श्रीसाईसच्चरित अध्याय १ (भाग ११) मन की चार साईनिष्ठ वृत्तियाँ

‘महीन’ आटे की जगह ‘खुरदरा’ आटा पीसा जाने के बावजूद भी बाबा ने महामारी का उच्चाटन करके गॉंव को एक बहुत बड़ी आपत्ति से बचाया, इसका अध्ययन हमने किया। यही बाबा का ‘कौशल’ है, इस बात की जानकारी हेमाडपंत ने हमें बड़ी ख़ूबसुरती से दी है । महीन आटे के स्थान पर मोटा खुरदरा आटा पीसा जाने पर भी महामारी का समूल नाश करने का कार्य बाबा ने किया ही, यही साईनाथ का ‘कौशल’ यानी करामात है। करामात इस शब्द का प्रयोग विशेषत: वैद्यकीय कौशल्य के बारे में किया जाता है ।

किसी निष्णात डॉक्टर के बारे में कहा जाता है कि उनकी विशेषता क्या है तो उनके हाथों में जादू है, उनका हाथ लगाते ही बीमारी भाग गई। बीमारी को दूर भगाने के लिए उस बीमारी का अचूक निदान (डायग्नोस्टिक) एवं उपाययोजना (ट्रीटमेंट) करके रोगी को स्वास्थ प्रदान करनेवाले डॉक्टर को ही कुशल अर्थात ‘हुनरमंद’ कहा जाता है। रोग का निदान यानी मूल कारण एवं पूर्ण स्वरुप जानकर प्रत्येक रुग्ण की प्रकृति के अनुसार अथवा उसकी अवस्था के अनुसार अचूक औषधि योजना करके उचित परिणाम साध्य करने का कौशल रखनेवाला डॉक्टर ही सुविख्यात होता है ।

यहॉं पर हेमाडपंत इस साईनाथ ‘डॉक्टर’ के ‘कौशल’ के बारे में हमेंबता रहे हैं । डॉक्टर साईनाथ ! सचमुच पूरे गॉंव को इस महामारी से बचानेवाले बाबा यहॉं पर डॉक्टर के रूप में क्रियाशील हैं । प्रथम अध्याय में ही हेमाडपंत ने इस डॉक्टर साईनाथ से हमारी मुलाकात करवाई है और आगे चलकर संपूर्ण साईसच्चरित में इस डॉक्टर के कौशल्य का अनुभव हम करते हैं ।

लौकिक दृष्टि से बीमार रहनेवालों की बीमारी तो डॉक्टर साईनाथ पूर्ण रूप से ठीक करते ही हैं, परन्तु साथ ही सबसे महत्त्वपूर्ण ट्रिटमेंट बाबा उनके पास आनेवाले हर एक को देते हैं, वह मन के रोग के लिए। शारिरिक रोग की अपेक्षा यह मानसिक रोग बहुत गहराई तक फैला हुआ होता है और उसकी चिकित्सा केवल सद्गुरु साईनाथ ही कर सकते हैं, यह कौशल सिर्फ डॉक्टर साईनाथ के पास ही है ।

हम साईसच्चरित में देखते हैं कि किसी के मन को अहंकाररूपी रोग की लागत हुई है, तो किसी के मन में षड्रिपुरूपी रोगजन्तु घुस गए हैं और फैलते ही जा रहे हैं। शंकाकुशंका, तर्क-कुतर्क, विकल्प, वासना, निन्दा, न्यूनगंड (इन्फिरिऑरिटी कॉम्प्लेक्स), चंचलता इस प्रकार के अनेक रोगों के द्वारा कुतरे गए मन की चिकित्सा सिर्फ मेरा यह डॉक्टर साईनाथ ही कर सकता है । मन को परेशान करनेवाली सबसे बड़ी बीमारी है ‘फलाशा’ और इस महामारी से गॉंव को अर्थात मेरे मन को बचानेवाला डॉक्टर साईनाथ ही है ।

नि:स्वार्थ प्रेमरूपी आटा यह डॉक्टर साईनाथ जब मेरे मन की के चारों ओर अर्थात हर कोने में फैला देता है, तो फिर इस मन में फलाशारूपी महामारी प्रवेश कर ही कैसे सकती है? इस साईनाथ का रामबाण यानी ‘लक्ष्मणरेखा’ यानी इस साईनाथ के निरपेक्ष प्रेम का आटा जिस मन में सभी दिशाओं में फैला हुआ होगा, उस मन में अब सिर्फ साईनाथ का प्रेम ही प्रवेश कर सकता है और वह भी सभी दिशाओं से, फिर वहॉं पर इस साईनाथ के अलावा और कौन हो सकता है?

मुझे सिर्फ एक बात का ही ध्यान रखना चाहिए । मेरे इस मनरूपी गॉंव में रहनेवाली चारों स्त्रियों को मेरे अन्तर्मनरूपी द्वारकामाई में रहनेवाले साईनाथ के गेहूँ पीसने के कार्य में सहभागी होकर फिर बाबा की आज्ञा के अनुसार ही मेरे मन की सीमा के चारों ओर इस आटे को डाल देना चाहिए । इस मन के गॉंव में बसनेवाली चार स्त्रियॉं इस प्रकार हैं ।

१)उत्कट प्रीति २)आस्था ३)सक्रियता और ४)आज्ञापालन-निष्ठा

शिरडी की ये चार स्त्रियॉं इन चार गुणों की निर्देशक हैं। बाबा गेहूँ पीसने बैठे हैं इस बात का पता चलते ही, ‘बाबा को हमारे होते हुए गेहूँ पीसने का कष्ट उठाने की ज़रूरत क्यों पड़ रही है? हम तुरंत ही जाकर हमारे बाबा को गेहूँ पीसने न देकर स्वयं ही पीसने बैठ जायेंगे’ इस उत्कट प्रीति के कारण ये स्त्रियॉं तुरंत ही द्वारकामाई की ओर दौड़ पड़ी थीं। शीघ्रता से वहॉं जाकर वे बाबा के हाथों से उस खूंटे को खींचकर स्वयं ही गेहूँ पीसने लगीं । बाबा उनके साथ झगड़ने भी लगे, मगर फिर भी बाबा के प्रति उनकी प्रीति थोडी सी भी ढलने न पायी । उलटे वे बाबा के गीत गाते-गाते प्रेमपूर्वक गेहूँ पीसती रहीं । बाबा की लीलाओं का वर्णन करनेवाले गीत इन स्त्रियों के उत्कट प्रेम के कारण ही उमड रहे थे । आगे हेमाडपंत कहते हैं –

क्या कहने उन स्त्रियों के प्रेम को । क्या कहने उनके प्रेम के माधुर्य को
निर्मल प्रेम का साम्राज्य जहॉं । विद्वत्ता छू भी न सके उस ऊँचाई को॥
                                                            (श्रीसाईसच्चरित अध्याय १० / ६८)

साईबाबा में रहनेवाली उनकी पूरी आस्था यहा थी दूसरी महत्त्वपूर्ण बात । ‘आस्था / विश्वास’ यह सबसे बड़ा गुण उनके पास है । ‘मेरे बाबा गेहूँ पीसने बैठे हैं यानी ज़रूर ही वह बहुत महत्त्वपूर्ण काम है’, यह उनका विश्वास है । ‘मेरे ये साईनाथ जो कुछ भी करते हैं, वह सत्य-प्रेम-आनंद इस सूत्र के आधार पर ही’, यह उनका विश्वास अखंड है और इसीलिए उनके मन में बाबा क्यों पीसने बैठे हैं? आदि प्रश्न ही नहीं उठते हैं । बाबा जो कर रहे हैं वह १०८% प्रतिशत उचित ही है और इसके पीछे बाबा का किंचित्मात्र भी स्वार्थ न होकर बाबा हमारे दुख को दूर करने के लिए ही, हमारे उद्धार के लिए ही यह सब कर रहे हैं, यह उनका पूरा विश्वास है ।

तीसरी महत्त्वपूर्ण बात है सक्रियता । बाबा कैसे पीस रहे हैं, क्यों पीस रहे हैं, आगे क्या करेंगे यह देखने के उद्देश्य से वे चारों स्त्रियॉं वहॉं नहीं जाती, बल्कि मेरे बाबा के कार्य में मैं अपनी क्षमता के अनुसार पूर्ण सक्रिय रहूँगी ही, इस भाव के साथ उस पीसने के कार्य में शामिल हो जाती हैं, यह मानकर कि ‘मेरे बाबा को कष्ट नहीं होना चाहिए, हम परिश्रम करेंगे’ और इस प्रेममय सक्रियता के साथ वे उस कार्य को पूर्णत्व की ओर ले जाती हैं । हाथ पर हाथ रखे न बैठते हुए, अपनी क्षमता के अनुसार वे अपने सद्गुरु के कार्य में सक्रिय होकर उस कार्य में स्वयं को झोक देती हैं, यही उनकी क्रियाशील प्रेमवृत्ति है, सेवा है।

सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण चौथी बात है- ‘आज्ञापालन निष्ठा’ । जब बाबा कहते हैं कि सारा का सारा आटा सीमा पर ले जाकर डाल दो, तब वे चारों ही स्त्रियॉं बाबा की आज्ञा का पालन पूरी ईमानदारी के साथ करती हैं। ‘बाबा, इतना आटा पीसा है, फिर उसे बेकार क्यों करें? गॉंव की सीमा पर डाल देने से क्या होगा? इन जैसे प्रश्न अथवा शंका-कुशंका उनके मन को छूते तक नहीं । बाबा जैसा कह रहे हैं बिलकुल वैसा ही उस-उस समय करना, बाबा की आज्ञा का अक्षरश: पालन करना यही सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है ।

उत्कट प्रीति, आस्था, सक्रियता एवं आज्ञापालन निष्ठा ये चार महिलाएँ यानी मन की ये चार वृत्तियॉं मन के गॉंव में जब इस गेहूँ पीसने की कथा को जीवित रखेंगी अर्थात इस साईनाथ की लीला में उनकी ये चार बेटियॉं जब क्रियाशील रहेंगी, तब ये डॉक्टर साईनाथ फलाशारूपी महामारी का विनाश करके मेरे गॉंव को यानी मेरे मन को ‘शान्तत्व’ अर्थात् शान्ति प्रदान करेंगे । श्रीसाईसच्चरित की यह कथा हमारे मन में कब घटित होगी? उत्तर आसान है- जब मैं इस डॉक्टर साईनाथ पर पूरा भरोसा रखकर उनकी शरण में जाऊँगा तब!

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