श्रीसाईसच्चरित अध्याय १ (भाग १२) साईनाथ जी ने चक्की में पीस डाला महामारी को

Saibaba

शिरडी के लोग महामारी के संभाव्य संकट के कारण घबरा गए थे, गॉंव के हर एक मनुष्य के मन में यह अशांति भय के कारण ही आई थी। हमारे मन के गॉंव का क्या? मन-गॉंव के हर घर में यानी मन के हर कोने में अन्य जन्तुओं का प्रवेश उस मात्रा में नहीं होता, जितनी मात्रा में हर व्यक्ति के मन में भय के भयानक रोगजन्तुओं का प्रादुर्भाव एवं फैलाव जोर-शोर के साथ होता है। ‘भय’ ही तो हमारा ‘बैरी’ है, जो हमारे मन को दुर्बल बनाकर हमारे विकास को कुंठित कर देता है और हमें अनुचितता के दुष्टचक्र में (दुश्चक्र में) फँसा देता है।

मन:सामर्थ्य के बिना मन:शान्ति नहीं और मन:शान्ति यदि न हो तो बाकि सब कुछ कितना भी क्यों न मिल जाये, उसका कोई उपयोग नहीं होता। मन का स्वास्थ, मन का आरोग्य अर्थात मन:शान्ति और ‘भय’ ही है मन की महामारी| केवल ये डॉक्टर साईनाथ ही भय का समूल विनाश करके ‘मन:सामर्थ्यदाता’ बनकर मेरे जीवन में मन:शांति प्रदान करनेवाले हैं।

हमने डॉक्टर साईनाथ के कौशल का अध्ययन किया और उसके साथ ही यह कथा मेरे मन के गॉंव में भी घटित हो और मन की महामारी का समूल विनाश हो इसके लिए मन की चार स्त्रियॉं यानी चार वृत्तियॉं कौन सी हैं इसका भी अध्ययन किया। साई का उत्कट प्रेम, साई पर होनेवाला पूरा विश्वास, साई सेवा में सक्रियता और साई की आज्ञा का पालन करने में पूरी निष्ठा, ये चारों बातें हमारे जीवन में भी गेहूँ पीसनेवाली कथा प्रकट करनेवाली हैं, ये हमने देखा।

उस समय सर्वत्र ‘कॉलरा’ की ज़बरदस्त बीमारी फैली हुई थी। उस समय उसका इलाज उपलब्ध न होने के कारण मरनेवालों की संख्या भी अधिक मात्रा में थी। शिरडी के निवासी इस महामारी के संकट के कारण बुरी तरह से थर्रा उठे थे| कॉलरा के जन्तुओं ने अब तक आसपास के गॉंवों के कितने लोगों को ग्रसित कर लिया था इस बात की जानकारी तो ठीक से नहीं मिली थी परन्तु भय के जन्तुओं ने हर किसी को ग्रसित कर ही लिया था।

प्लेग, कॉलरा आदि जैसी संक्रामक बीमारियों के नाम भी यदि कोई सुन लेता है, तब भी सहज ही भय उसके मन में प्रवेश कर जाता है। कॉलरा की बीमारी से ग्रसित रहनेवालों की संख्या की अपेक्षा भय की बीमारी से ग्रसित होनेवालों की संख्या कई गुना अधिक थी। कॉलरा तो कुछ गिनेचुने लोगों को ही हुआ होगा परन्तु भय ने हर किसी के मन को कुरेद डाला था।

मृत्यु का भय हर किसी के मन में होना तो स्वाभाविक है, परन्तु सिर्फ उतना ही ‘भय’ मनुष्य के मन में नहीं होता| अनेक प्रकार के भय हम जैसे सामान्य लोगों के मन को बारंबार ग्रसित करते रहते हैं। अपघात का, बीमारियों का, बुरी शक्तियों का भय जिस तरह होता है उसी प्रकार नौकरी-व्यवसाय क्षेत्र में आनेवाले अनेक प्रकार के भय भी सताते ही हैं।

सबसे बड़ा होता है अशाश्वत का भय| कब क्या होगा, किस क्षण, किस पल में कब कौन सा संकट मुँह पसारकर सामने आकर खड़ा हो जायेगा यह कहा नहीं जा सकता। गृहस्थी की गाड़ी खींचते हुए पारीवारिक एवं आर्थिक समस्याओं का भय भी सामान्य मानव के मन में होता ही है।

सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण बात तो यह है कि यह भय हर मनुष्य के मन में से उठकर उसी मनुष्य को ग्रसित करते रहता है और इसे हम किसी के साथ बॉंट भी नहीं सकते, ना ही कम कर सकते हैं। यह जिसके मन में उठता है उसी को भुगतना पडता है। इस भय के द्वारा कुरेदा गया मन दुर्बल हो जाता है और ऐसा दुर्बल मन कभी भी किसी भी क्षेत्र में प्रगति नहीं कर सकता।

ये डॉक्टर, मेरे ये सद्गुरु साईनाथ चिकित्सा करते हैं वह इसी मन की| शिरडी के लोग महामारी के संभाव्य संकट से बेहद घबराये हुए थे और गॉंव में रहनेवालों के मन में यह अशांति भय के ही कारण पैदा हुई थी। गॉंव के हर घर में कॉलरा के जन्तुओं ने उतनी मात्रा में प्रवेश नहीं किया था जितना कि गॉंववालों के मन में ‘भय’ इस रोग के भयानक जन्तुओं का प्रादुर्भाव ज़ोर शोर के साथ हो गया था। ‘भय’ यही तो है हमारा ‘बैरी’, जो हमारे मन को दुर्बल बनाकर हमारे विकास की दिशा को कुंठित कर देता है और हमें अनुचितता के दुष्टचक्र में फँसा देता है।

‘गोधूम (गेहूँ) नहीं, वह तो थी महामारी। जॉंते में रगड़ने के लिए बैरी।’ इन शब्दों में हेमाडपंत ने जिस ‘बैरी’ शब्द का उल्लेख किया है, वही है यह भयरूपी बैरी। मनुष्य के मन का भय ही है वह महामारी जैसा भयानक रोग, जो मन के गॉंव में यदि एक बार प्रवेश कर जाता है, तो फिर वह पूरे के पूरे गॉंव को ही तबाह कर देता है यानी मन के सामर्थ्य को धीरे-धीरे कम-कम करते रहता है। मन को दुर्बल बनाता है। ऐसे दुर्बल मन से फिर एक के बाद एक गलतियॉं होती रहती हैं, दुर्बल मन ही गलत प्रकार से की जानेवाली कल्पनाओं का शिकार बनता है।

ऐसे में वास्तविकता का ध्यान नहीं रह जाता, निरीक्षण शक्ति का उपयोग न कर गलत प्रकार के चश्में से वह देखने लगता है और उचित-अनुचित बातों का ठीक से फैसला न कर पाने के कारण वह गलत निर्णय लेता है। आत्मविश्वास खो बैठने के कारण ठीक से कोई भी काम नहीं हो पाता है। चंचलता अपना जाल बिछाने लगती हैं और इससे उत्पन्न होता है अपयश| साथ ही विफलता के कारण रूक्षता यानी रूखापन आ जाता है। निराशा का भाव उत्पन्न हो जाता है। षडरिपु अपना सिर उठाने लगते हैं, मत्सर की भावना बहुत बड़े पैमाने में बढ जाती है, कदम अपने आप ‘लंकत्व’ की ओर तीव्र गति के साथ बढने लगते हैं।

आज मनोवैज्ञानिक भी इसी भय को ही मानसिक बीमारी का मुख्य कारण मानते हैं। यहॉं पर डॉक्टर साईनाथ भी इस भयरूपी बैरी को ही जॉंते में रगड़ रहे हैं। शिरडी के लोगों के मन के भय को बाबा ने अपनी इस लीला के द्वारा पूर्णत: पीस डाला, उसका समूल नाश कर दिया। बाबा के इस प्रथम अध्याय की कथा ही इस बात को स्पष्ट करती है कि ये डॉक्टर साईनाथ ही हर एक भक्त के मन की महामारी का अर्थात भय का नाश करके हर भक्त को मन:सामर्थ्य किस तरह प्रदान करते हैं। इस लीला के कारण ही शिरडी के लोगों के मन में पूरा विश्वास हो गया है कि महामारी चाहे कितनी भी खतरनाक क्यों न हो, मगर मेरे बाबा के आगे उसकी औकात रत्ती भर भी नहीं है। मेरे बाबा ने गॉंव की सीमा पर बस गेहूँ का आटा डालकर ही इस महामारी का समूल विनाश कर दिया है, फिर अब हमें डर किस बात का? बीमारी चाहे कितनी भी बड़ी क्यों न हो, अद्भुत कौशल के स्वामी रहनेवाले इन धनवन्तरि साईनाथ के होते हुए डर किस बात का? इसीलिए हेमाडपंतजी कहते हैं कि बाबा की इस लीला से ‘गावँ को शांति प्राप्त हुई|’

अर्थात मन को शांति देनेवाले एकमात्र डॉक्टर सद्गुरु साईनाथ ही हैं। मन:सामर्थ्य के बिना मन की शांति कहॉं और यदि मन ही शांत न हो तो वहॉं अन्य सब कुछ चाहे कितना भी क्यों न हो उसका कोई उपयोग नहीं होता। मन का स्वास्थ, मन का आरोग्य ही मन:शांति है और भय यह मन की महामारी है। ये डॉक्टर साईनाथ ही केवल भय का समूल नाश करके मेरे मन को सामर्थ्य प्रदान कर मेरे जीवन में शांति निर्माण कर सकते हैं।

साधारण तौर पर देखा जाये तो जब हम अपने बीमार होने पर हमारे फॅमिली डॉक्टर के पास जाते हैं तब वे हमारी बीमारी का निदान करते हैं, खास कर वे हमारे मन के भय को निकाल देते हैं। उनकी सकारत्मक बातें हमारे मन को ९९% आराम देती हैं। फिर यहॉं हमारे साईनाथ तो संपूर्ण विश्व के डॉक्टर हैं, हमें उनपर पूरा विश्वास होना ही चाहिए।

आगे ११ वे अध्याय में जब शिरडी गॉंव पर बहुत बड़ा आसमानी संकट आता है, तब संपूर्ण शिरडी के लोगों को आश्रय मिलता है द्वारकामाई की छत्रछाया में। अब सब को इतना तो विश्वास है कि यदि सारी दुनिया का संकट भी आ जाये तब भी हमारे सद्गुरु साईनाथ के रहते हमें उसका कोई भय नहीं। हम सामान्य मानव हैं, हम बिजली की चमक, बादलों की गरज एवं अन्य अन्तर-बाह्य संकटों से घबरा जाते हैं| परन्तु हम किसी भी आपत्ति के आगे डगमगायेंगे नहीं, क्योंकि हम जानते हैं कि हमारे पालनहार साईनाथ हमारी रक्षा करेंगे ही। हमें ड़रने की कोई ज़रुरत क्योंकि ‘मैं तुम्हारा त्याग कदापि नहीं करूँगा’ यह अपना वचन वे रखते ही हैं।

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