खिलौनों की खोज

आज-कल खिलौनों की दुकानों में प्रवेश करते ही हम अचंभित से हो जाते हैं। खिलौनों में भी इतनी विविधता हो सकती है, इस बात की जानकारी न होनेवाले व्यक्ति के लिए खिलौनों की खरीदारी करना यह कोई आसान काम नहीं हैं। सादे खिलौने, बिजली पर चलनेवाले खिलौने, चाबी से चलनेवाले खिलौने, मैकनिकल इंजीनियरिंग के आधार पर बनाये गये खिलौने इस तरह के अनेक खिलौने हमें नज़र आते हैं। छोटे बच्चों की दुनिया तो खिलौनों के बगैर पूरी हो ही नहीं सकती है, इस बात का पता चलता है, इन खिलौनों को देखने पर ही।

प्रत्यक्ष रूप में खिलौनों की खोज करनेवाले फ्रँक हॉर्नबी नामक खोजकर्ता को भी शायद इस बात का अंदाज़ा नहीं रहा होगा। खजांची का काम करते-करते मेकॅनिकल इंजिनियरिंग क्षेत्र में कब रुचि उत्पन्न हो गई, इस बात का अंदाजा फ्रँक को भी नहीं हुआ। बार बार रोते रहनेवाले अपने नन्हें बच्चे को कुछ अचंभित कर देनेवाली वस्तु फ्रँक ने बनायी, जो दिन भर उसका मनोरंजन कर सके।

इस वस्तु के साथ उनका वह मुन्ना खेलने लगा और उसी खेल में वह मस्त हो गया। इसी घटना के कारण फ्रँक की बुद्धि की काल्पनिकता को यह वस्तु आकर्षित कर गई। १८८७ में एक दिन मेकॅानिकल इंजीनियरिंग तत्त्वों पर आधारित एक खिलौना अस्तित्व में आया। यही खिलौना ‘मेकॅनो’ इस नाम से मशहूर हुआ।

आरंभिक काल में अपने पिता के ही कारोबार में खजांची के रूप में काम करनेवाले फ्रँक ने इसके पश्‍चात् डेविड एलिऑट इस नाम की व्यापारी के कंपनी में बुककीपर के रूप में काम करना शुरू कर दिया। यहीं पर फ्रँक ने पुलों का मॉडल, ट्रक्स एवं क्रेन्स बनाये। लेकिन ये उपकरण अन्य किसी भी रुप में रुपांतरित किए जा सकें, इसके लिए फ्रँक ने इन वस्तुओं को एक-दूसरे के साथ जोड़ दिया जा सके, इस प्रकार का बनाया। इनमें सुधार करके एक सेट से ५-६ प्रकार के विभिन्न मॉडल्स तैयार किए जा सके, इस बात का पूरा ध्यान फ्रँक ने विशेष तौर पर रखा।

फ्रँक ने तांबे की पट्टियाँ स्वयं ही बनाना शुरु कर दिया। साथ ही खेलने के लिए विभिन्न प्रकार के अलग-अलग हिस्से बनाकर उन्हें इसी सेट के साथ नटबोल्डस् भी तैयार किये। अलग-अलग हिस्सों को भी जोड़ने के लिए छोटी सी पक्कड़, दंडे इन हिस्सों की निर्मिति भी फ्रँक ने की। इसके साथ ही इस साचे में और भी कौन-कौन से मॉडल्स बनाये जा सकते हैं, इस साँचे की विस्तृत जानकारी देनेवाले चित्रों के साथ होनेवाली पुस्तकें भी इन हर एक संग्रह (सेट) में समाविष्ट कर दिए गए। इसी कारण मेकॅनिकल दृष्टि से कठिन लगनेवाले मॉडल भी सहजतापूर्वक बनाया गया संभव हो गया।

लेकिन फ्रँक की इन कोशिशों को डेव्हिड ने आर्थिक सहायता की, इसी लिए उनके इस कार्य को प्रत्यक्ष आकार प्राप्त हुआ। सभी के द्वारा ठुकरा दिए गए फ्रँक को डेव्हिड ने जगह, पैसे आदि की सहायता कर उन्हें अपना भागीदार बना लिया। फ्रँक की कोशिशों को सफलता प्राप्त होने में कुल तेरह वर्ष लग गए। अपने इस अखंडित प्रयास में फ्रँक मेकॅनो के खेल में बदलाव करते रहे और उनका यह मेकॅनो आखिरकार लोगों की पसंद बन गया।

मध्यकाल के दौरान उनके इस मेकॅनों की माँग काफ़ी बड़े पैमाने पर बढ़ जाने के कारण डेव्हिड ने अपनी इस भागीदारी को खत्म कर दिया। फ्रँक ने ‘मेकॅनो लिमिटेड’ कंपनी की स्थापना की और विदेशों में भी अपने इन खिलौनों का निर्यात करना आरंभ कर दिया। फ्रँक ने १९१० में स्वयं अपनी कंपनी में १२ हजार पौंड्स का नफा प्राप्त किया। मेकॅनो से ही खिलौनों का एक नया विश्‍व लोगों के समक्ष आना शुरू हो गया।

फ्रँक की मृत्यु के पश्‍चात् भी मेकॅनो कंपनी अपनी प्रसिद्धि की चरमसीमा पर ही रही। इस कंपनी को फ्रँक के बेटे ने अपने अधिकार में ले लिया। फ्रँक की मृत्यु के पश्‍चात् भी हमेशा याद रहा वह फ्रँक का दृढ़ प्रयास……. मेकॅनो के रूप में।

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