तालिबान को भारत से सकारात्मक संबंध रखने हैं – तालिबानी प्रवक्ता का दावा

नई दिल्ली/दोहा, (वृत्तसंस्था) – तालिबान के हमलों की वज़ह से अफ़गानिस्तान की शांति प्रक्रिया ख़तरे में पड़ गयी है। ऐसी स्थिति में अफ़गानिस्तान की शांति के लिए भारत अधिक योगदान प्रदान करें, ऐसा निवेदन अमरीका के विशेष दूत झल्मे खलिलझाद ने किया था। इसके बाद तालिबान के अधिकृत प्रवक्ता ने, अपने संगठन को भारत से सकारात्मक संबंध रखने हैं, यह दावा किया है। साथ ही, भारत ने अफ़गानिस्तान में किए योगदान का भी तालिबान स्वागत करता है, यह बात भी इस प्रवक्ता ने कही है। सोवियत रशिया को परास्त करके अफ़गानिस्तान पर कब्ज़ा करनेवाले तालिबान ने, उस दौर में कश्‍मीर में आतंकवाद की सहायता की थी। लेकिन, अब भारत के संदर्भ की अपनी भूमिका में बदलाव होने के संकेत तालिबान से दिए जा रहे हैं।

नवंबर महीने में होनेवाले अमरिकी राष्ट्राध्यक्ष पद के चुनाव से पहले डोनाल्ड ट्रम्प को अफ़गानिस्तान में तैनात सेना हटानी है। इसी बीच कोरोना वायरस की महामारी के कारण, अमरिकी सेना को अफ़गानिस्तान में तैनात रखना और भी कठिन बना है और ज़ल्द से ज़ल्द अमरिकी सेना को वापस बुलाने के लिए ट्रम्प प्रशासन बड़ी गतिविधियाँ कर रहा है। लेकिन, अफ़गानिस्तान की सरकार और तालिबान के बीच शुरू हुए संघर्ष की वज़ह से अमरिकी सेना की वापसी के लिए भी खतरा बना है। तालिबान ने भीषण आतंकी हमलों का सत्र शुरू किया है और इस वज़ह से अफ़गानिस्तान से सेना को हटाने के मुद्दे पर दोबारा विचार करना होगा, यह चेतावनी अमरिकी रक्षा मंत्रालय दे रही है। इसी वजह से अमरिका ने अफ़गानिस्तान के लिए नियुक्त किए हुए विशेष दूत झल्मे खलिलझाद, अफ़गानिस्तान के पड़ोसी देशों की सहायता से शांति प्रक्रिया स्थापित करने की जोरदार राजनयिक कोशिश कर रहें हैं। इसके लिए झल्मे खलिलझाद भारत भी पहुँचे थे और उसके बाद पाकिस्तान भी गए थे। अपनी भारत यात्रा के दौरान झल्मे खलिलझाद ने अफ़गानिस्तान की शांति प्रक्रिया के लिए भारत अधिक योगदान प्रदान करें, यह निवेदन किया था। भारत के अफ़घनिस्तान के साथ ऐतिहासिक संबंध रहे हैं। साथ ही, अफ़गानिस्तान के विकास के लिए भारत ने अहम योगदान दिया है, यह याद भी खलिलझाद ने ताज़ा की। साथ ही, तालिबान के साथ बनी समस्या का हल निकालने के लिए भारत सीधे तालिबान से बातचीत करें, यह सलाह भी खलिलझाद ने दी है।

अमरीका की सेना अफ़गानिस्तान से लौटने के बाद यह देश फ़िर से तालिबान के शिकंजे में फ़ँसेगा, यह ड़र भारत ने व्यक्त किया था। यदि अफ़गानिस्तान तालिबान के शिकंजे में फ़ँसा, तो यह देश आतंकवाद का केंद्र बनेगा, यह चिंता भारत ने समय समय पर व्यक्त की थी। इस वज़ह से भारत ने, अमरीका और तालिबान के शांति समझौते पर काफ़ी सावधानी से भूमिका अपनाई थी। इस पृष्ठभूमि पर, अमरीका के विशेषदूत खलिलझाद ने भारत को, तालिबान से बातचीत करने की सलाह देना ग़ौरतलब था। उनकी इस सलाह के कुछ ही घंटे बाद, कतार में स्थित दफ़्तर से तालिबान के प्रवक्ता ने भारत की सराहना की है।

तालिबान का प्रवक्ता सोहेल शाहीन ने, अफ़गानिस्तान के विकास के लिए भारत से प्राप्त हो रहे योगदान का तालिबान स्वागत करता है, यह कहा है। साथ ही, तालिबान को भारत के साथ सकारात्मक संबंध रखने हैं, यह दावा भी शाहीन ने किया है। अलग शब्दों में, अफ़गानिस्तान में तालिबान की सरकार बनीं तो इससे भारत को धोका नहीं होगा, यह संदेश देने की कोशिश तालिबान कर रहा है। १९९० के दशक में जिस तरह से तालिबान के कब्ज़े में रहा अफ़गानिस्तान, भारतविरोधी आतंकवादी गतिविधियों का केंद्र बना था, वैसी स्थिति अब नहीं बनेगी, यह बात समझाने की कोशिश तालिबान कर रहा है। भारत ने यह घोषित किया है कि अफ़गानिस्तान में लोकनियुक्त सरकार को अपना समर्थन रहेगा। साथ ही, अफ़गानिस्तान में जनतंत्र की प्रक्रिया पटरी से ना फिसलें, यह भूमिका भारत ने आग्रहपूर्वक रखी है। इस वज़ह से, तालिबान से प्राप्त हो रहे संदेश पर भारत इससे अलग भूमिका अपनायें, यह संभव नहीं है। भारत का सहयोग प्राप्त करना है, तो तालिबान को आतंकवाद की राह छोड़नी होगी और पाकिस्तान के इशारे पर काम करने की नीति में भी बदलाव करना होगा। क्या यह तैयारी तालिबान दिखाएगा? इस सवाल का जवाब तालिबान अफ़गानिस्तान का भविष्य तय कर सकता है।

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