१४. ‘एक्झोडस्’

ज्यूधर्मियों के इतिहास के इस सबसे महत्त्वपूर्ण घटनाक्रम की – ‘एक्झोडस्’ की शुरुआत हुई थी!

इजिप्त के बाहर होनेवाले सूखे के हालातों के कारण, विभिन्न स्थानों से इजिप्त में अलग से आये ज्यूधर्मीय, वहाँ की इतनीं सदियों की ग़ुलामी के बाद अब इजिप्त में से बाहर निकल रहे थे, वह ‘एकराष्ट्र’भावना के साथ….ईश्‍वर ने उन्हें अभिवचन देकर बहाल किये प्रदेश में (‘प्रॉमिस्ड लँड’में) वास्तव्य करने के लिए। भविष्यकालीन ‘इस्रायल’ की मानों नींव ही डाली गयी थी।

लेकिन इजिप्त से निकलते समय वे, अपने आदरणीय पूर्वज जोसेफ को, अपने अन्य पूर्वजों ने (जोसेफ के भाइयों ने) दिया हुआ अभिवचन नहीं भूले थे। ‘मेरी मृत्यु के बाद मेरी अस्थियों को जतन करके रखना और जब कभी हमारे वंशज ‘प्रॉमिस्ड लँड’ में वापस लौट जायेंगे, तब उन अस्थियों को अपने साथ ले जाकर वहाँ दफन कर देना’ ऐसा अभिवचन जोसेफ ने अपने भाइयों से लिया था। इस कारण इजिप्त में से निकलते समय, जोसेफ की जतन की हुईं अस्थियों को भी ज्यूधर्मियों ने सम्मानपूर्वक अपने साथ ले लिया था।

यह लाखो ज्यूधर्मियों का प्रचंड बड़ा समूह, अपने आगे आगे सरकते जा रहे उस ईश्‍वरीय बादलों के स्तंभ के पीछे पीछे धीरे धीरे आगे बढ़ रहे थे। ‘हम अब अपने हक़ के घर में जा रहे हैं’ यह भावना अब उनके मन में थी। लेकिन ईश्‍वर ने उन्हें, उनके गोशेन प्रांत में से सीधे मार्ग से, यानी भूमध्यसमुद्र (मेडिटेरियन सी) के तटवर्तीय मार्ग से कॅनान प्रांत में ले जाने के बजाय, उन्हें दक्षिण की ओर ले जाकर रेगिस्तान में से कुछ विशिष्ट स्थानों से होकर गुज़रते हुए घुमाया। गोशेन प्रांत के ही पिरामसेस, सुक्कोथ, एथाम ऐसे स्थानों की भेंट करते हुए यह समूह आगे चल रहा था। ईश्‍वर ने मोझेस को पहले से ही सूचित कियेनुसार, उनका पहला महत्त्वपूर्ण पड़ाव, लाल समुद्र (‘रेड सी’) के क़िनारे पर का पिहाहिरोथ यह स्थान होनेवाला था।

ईश्‍वर उन्हें इस लंबे मार्ग से क्यों ले गया, इसका भी स्पष्टीकरण इस कथा में आता है। नज़दीक के मार्ग से जातें, तो शायद रास्ते के कई स्थानीय लोगों से, कई राजाओं से संघर्ष करने की नौबत इन लोगों पर आ सकती थी। इतनी सदियों से ग़ुलामी में रहने के कारण इन लोगों की मानसिकता ग़ुलामों की बन चुकी थी। इस कारण किसी भी प्रकार का संघर्ष करने की ताकत उस समय तो इनमें से अधिकांश लोगों में नहीं थी और उन्होंने युद्ध करने के बजाय पुनः इजिप्त में ग़ुलाम बनकर रहना ही पसन्द किया होता। इस ख़तरे को टालने के लिए ईश्‍वर उन्हें लंबे रास्ते से ले गया। इतना ही नहीं, बल्कि कॅनान प्रांत में पहुँचने से पहले, उनपर होनेवाला ग़ुलामी का प्रभाव पूर्ण रूप से मिट जायें इसलिए और भविष्यकालीन समर्थ राष्ट्र के निर्माण हेतु उनकी मानसिकता तैयार करने के लिए उन्हें एक-दो नहीं, बल्कि अगले पूरे ४० साल तक लगभग ४२ स्थानों से होते हुए उस रेगिस्तान में गोल गोल घुमाते रखा, ऐसा वर्णन इस कथा में आता है।

The Map of Exodus

कुछ दिनों में ये लोग लाल समुद्र के क़िनारे पर के पिहाहिरोथ पहुँचे। लेकिन इसी दौरान, ज्यूधर्मियों को ग़ुलामी में से रिहा किये फारोह के मन में अपने इस निर्णय को लेकर कश्मकश शुरू हुई थी। इन ज्यूधर्मियों को ग़ुलामी में से आज़ाद करके मैंने बहुत बड़ी ग़लती की है, ऐसा फारोह को अब लगने लगा था। ग़ुलामी में होनेवाले इन ज्यूधर्मियों पर अच्छाख़ासा अधिकार जमाने की आदत पड़े हुए इजिप्तवासी भी उनके जाने से खुश नहीं थे।

उतने में फारोह के गुप्तचर, ‘यह समूह दक्षिण की ओर रवाना हुआ है’ यह ख़बर ले आये। इजिप्त में से कॅनान प्रांत के लिए भूमध्यसमुद्र के तटवर्तीय मार्ग से जाने के बजाय ये लोग दक्षिण की ओर क्यों गये, यह फारोह की समझ में नहीं आ रहा था। शायद वे रास्ता भटक गये होंगे, ऐसा उसने अपने आपको को समझाया। ‘लेकिन चूँकि ये लोग अभी तक इजिप्त से बाहर नहीं गये हैं, क्यों न उनपर हमला कर उन्हें फिर से अपने ग़ुलाम बना दें?’ ऐसा विचार फारोह के मन में प्रबल होने लगा और उसने सैनिक इकट्ठा करके इन ज्यूधर्मियों का पीछा करने का झट से तय किया। वह स्वयं इस सेना की अगुआई करनेवाला था।

लेकिन यह भी ईश्‍वरीय लीला का ही भाग था और ‘ऐसा ही होगा’ यह ईश्‍वर ने मोझेस को बहुत पहले ही सूचित करके रखा था, ऐसा वर्णन इस कथा में आता है। फारोह के पापों का घड़ा भर चुका होने के कारण, उसे अंतिम सज़ा देने के लिए यह होना आवश्यक था, ऐसा ईश्‍वर ने मोझेस को बताया था।

शस्त्रास्त्रों से लैस ऐसे लगभग छः सौ रथों का समावेश होनेवाली सेना को लेकर फारोह अपना पीछा कर रहा है, यह ख़बर इस जत्थे तक पहुँच गयी और लोग चिंतित हो गये। जान के डर से उनमें से कई लोग थराने लगे।

The Pillar of Cloud

उनमें से कुछ वीर ज्यूधर्मियों के गुट इजिप्शियन सेना से संघर्ष करने के लिए तैयार थे;

वहीं, ऐसे संघर्ष में जीत होगी या नहीं, इस बात को लेकर शंकित होनेवाले, लेकिन पुनः ग़ुलामी की नर्क़यातनाओं में फँसने की कल्पना से भी थर्रानेवाले कुछ ज्यूधर्मियों के गुट – ‘युद्ध में हारकर पुनः इनकी ग़ुलामी में फँसने की अपेक्षा समुद्र में अपनी जान दे देना ही अच्छा है’ ऐसी राय ज़ाहिर कर रहे थे।

लेकिन इन दोनों से भी अलग ऐसे एक तीसरे गुट की राय यह थी कि ‘चाहे पुनः ग़ुलाम भी क्यों न बनना पड़ें, लेकिन युद्ध नहीं चाहिए’;

….और यह तीसरा मत होनेवाले ये लोग ही रोते-चिल्लाते मोझेस की आलोचना करने लगे – ‘क्या इजिप्त में क़ब्र खोदने के लिए जगह कम पड़ रही थी, जो तुम हमें यहाँ बीच-रेगिस्तान मरने के लिए ले आये?’ कुछ समय पूर्व मोझेस को ईश्‍वरीय दृष्टांत होनेपर जब मोझेस ने ईश्‍वर का संदेश गोशेन प्रांत में आकर ज्यूधर्मियों को बताया था, तब उसकी योजना का इसी गुट ने विरोध किया था, जो किसी भी प्रकार का संघर्ष करना नहीं चाहते थे।

मोझेस के जीवन की यह सबसे कठिन, इम्तिहान की घड़ी थी। उसने ईश्‍वर की प्रार्थना करके शांति से इन लोगों को समझा-बूझाने की शुरुआत की और ख़ासकर ईश्‍वर पर होनेवाला भरोसा क़ायम रखने की विनति की।

इस सारी चर्चा के चलते, फारोह की सेना धीरे धीरे नज़दीक आ ही रही थी। लेकिन इस सारी बहस में उलझने के कारण इन लोगों का ध्यान नहीं गया ऐसी एक बात घटित हुई थी – इतने दिनों से उन्हें मार्ग दिखाते हुए, दिन में बादलों के रूप में, तो रात को अग्नि के रूप में उनके आगे आगे चलनेवाला वह ईश्‍वरीय स्तंभ, अब जगह बदलकर उनके पीछे जा खड़ा हुआ था – यह ज्यूधर्मियों का समूह और इजिप्शियन सेना इनके बीच में खड़ा हुआ था….पहले की तरह ही ज्यूधर्मियों के इस समूह को रात में रोशनी की आपूर्ति करते हुए, लेकिन इजिप्शियन सेना के सामने दिनदहाड़े भी घना अँधेरा निर्माण करते हुए – ऐसा वर्णन इस कथा में आता है।

एक तरफ़ समुद्र, तो दूसरी तरह इजिप्शियन सेना ऐसी कैची में फँसे ज्यूधर्मीय उसमें से कैसे बाहर निकले, वह घटनाक्रम बहुत ही रोमांचक है। (क्रमश:)

– शुलमिथ पेणकर-निगरेकर

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