श्रीलंका को हिंद महासागर क्षेत्र में किसी भी देश का वर्चस्व स्वीकार नहीं है – श्रीलंका के राष्ट्राध्यक्ष ने दिया चीन को अप्रत्यक्ष इशारा

कोलंबो – हिंद महासागर क्षेत्र में श्रीलंका किसी भी देश के वर्चस्व के खिलाफ़ है। इसके आगे श्रीलंका की विदेशी नीति किसी भी देश के पक्ष में नहीं झुकेगी। श्रीलंका की विदेश नीति तटस्थ रहेगी, ऐसा बयान श्रीलंका के राष्ट्राध्यक्ष गोताबाया राजपक्षे ने किया है। संयुक्त राष्ट्रसंघ की आम सभा में राष्ट्राध्यक्ष गोताबाया ने श्रीलंका की बदलती विदेशी नीति की ओर ध्यान आकर्षित किया। हिंद महासागर क्षेत्र में श्रीलंका का स्थान बड़ा अहम है। इसी कारण कोई भी देश दूसरे किसी देश का लाभ नहीं उठाएगा और हिंद महासागर क्षेत्र में शांति बनी रहेगी, यही श्रीलंका की प्राथमिकता रहेगी, यह बात राष्ट्राध्यक्ष गोताबाया ने स्पष्ट की। इसके ज़रिए श्रीलंका के राष्ट्राध्यक्ष ने हिंद महासागर में प्रभाव बढ़ाने की कोशिश में जुटे चीन को पुख्ता संदेशा दिया हुआ दिख रहा है।

President-Srilankaहिंद महासागर क्षेत्र और वहां के व्यापारी मार्ग कई देशों के लिए अहमियत रखते हैं। श्रीलंका के राष्ट्राध्यक्ष गोताबाया राजपक्षे ने कहा कि, ताकतवर देश हिंद महासागर क्षेत्र तटस्थ रहे, वहां के अनमोल साधन संपत्ति की रक्षा हो इसलिए समर्थन और सहयोग की नीति को अपनाना आवश्‍यक है। सभी देशों की संप्रभुता की सुरक्षा, क्षेत्रीय अखंड़ता और एक-दूसरे के अंदरुनि मामलों में दखलअंदाज़ी ना करना, यह संयुक्त राष्ट्र के चार्टर का हिस्सा हैं, इस बात की याद भी राष्ट्राध्यक्ष गोताबाया ने इस दौरान ताज़ा की।

श्रीलंका के प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने अपने राष्ट्राध्यक्ष पद के कार्यकाल के दौरान चीन की ओर अधिक झुकाव वाली नीति अपनाई थी। इस दौरान चीन ने श्रीलंका को भारी रक्म का कर्ज़ प्रदान किया था। साथ ही चीन ने श्रीलंका के अहम बंदरगाह और प्रकल्पों में अपना निवेश बढ़ाया था। साथ ही श्रीलंका के बंदरगाह का भारत के खिलाफ़ इस्तेमाल करना भी चीन ने शुरू किया था। चीन की पनडुब्बियां और युद्धपोत श्रीलंका के बंदरगाहों में खड़ी रहती थीं। भारत की घेराबंदी करने की साज़िश के तौर पर चीन ने श्रीलंका पर अपना प्रभाव बढ़ाया था। उस समय चीन के पक्ष में अधिक झुकाव की नीति का बड़ा झटका श्रीलंका को बाद में बर्दाश्‍त करना पड़ा। चीन के कर्ज़ का भुगतान करना संभव ना होने से अपना हंबंटोटा बंदरगाह ९९ वर्ष के लिए चीन को देने के लिए श्रीलंका मज़बूर थी। इसी कारण वर्तमान की राजपक्षे सरकारने अपनी विदेश नीति में बड़ा बदलाव करती हुई दिखाई दे रही है।

इस पृष्ठभूमि पर श्रीलंका के राष्ट्राध्यक्ष गोताबाया राजपक्षे और प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे की सरकार चीन पर आलोचना करते समय भारत को अहमियत देना ध्यान केंद्रीत करता है। गोताबाया राजपक्षे ने राष्ट्राध्यक्ष होते ही अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए भारत का चयन करके अपनी विदेश नीति में भारत को अहमियत दी जाएगी, ऐसे स्पष्ट संकेत दिए थे। कुछ दिन पहले ही विदेश सचिव जयनाथ कोंलबेज ने हंबंटोटा बंदरगाह ९९ वर्ष के लिए चीन को भाड़े पर देने की बड़ी गलती की थी, यह बात कबूल की थी। इसके अलावा, श्रीलंका ’इंडिया फर्स्ट’ नीति से अब पीछे नहीं हटेगा और श्रीलंका की ज़मीन का इस्तेमाल अन्य दुसरें देश के खिलाफ़ खास तौर पर भारत के खिलाफ़ करने के लिए कभी भी अनुमति नहीं देगी, यह बात कोंलबेज ने कही थी।

इसी बीच २६ सितंबर के दिन प्रधानमंत्री मोदी और श्रीलंका के प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे वर्च्युअल द्विपक्षीय चर्चा में शामिल हो रहे हैं। हाल ही में श्रीलंका में चुनाव हुए थे। इस दौरान महिंदा राजपक्षे की सरकार बहुमत से चुनी गई। इसके बाद यह द्विपक्षीय चर्चा हो रही है। राजनयिक, आर्थिक, रक्षा एवं अन्य समान हितों के क्षेत्रों में दोनों देशों का सहयोग अधिक मज़बूत होगा, यह विश्‍वास प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने व्यक्त किया है।

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