राजनीतिक संकट में फँसे नेपाल के प्रधानमंत्री ने किये भारत के भूभाग पर दावे

काठमांडु – नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने भारत के साथ संबंध सुधारने की दिशा में कुछ कदम उठाये थे। लेकिन ‘चीनपरस्त’ ऐसी पहचान होनेवाले नेपाल के प्रधानमंत्री ने अपना लौकिक बरक़रार रखा दिख रहा है। ‘लिपूलेख, कालापानी और लिंपियाधूरा ये भारत के कब्ज़े में होनेवाले अपने भूभाग नेपाल फिर से प्राप्त करेगा’, ऐसी घोषणा प्रधानमंत्री शर्मा ओली ने की है। ‘नेपाल के पहले की सरकारों में भारत के विरोध में जाकर बोलने की हिम्मत नहीं थी। लेकिन मैं राजनीतिक चर्चा द्वारा भारत से ये भाग फिर से प्राप्त करके दिखाऊँगा’ ऐसे दावे नेपाल के प्रधानमंत्री ने ठोके हैं। इससे यही दिख रहा है कि नेपाल के विद्यमान प्रधानमंत्री चीन के प्रभाव से मुक्त नहीं हुए हैं।

india-nepalनेपाली संसद के वरिष्ठ सभागृह को संबोधित करते समय प्रधानमंत्री शर्मा ओली ने ये डींगें हाकीं हैं। ‘लिपूलेख, कालापानी और लिंपियाधूरा ये भारत के नहीं, बल्कि नेपाल के भूभाग हैं। उन्हें वापस पाने के लिए मैं कोशिश करूँगा’, ऐसा आश्‍वासन शर्मा ओली ने दिया। इन भूभागों का नेपाल के नक़्शे में समावेश करने का हमारे सरकार ने किया हुआ फ़ैसला कुछ लोगों को रास नहीं आया था, ऐसी टिप्पणी भी ओली शर्मा ने की। जो नेपाल की पहले की सरकारें नहीं कर सकीं, वह मैं राजनीतिक चर्चा द्वारा कर दिखाऊँगा, ऐसा विश्‍वास ओली शर्मा ने व्यक्त किया है। इसके द्वारा नेपाल के प्रधानमंत्री यह साबित कर दिखाना चाहते हैं कि वे सर्वाधिक राष्ट्रवादी हैं।

कुछ महीने पहले चीन के लष्कर ने नेपाल की सीमा में घुसपैंठ करके कुछ गाँवों पर कब्ज़ा किया था। उसपर होहल्ला होने के बाद प्रधानमंत्री ओली शर्मा मुश्किल में फँसे थे। भारत के साथ सीमाविवाद छेड़ने के बजाय, चीन ने हथिया हुआ भूभाग वापस ले लें, ऐसी माँग नेपाल के प्रदर्शनकारी करने लगे थे। नेपाल के सत्ताधारी मोरचे में भी इसपर तीव्र मतभेद हुए और इस दबाव के कारण शर्मा ओली को, भारत के साथ संबंध सुधारने के लिए कुछ कदम उठाने पड़े थे। उसके बाद नेपाल के दौरे पर आये चीन के रक्षामंत्री को भेंट नकारकर शर्मा ओली ने अपनी भूमिका में बदलाव होने के संकेत दिये थे।

लेकिन नेपाल के सत्ताधारी पार्टियों के मोरचे में मतभेद अधिक ही तीव्र हुए और इस मोरचे के नेता प्रचंड ने शर्मा ओली को दिया समर्थन हटा दिया। उसके बाद प्रधानमंत्री शर्मा ओली ने नेपाल की संसद बरखास्त करने की सिफ़ारिश राष्ट्रपती विद्या देवी भंडारी के पास की। जल्द ही नेपाल में चुनाव संपन्न होंगे और बदनाम हुए ओली शर्मा को उसमें सफलता मिलने की कतई संभावना नहीं है। इस कारण, उनकी सरकार को बचाने के लिए चीन का प्रतिनिधिमंडल नेपाल में डेरा डाले हुए था। येकिन चीन की ये सारीं कोशिशें नाक़ाम साबित हुईं। अपना राजनीतिक भविष्य अनिश्चित होते समय, केपी शर्मा ओली भारत को चुनौती देकर लिपूलेख, कालापानी और लिंपियाधूर का मुद्दा उपस्थित करना चाहते हैं।

नेपाल में चीन द्वारा की जा रही राजनीतिक दख़लअन्दाज़ी यह इस देश में चिंता का विषय बनी है। वहीं, नेपाल में जारी राजनीतिक गतिविधियाँ यह इस देश का अन्दरूनी मामला है, ऐसा कहकर भारत ने इससे अलिप्त रहने की भूमिका अपनायी है। इससे दोनों देशों के बीच का फ़र्क़ प्रकर्षता से सामने आ रहा है।

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