‘तिब्बत कार्ड’ का इस्तेमाल भारत-चीन संबंधों पर विपरित असर करेगा – चिनी दूतावास की चेतावनी

नई दिल्ली/बीजिंग – भारत ने तिब्बत मुद्दे का इस्तेमाल करके चीन के अन्दरूने मामलों में दख़लअन्दाज़ी करन की कोशिश की, तो उसका द्विपक्षीय संबंधों पर विपरित असर होगा, ऐसी चेतावनी चिनी दूतावास ने दी है। कुछ दिन पहले ही अमरीका के राष्ट्राध्यक्ष डोनाल्ड ट्रम्प ने ‘तिबेटन पॉलिसी ऍण्ड सपोर्ट ऍक्ट २०२०’ पर हस्ताक्षर किये थे। अमरिकी राष्ट्राध्यक्ष के इस फ़ैसले पर भारतीय प्रसारमाध्यमों में सकारात्मक प्रतिक्रिया उठी थी। इस समय कुछ माध्यमों ने, भारत भी अब तिब्बत के मुद्दे पर अधिक सक्रिय भूमिका अपनायें, ऐसा आक्रामक सूर अलापा था।

‘तिब्बत कार्ड’

भारतीय माध्यमों में उठा यह सूर चीन को बहुत ही चुभ गया है, यह दूतावास ने किये बयान से स्पष्ट हुआ। ‘चीन की सार्वभूमता और प्रादेशिक एकात्मता के मुद्दे पर भारतीय माध्यम वस्तुनिष्ठ और उचित भूमिका अपनायेंगे, ऐसी उम्मीद है। तिब्बत की आर्थिक और सामाजिक प्रगति को मद्देनज़र रखकर ही इस संवेदनशील मुद्दे पर उचित तरीक़े से कृति करनी होगी। चीन के अन्दरूनी मामलों में दख़लअन्दाज़ी करने के लिए तिब्बत कार्ड का इस्तेमाल करके भारत-चीन संबंधों को ठेंस पहुँचें ऐसी कृति माध्यम ना करें’, ऐसा दूतावास की प्रवक्ता जी रॉंग ने कहा है।

इस समय रॉंग ने, सन २००३ में भारत और चीन के बीच हुए समझौते की याद भी दिला दी। इस समझौते के अनुसार, भारत ने तिब्बत यह चीन का अविभाज्य भाग होने की बात मान ली है, इसपर चिनी प्रवक्ता ने ग़ौर फ़रमाया। चिनी प्रवक्ता के इस बयान पर भारत ने कोई भी प्रतिक्रिया नहीं दी है। अमरीका ने बनाये क़ानून में, तिब्बत के बौद्धधर्मियों के सर्वोच्च नेता दलाई लामा का वारिस चुनने का अधिकार सिर्फ़ तिब्बती जनता को ही है, ऐसा प्रावधान किया गया है। इस बात से चीन को बड़ा झटका लगा है।

पिछले सालभर में भारतीय माध्यमों ने चीन के विरोध में अपनाई भूमिका लगातार चर्चा का विषय साबित हो रही है। ‘गलवान वैली’ में संघर्ष और लद्दाख ‘एलएसी’ पर तनाव, इस पृष्ठभूमि पर भारतीय माध्यमों ने ताइवान, हाँगकाँग इन जैसे, चीन के लिए संवेदनशील रहनेवाले मुद्दों पर आक्रामक पैंतरा अपनाया दिख रहा है। इस बात से चीन बौखला गया होकर, चिनी दायरे से ख़ोख़लीं धमकियाँ दी जा रही हैं, ऐसा राजदूत के नये बयान से दिख रहा है।

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