सिग्मंड फ्रॉयड

‘‘मानवी मन यह एक ऐसी पहेली है, जिसकी थाह जान पाना नामुमकिन है। इस मन की थाह, इसकी पहुँच का़फ़ी दूर तक होती है। आधुनिक मनोवैद्यकशास्त्र के जनक के रूप में पूरी दुनिया में जाने-पहचाने जानेवाले शास्त्रज्ञ का नाम है ऑस्ट्रियन मानसशास्त्रज्ञ सिग्मंड फ्रॉयड।’’

‘‘मानवी मन यह एक हिमनग (आईसबर्ग) के समान होता है, जिसके १/७ हिस्से को ही हम देख सकते हैं।’’

सिग्मंड फ्रॉयड

मानवी मन की थाह की खोज करने की कोशिश करनेवाले शास्त्रज्ञ सिग्मंड फ्रॉयड का जन्म ६ मई १८५६ के दिन मोराव्हिआ में रहनेवाले एक ज्यू परिवार में हुआ। पहली संतान होने के कारण माँ ने इनका का़फ़ी लाड़-प्यार किया। बचपन से ही होनेवाली होशियारी के कारण घर में स्वतंत्र कमरा सिग्मंड के लिए हुआ करता था। सिग्मंड ने भी कभी अपने माता-पिता को निराश नहीं किया। मोराव्हिआ में कुछ वर्षों तक गुजर-बसर करने के पश्‍चात् यह परिवार विएन्ना शहर में आकर बस गया।

विएन्ना में मेट्रिक तक की शिक्षा पूर्ण करने पर सिग्मंड फ्रॉयड ने विएन्ना विश्‍वविद्यालय में प्रवेश प्राप्त किया। वैद्यकीय शिक्षा में उनका मन रम गया, परन्तु महज़ लोगों की शारीरिक बीमारियों का इलाज करनेवाली शिक्षा के रूप में उन्होंने इस शिक्षा को नहीं देखा। १८८१ में उन्होंने वैद्यकीय शिक्षा की उपाधि प्राप्त की।

वैद्यकीय शिक्षा के दौरान ही, मनुष्य यह एक निसर्गनिर्मित पहेली होने का अहसास सिग्मंड फ्रॉयड को हुआ। इस पहेली को सुलझाने के लिए ही फ्रॉयड वैद्यकीय शिक्षा को महत्त्वपूर्ण मानते थे। वैद्यकीय अध्ययन करते समय मानवी व्यवहार में मन का कार्य एवं विचारों की गुत्थी काफ़ी महत्त्व रखती है, ऐसा फ्रॉयड को महसूस होता था।

कुछ समय तक उन्होंने संमोहनवाले यंत्र द्वारा उपचार करने का प्रयोग किया और इसी के अनुसार मनोविश्‍लेषण का एक यंत्र विकसित किया। इन्हीं कोशिशों के दौरान ही उन्होंने ‘कॅथॉर्टिक’ नामक उपचार पद्धति की खोज की। जिसके द्वारा मरीज़ को संमोहन स्थिति में रहने पर विस्मृति में जा चुके मन में छिपी हुई बातों की याद आती थीं। संभाषण चिकित्सा नाम का यंत्र भी इसी के आधार पर विकसित हुआ।

१८९५ में ‘स्टडीज् इन हिस्टेरिया’ नामक पुस्तक में से दबी हुई कामवासना, मनोविकार के बच्चों में होती है, इस बात का प्रतिपादन उन्होंने किया। १९०० में उनके द्वारा प्रसिद्ध की गई ‘इंटर प्रिटेशन ऑफ़ ड्रीम्स’ नामक पुस्तक को ‘वैज्ञानिक एवं वैद्यकीय जगत का मील का पत्थर’ यह संज्ञा दी जाती है। फ्रॉयड के मानववंशशास्त्र पर लिखी गई ‘टोटम अ‍ॅन्ड टॅबू’ नामक पुस्तक भी का़फ़ी प्रसिद्ध हुई। सुप्त मन और जागृत मन के बीच के संबंध के आधार पर लिखे ‘सायको-पॅथॉलॉजी ऑफ़ एव्हरी डे लाईफ़’ इस निबंध को भी उस दौर में का़फ़ी प्रसिद्धी प्राप्त हुई थी।

हर एक मानवी व्यवहार का भी अर्थ होता है और इस से मनुष्य के अन्तर्मन के सुप्त विचार अपने आप ही बाहर आने लगते हैं, लेकिन उनके अर्थ को ठीक से समझ पाना ज़रूरी है। जागृत मन एवं सुप्त मन इन दोनों से मिलकर बननेवाले मन का जो स्वरूप उन्होंने प्रस्तुत किया था, उसे शास्त्रीय सिद्धता प्राप्त हो इस उद्देश्य से उन्होंने बहुत संशोधन किया। मानवी मन के रहस्य प्रकट करना, इतना ही फ्रॉयड का ध्येय नहीं था, बल्कि मन का कार्य कैसे चलता है, यदि वह बिगड़ गया तो क्या होता है, इस सिद्धांत को केवल प्रस्तुत करने के बजाय मानवी स्वभाव का असली तत्त्व अर्थात सार भी उन्हें प्राप्त करना था।

मनोरुग्ण अपने विचार मुक्त रूप में प्रकट कर सकें ऐसा वातावरण निर्माण करने में फ्रॉयड को सफ़लता प्राप्त हुई।

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