनाई है। ऐसी स्थिति में पाकिस्तान, ईरान और चीन इन देशों के साथ सहयोग बढ़ाकर, तुर्की अपने प्रभाव का विस्तार करने की कोशिश कर रहा है।

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