१९६२ की जंग के बाद पहली बार लद्दाख की स्थिति गंभीर हुई है – विदेशमंत्री एस.जयशंकर

नई दिल्ली – वर्ष १९६२ की लड़ाई के बाद पहली बार इस क्षेत्र की स्थिति सबसे अधिक गंभीर हुई है। लगभग ४५ वर्ष के बाद इस क्षेत्र के संघर्ष में सैनिक शहीद हुए हैं। प्रत्यक्ष नियंत्रण रेखा के करीबी क्षेत्र में दोनों देशों ने सैनिकों की हुई तैनाती अभूतपूर्व है, ऐसी प्रतिक्रिया विदेशमंत्री एस.जयशंकर ने व्यक्त की है। साथ ही सीमा विवाद के मसले का हल बातचीत के ज़रिए निकालना है तो इसके बारे में एकतरफा निर्णय करना संभव नहीं होगा। ऐसे में भारत की माँगों का सम्मान करके चीन को यह माँगें स्वीकार करनी पडेंगी’, ऐसी फटकार विदेशमंत्री जयशंकर ने लगाई। दो दिन पहले चीन से प्रत्यक्ष नियंत्रण रेखा के मुद्दे पर हो रही राजनीतिक चर्चा नाकाम हुई तो भारत लष्करी कार्रवाई करेगा, यह इशारा रक्षाबलप्रमुख जनरल बिपीन रावत ने दिया था। इसके बाद चीन ने नरमाई की भाषा अपनाकर भारत के साथ सहयोग बढ़ाने पर जोर दिया था।

एस.जयशंकर

लद्दाख की गलवान वैली में चीन ने किए हमले में भारत के २० सैनिक शहीद हुए थे। इसके बाद दोनों देशों में निर्माण हुए तनाव में बढ़ोतरी हुई थी। भारत और चीन ने इस क्षेत्र में तैनाती बढ़ाई है और फिलहाल इस सीमा पर दोनों देशों के कुल मिलाकर कम से कम १ लाख सैनिक तैनात होने का दावा किया जा रहा है। साथ ही भारत ने इस क्षेत्र में लड़ाकू विमान और टैंक तैनात किए हैं। इसी बीच सीमा पर तनाव कम करने के लिए दोनों देशों के सेना अधिकारियों ने कई बार चर्चा की है मगर अभी तक इसका हल नहीं निकला है। चीन ने भी इस क्षेत्र में अपनी तैनाती कई गुना बढ़ाई है। इस दौरान पॅन्गॉन्ग त्सो, देप्सॉन्ग, फिंगर क्लिफ क्षेत्रों में तैनात सैनिक पीछे हटाना चीन ने टाल दिया है। सैटेलाईट फोटो से चीन की यह तैनाती स्पष्ट हुई है। ऐसे में विदेशमंत्री ने चीन को स्पष्ट शब्दों में इशारा दिया हुआ दिख रहा है।

दोनों देशों के बीच बना विवाद चरम स्तर पर पहुँचने की बात विदेशमंत्री जयशंकर ने एक वेबिनार में बोलते समय स्पष्ट की। बीते तीन-साढे तीन महीनों से लद्दाख में भारत और चीन के बीच तनाव का माहौल बना हुआ है। कई बार राजनीतिक और लष्करी स्तर पर चर्चा हुई है। लेकिन, अभी यह तनाव ख़त्म नहीं हुआ है, इस बात पर विदेशमंत्री ने ध्यान आकर्षित किया। इससे पहले भारत और चीन के बीच सीमा विवाद के मुद्दे पर तनाव निर्माण हुआ था। लेकिन, राजनीतिक स्तर पर यह तनाव खत्म किया गया था। सीमा पर स्थित देप्सॉन्ग, चुमार, डोकलाम के क्षेत्र में दोनों देशों के सैनिक एक दूसरे के आमने-सामने थे। यह सभी विवाद अलग अलग थे। लेकिन, इन विवादों का राजनीतिक मार्ग से हल निकाला गया था, यह बात भी विदेशमंत्री ने कही। लेकिन, लद्दाख का विवाद गंभीर है और इसका संबंध विदेशंमत्री जयशंकर ने सीधे वर्ष १९६२ की जंग से जोडा है। इसी से इस तनाव की गंभीरता स्पष्ट होती है।

इस विवाद का हल निकालने के लिए राजनीतिक और लष्करी दोनों स्तरों पर कोशिश हो रही है। लेकिन, इस विवाद का हल निकालना है तो इससे पहले किए समझौतों का और माँगों का सम्मान करके उस पर अमल करना आवश्‍यक है। एकतरफा गतिविधियां करके प्रत्यक्ष नियंत्रण रेखा की स्थिति बदलने की कोशिश ना करें, ऐसे स्पष्ट शब्दों में विदेशमंत्री जयशंकर ने चीन को फटकार लगाई है। साथ ही सीमा पर चीन की तैनाती बर्दाश्‍त नहीं करेंगे, यह बयान भी जयशंकर ने किया। साथ ही दोनों देशों के सहयोग के आधार पर भारत सीमा पर शांति बनाए रखेगा, यह संदेश भारत ने चीन को दिया है, यह बात भी विदेशमंत्री एस.जयशंकर ने स्पष्ट की।

दो दिन पहले रक्षाबलप्रमुख जनरल बिपीन रावत ने बातचीत नाकाम हुई तो चीन के विरोध में लष्करी कार्रवाई का विकल्प खुला होने का इशारा दिया था। रक्षाबलप्रमुख के इस बयान के बाद विदेशमंत्री जयशंकर ने राजनीतिक मोर्चे पर भी चीन पर दबाव बढ़ाया हुआ दिख रहा है।

Leave a Reply

Your email address will not be published.