श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग- ७३

ईश्‍वर का गुणसंकीर्तन करना यह श्रद्धावानों के लिए होनेवाले अत्यन्त महत्त्वपूर्ण मुद्दे का अध्ययन हम कर रहे हैं। इसके लिए हमने नीचे दिए गए उपमुद्दों का अध्ययन अब तक किया।

१) किसी भी विरोध की परवाह किए बगैर ईश्‍वर का गुणसंकीर्तन करते रहना।
२) सभी द्वंद्वों में गुणसंकीर्तन शुरू रखना।
३) साईनाथ का कृपाहस्त सिर पर है इसीलिए मैं गुणसंकीर्तन कर सकता हूँ इस बात का ध्यान रखना।
४) अपनी स्वयं की ज़रूरतों को मर्यादित रखना।

अब इससे आगे अत्यन्त महत्त्वपूर्ण मुद्दों का अध्ययन हम करनेवाले हैं और वे इस प्रकार हैं।

आकर रहने लगा मस्जिद में। (येऊनि राहिला मशिदींत।)

सर्वप्रथम रोहिले के आचरण से हमें यह सीखना चाहिए कि गुणसंकीर्तन करने के लिए उसने जिस स्थान का चुनाव किया, वह सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। वह चावडी में जाकर भी गुणसंकीर्तन करता ही था। परन्तु द्वारकामाई में रहकर गुणसंकीर्तन करनेवाली उसकी कृति हमारे लिए सबसे अधिक महत्त्व रखती है।

साईबाबा, श्रीसाईसच्चरित, सद्गुरु, साईनाथ, हेमाडपंत, शिर्डी, द्वारकामाईईश्‍वर का गुणसंकीर्तन श्रद्धावान ही क्या अन्य किसीने भी यदि पवित्र भावना रखकर कहीं पर भी किया तब भी वे अपना कार्य पूर्णरूपेण करते ही हैं। परन्तु जब मैं अत्यन्त सिद्ध ऐसे स्थान पर करता हूँ उस वक्त, मेरे पंचकोशों की अड़चनों को परमेश्‍वरी ऊर्जा को मैं अनन्त गुणा अधिक ग्रहण कर सकता हूँ। ऐसे इन सभी स्थानों में ‘गुरुस्थान’ ये सभी श्रद्धावानों के लिए सबसे अधिक श्रेष्ठ हैं। मेरे साईनाथ जहाँ पर स्वयं रहते हैं, ‘प्रत्यक्ष’ रहते हैं, वही ‘गुरुस्थान’ अर्थात ‘द्वारकामाई’ स्वयं साईनाथ जहाँ रहते हैं वह स्थान वे स्वयं जहाँ पर अखंड रूप में ‘अल्लामालिक’ अर्थात ‘स्वामीसमर्थ’ इस प्रकार का जप करते हैं, वह स्थान अर्थात हमारे लिए सद्गुरु स्थान और वहीं सभी तीर्थों का मायका ही है।

साईनाथ की द्वारकामाई यही हम सभी साईभक्तों के लिए गुरुस्थान है। इसी गुरुस्थान पर ही हमारे साईनाथ हमें उदी प्रदान करते हैं। यहीं पर वे हर एक भक्त को प्रत्यक्षरूप में मिलते हैं, यहीं पर साईकृपा की धुनी अखंडरूप में प्रज्वलित है। यह ‘गुरुस्थान’, ये ‘द्वारकामाई’ इसीलिए हम सभी साईभक्तों के लिए सर्वश्रेष्ठ तीर्थक्षेत्र हैं, सर्वश्रेष्ठ सिद्धपीठ है। ऐसे इस गुरुस्थान पर द्वारकामाई की गोदी में बैठकर जब उसके बच्चे ईश्‍वर का गुणसंकीर्तन करेंगे, उस वक्त उनके बच्चों को ये ‘माई’ प्रसन्न होकर कितना अधिक कृपाप्रसाद प्रदान करेगी, कितनी अधिक परमेश्‍वरी उर्जा उनके जीवन में बरसेगी।

रोहिला मस्जिद में आकर रहने लगा उसके इस कृति में ही हमें दिखाई देता है कि गुणसंकीर्तन करने के लिए कोई भी स्थान श्रेष्ठ ही है। परन्तु मुझे यदि मेरा जीवन विकास अत्यन्त वेगपूर्वक साध्य करना है तो मुझे गुरुस्थान में, द्वारकामाई में बैठकर अधिकाधिक गुणसंकीर्तन करना चाहिए। मैं कोई रोहिले की तरह मस्जिद में जाकर रह नहीं सकता, परन्तु मुझे जब-जब भी हो सकता है उस समय इस गुरुस्थान, में जहाँ पर मेरे साई रहते हैं, वहीं जाकर गुणसंकीर्तन करना चाहिए। हम साईसच्चरित में देखते हैं कि बाबा स्वयं द्वारकामाई में ‘रामविजय’ यह राम का गुणसंकीर्तन करनेवाला ग्रंथ जानबूझकर पढ़वा लेते थे। द्वारकामाई में भक्तों से ईश्‍वर का गुणसंकीर्तन करवा लेते हैं। फिर हमें भी ऐसे इस परम पवित्र स्थान पर गुणसंकीर्तन नहीं करना चाहिए क्या?

आज हम सचमुच अपने जीवन के जोड़-बटोर में इतना अधिक (फँसे हुए) व्यस्त हैं कि हमें संपूर्ण रामविजय ग्रंथ एक ही समय पर अथवा रोज जाकर ऐसे पवित्रस्थान बैठकर पढ़ना संभव नहीं हैं। इसीलिए श्रीअनिरुद्धजीने हमारे जैसों की अड़चनों को ध्यान में रखकर श्रीरामचंद्र का गुणसंकीर्तन करनेवाले ‘श्रीरामरसायन’ नामक इस अत्यन्त सहज अर्थात ग्रंथ की रचना की है। हम श्रीराम का गुणसंकीर्तन इस ग्रंथ का श्रद्धापूर्वक पठन द्वारा कर सकते हैं और जब यह गुणसंकीर्तन, श्रीरामरसायन पठन हम गुरुस्थान इसपरम पवित्र स्थान पर करते हैं, तब उसका सहस्त्रगुणा लाभ हमें मिलता है।

भगवान का गुणसंकीर्तन गुरुस्थान पर करने से हमारी पारिवारिक समस्याएँ तो चुटकी बजाते ही सुलझ जाती हैं, परन्तु इसके साथ ही हमारा पारमार्थिक प्रवास भी प्रचंड वेग के साथ होते रहता है। जितना अधिकाधिक हम गुरुस्थान का द्वारकामाई का दर्शन लेते हैं, वहाँ पर लोटांगण डालते हैं, वहीं पर गुणसंकीर्तन करते हैं, उतना ही अधिकाधिक हरिकृपा हमारे जीवन में प्रवेश करती है और हमारे प्रारब्ध का नाश होता है। केवल ऐहिक संसार ही नहीं बल्कि पारमार्थिक संसार भी सुखमय बन जाता है। ‘संपूर्ण संसार को’ सुखमय, आनंदमय करनेवाले ऐसा ही यह गुरुस्थान में किया जानेवाला गुणसंकीर्तन हैं।

घर पर, कैसेट पर यूँही किसी गायक का गाना सुनना और प्रत्यक्ष रूप में उसके कार्यक्रम में उपस्थित रहकर उसके गाने को सुनना इसमें जो फर्क (फरक) है। वही अन्य स्थानों पर किए जानेवाले गुणसंकीर्तन एवं गुरुस्थान के कीर्तन में भी है। ‘लाईव्ह’ एवं ‘रेकॉर्डेड’ इनमें होनेवाला फर्क यहाँ पर होता है। घर पर होनेवाले शॉवर के नीचे भींगना एवं प्रत्यक्ष बारिश में भींगना यह फर्क भी यहाँ पर है।

गुरुस्थान में बैठकर किया गय गुणसंकीर्तन मेरी ङ्गटी हुई झोली को भली-भाँति सील देता है। वह भी इतना अधिक मजबूत बना देता है कि पुन: वह प्रारब्ध के कारण फटने नहीं पायेगी साथ ही मेरी झोली को पूर्णरूपेण भर भी देता है। अर्थात मेरे न माँगने पर भी मुझे जिस चीज की ज़रूरत है, वह सब दान वे भरभराकर मेरी झोली में डाल देते हैं। मुझे कभी भी किसी भी चीज की कमी न पड़ने पाये इस विश्‍वास के साथ। किसी भी प्रकार के भय की भी ज़रूरत नहीं रहेगी। किसी के भी आगे हाथ फैलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी, किसीसे भी डरने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। इस प्रकार का सामर्थ्य मुझे मुक्त हस्त प्रदान करनेवाले, ऐसे हैं ये गुरुस्थान के गुणसंकीर्तन। हमारे जीवन को रामरसायन से प्रफुल्लित एवं विकास करनेवाला, कभी भी मुरझाने न देनेवाला और सदैव परमात्मा के छत्रछाया में रखनेवाला।

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