श्रीसाईसच्चरित अध्याय १ (भाग ४० )

साईनाथ के आचरण के आधार पर ‘कार्य का व्यवस्थापन’ इस दसवे मुद्दे का हम अध्ययन कर रहे हैं। काल, काम, वेग/गति और दिशा इन चारों बातों के महत्त्व का अध्ययन हमने किया। यहाँ पर हमें याद आते हैं- काल और काम इनके बीच खड़े रहनेवाले परशुराम। श्रद्धा और सबुरी इनके बीच खड़े रहनेवाले साईनाथ। सटका (दण्ड) और इष्टिका (ईंट) धारण करनेवाले साईनाथ! काल, काम, वेग का हिसाब-किताब हमने स्कूल में ज़रूर सुलझाया होगा।

Wall Paper Saibaba (32) (1)_2(1) - साईनाथव्यवहार के समान ही परमार्थ में भी काल, काम, वेग इन सब का महत्त्व तो है ही। मुझे इतने समय में इतना काम यदि करना है तो इतने समय पर इतना वेग बनाये रखना बहुत ज़रूरी है और यह वेग ही साक्षात नारायण  हैं। उचित वेग बनाये रखे बिना ध्येय प्राप्त नहीं किया जा सकता है और साथ ही ध्येय प्राप्त करने के लिए किये जानेवाले प्रयास का प्रवास भी आनंददायी नहीं होगा।

कार्य का व्यवस्थापन करते समय ‘ध्येय’ (एम) प्राप्त करने के लिए जो प्रवास किया जाता है, उस में भी छोटे-छोटे उद्दिष्टों (ऑब्जेक्टिव्हज्) का आलेख बना लेना ज़रूरी है। तभी वह प्रवास ‘प्रेमप्रवास’ बनता है। श्रीमद्पुरुषार्थ ग्रंथराज द्वितीय खंड में यानी प्रेमप्रवास में इसका बहुत ही सुंदर वर्णन दिया है और हर किसी को उसे अच्छी तरह से पढ़कर ही प्रवास करना चाहिए। किसी भी ध्येय को निश्चित कर लेने पर उसे प्राप्त करने के लिए छोटे-छोटे मुद्दों का यानी उद्दिष्टों का आलेख बना लेना चाहिए। जैसे कि- यदि किसी ऊँचे पर्वत पर चढ़कर जाना है, तो सबसे पहले स्वयं चढ़कर जाने के लिए इस पर्वत पर छोटी-छोटी सीढ़ियाँ होना ज़रूरी है तथा कुछ देर चढ़ने के बाद वहाँ पर थोड़ी देर रुकने के लिए विश्राम स्थान होना भी ज़रूरी है, जिससे कि बिना थके-हारे उस ऊँचे पर्वत पर सहजतापूर्वक चढ़ा जा सकता है।

किसी भी ध्येय को पूरा करने के लिए इन उद्दिष्टों का उचित रुप से आलेख तैयार कर लेना ज़रूरी है। जैसे पर्वत चढ़कर जाने के लिए सीढ़ियाँ बनाते समय यदि मैं ३  फीट ऊँचाई के हिसाब से सीढ़ी तैयार करुँगा तो चलेगा क्या? बिलकुल नहीं? मुझे अपनी सुविधानुसार सरलतापूर्वक चढ़ा जा सके ऐसी ही सीढ़ी बनानी चाहिए्। नीचे से लेकर ऊपर तक स़िर्फ सी़ढियाँ ही बनाई तो चलेगा क्या? नहीं । बीच-बीच में विश्रामस्थल बनाना भी आवश्यक है। इसी तरह अपने ध्येय तक पहुँचने के लिए उसका उचित प्रकार से लेखा-जोखा कर लेने से ही हमें जीत हासिल होती है और हम सरलता पूर्वक बिना किसी उलझन के अपना कार्य पूरा कर सकते हैं। साईनाथ पिसाई का कार्य आरंभ करने से पहले कार्य की व्यवस्था करते समय, ‘ध्येय एवं उद्दिष्टों का लेखा-जोखा कैसे कर लेना चाहिए’ इस बात को स्वयं के आचरण द्वारा हमें बताते हैं।

बाबा का ध्येय है- महामारी का विनाश और उसके लिए गेहूँ का आटा बनाकर यानी पीसकर उसे सीमा पर डालना। अब इस पिसाई के कार्य की व्यवस्था करने के लिए साईनाथ छोटे-छोटे हिस्से बनाकर अर्थात् उद्दिष्टों का लेखा-जोखा कितनी सावधानी के साथ करते हैं, इस बात को हम देखेंगे। बाबा नीचे दिये अनुसार छोटे-छोटे उद्दिष्ट बनाकर अपना ध्येय पूरा करते हैं।

१) गेहूँ पीसने की सामग्री, वस्तुएँ आदि की पहले से तैयारी करके रखना।
२) प्रात: समय पर उठकर प्रातर्विधि पूरा करना।
३ ) मापक से भर-भरकर गेहूँ सूप में निकालना।
४) गोनते पर जाँता रखकर उस पर पच्चर बिठाना
५) खूंटा ठोककर मज़बूत करना ।
६) आस्तिन ऊपर करके कफनी के विस्तार को ठीक करके पीसने बैठना।
७) गेहूँ डालते हुए पीसने की क्रिया करते रहना।
८) चारों स्त्रियों के पीसने के लिए बैठने पर, उन स्त्रियों का कार्य उचित गति के साथ, उचित दिशा में ही चल रहा है या नहीं, इस बात का ध्यान रखना।
९) आवश्यक प्रमाण में गेहूँ पीसकर होते ही गेहूँ पीसने का काम रुकवा देना।
१०) उस आटे का अन्य कहीं उपयोग होने से रोकना।
११ ) उन चारों के हाथों ही उस आटे को गाँव की सीमा के चारों ओर डलवा देना।

गेहूँ पीसने की सामग्री इकठ्ठा करने से लेकर सीमा पर आटा डालने तक बाबा ने छोटे छोटे उद्दिष्टों की सहायता से कार्य का अचूक रीति से व्यवस्थापन करके अपने ध्येय को पूर्ण रूप से साध्य किया। हम भी कोई भी कार्य करते समय, कार्य को इस प्रकार छोटे-छोटे हिस्सों में बाँटकर, उन्हें पूरा करते हुए क्रियाशील रहते हैं, तो हम भी अपने ध्येय को निश्चित रूप में पूरा सकते हैं और सफलता भी प्राप्त कर सकते हैं।

कोल्हापुर में हर वर्ष होनेवाले वैद्यकीय शिबिर में इसी तरह कार्य के सुंदर तरीके से होनेवाले व्यवस्थापन का अनुभव हम गत कुछ वर्षों से कर रहे हैं। सचमुच जिन्हें मदद की ज़रूरत है, उन मेहनत-मजदूरी करनेवाले लोगों के लिए सहकार्य का हाथ आगे बढ़ाते हुए अपना कर्तव्य पूरा करते हुए सेवाकार्य का व्यवस्थापन इसी तरह छोटी-छोटी टुकड़ियों में बाँटकर करते हुए हमने देखा है। इससे ध्येयप्राप्ति भी बहुत ही सुंदर तरीके से होती है, इसका भी अनुभव हमने किया है।

सर्वप्रथम ज़रूरतमंद मेहनत करनेवालों के घर-घर में जाकर, गाँव-गाँव में दौड़-धूप करके ‘सर्व्हे’ करना, उन्हीं के अनुरूप उन्हें जिस-जिस मदद की ज़रूरत है, उसकी उस-उस गाँव के अनुसार सूची बनाना और उसमें भी हर एक घर के उस में रहनेवालों लोगों की उनके ज़रूरत के अनुसार सूची बनाना। फिर उनके ज़रूरत के वस्तुओं के अनुसार अलग-अलग समूह बनाकर फिर उन वस्तुओं का सूची-पत्रिका के अनुसार वस्तुएँ एकत्रित करके हर एक घर के लिए एक-एक गठरी तैयार करके उस पर नाम-पता लिखकर उस स्थानपर अचूक मदद भेजना। यह हुआ एक हिस्सा। साथ ही विभिन्न स्कूलों का ‘सर्व्हे’, गाँव-गाँव में रहनेवाली गाय, भैसों आदि प्राणियों की भी सूची बना लेना, स्वच्छता अभियान ‘सर्व्हे’ इस प्रकार के मज़बूती प्रदान करनेवाले अध्ययन के साथ उस अध्ययन के अनुसार कार्य की व्यवस्था करके सेवा कार्य को सफल बनाना यह भी एक प्रकार का छोटे-छोटे उद्दिष्टों को साध्य करते-करते प्राप्त किया गया ध्येय ही है।

ए.ए.डी.एम. की ओर से भी की जानेवाली सेवाकार्य में इसी प्रकार के कार्यों का उचित प्रकार से व्यवस्था की जाती है। फिर वह २६  जुलाई, २००५  में होनेवाली अतिवृष्टि के कारण पैदा होनेवाली विकट परिस्थिती की सेवा हो अथवा अलग-अलग स्थानों पर की जानेवाली आपत्कालीन सेवा हो, उनमें भी इन कार्यों के व्यवस्था का महत्त्व है ही। इतना ही नहीं तो अलग-अलग स्थानों पर होनेवाली भीड़ की व्यवस्था, का भी अनुभव हम करते ही है। गणेश विसर्जन के समय पर इस व्यवस्था का उपयोग किये बिना हम अपने ध्येय को पूरा कर ही नहीं सकते हैं। श्रीअनिरुद्ध के मार्गदर्शन के अन्तर्गत सक्रिय होनेवाली तेरह कलमी योजना का हर एक कार्य उचित व्यवस्था के साथ ही किया जाता है और इसी लिए वह सब कुछ सभी स्तरों पर सफलता की सीढ़ी पार करते हुए हम देखते ही हैं।

हमें सामान्य रूप में यदि आलूवडा (बटाटावडा) भी बनाना है तब भी इन छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखकर पूरी तरह से तैयारी करने के पश्चात् ही अपना पूरा कर पाते हैं । जैसे- बटाटा उबालना, उसे छिलना, मसलना उसमें प्रमाण के अनुसार नमक, मसाला आदि मिलाकर तैयार करना, तेल गरम करके, बेसन में डूबाकर गरम-गरम तेल में छानना आदि ये सभी स्तर बहुत ही महत्त्वपूर्ण होते हैं। परीक्षा के समय पढ़ाई करते समय भी पहले एक बार लगातार पढ़ना, दूसरी बार महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर नज़र केन्द्रीत करना, उसके बारे में चिन्तन-मनन करना, उन्हें ठीक से लिख लेना फिर किताब बंद करके घड़ी में समय निश्चित कर निश्चित समय के अंदर उससे संबंधित पुछे जानेवाले प्रश्नों के उत्तर लिखना ये सब भी महत्त्वपूर्ण होता है। दौड़ प्रतियोगिता अथवा साईकिल चलाने की प्रतियोगिता में कोई तुरंत ही ‘मॅरेथॉन’ स्पर्धा में भाग नहीं लेता। पहले १००  मीटर दौड़ना, उसका अभ्यास करना, ऐसे करते-करते हर एक पड़ाव पर अपनी क्षमता बढ़ाते हुए अपना ध्येय पूरा करना यही यशदायक है। यदि मुझे दौड़ने का अभ्यास नही है और मैं मॅरेथॉन में जोर से दौड़ने लगूँगा तो क्या होगा? ध्येय प्राप्त करना तो दूर की बात होगी मुझे अस्पताल का रास्ता पकड़ना होगा।

हमें क्या प्राप्त करना होता है और हम क्या प्राप्त करते हैं? हमारे जीवन की यही तो विडंबना है। इसका कारण है- कार्य का विचारपूर्वक व्यवस्थापन किये बिना ही ध्येय प्राप्त करने के लिए, छोटी-छोटी सीढ़ियाँ बनाने के बजाय हम एकदम सरपट दौड़ करने लगते हैं। अपनी क्षमता से बाहर उछलने-कूदने लगते हैं। इसीलिए स्वयं साईनाथ आटा पीसने के लिए अपने कार्य का बड़ी ही बारीकी से व्यवस्था करते हैं। फिर हमें भी अपने कार्य में क्या यह सब कुछ नहीं करना चाहिए? श्रीमद्पुरुषार्थ ग्रंथराज के कहे अनुसार बड़े ध्येय की प्राप्ति के लिए उद्दिष्टरूपी छोटी-छोटी सीढ़ियाँ बनाओ, फिर देखो ध्येय कैसे आसानी से हासिल हो जाता है!

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