सियासी उथल-पुथल और उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद शेर बहादुर देउबा पांचवीं बार नेपाल के प्रधानमंत्री बने

काठमांडू – नेपाल कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादूर देउबा ने मंगलवार के दिन प्रधानमंत्री पद का ज़िम्मा संभाला। भंग की गई नेपाल संसद फिर से बहाल करने के आदेश जारी करने के साथ उच्चतम न्यायालय ने देउबा को प्रधानमंत्री नियुक्त करने का फैसला सुनाया था। प्रधानमंत्री देउबा की भारत समर्थक के तौर पर पहचान है। पूर्व प्रधानमंत्री के.पी.शर्मा ओली की चीन के प्रभाव में अपनाई नीतियों पर देउबा ने लगातार आलोचना की थी। इस वजह से भारत-नेपाल संबंधों के नज़रिये से शेर बहादुर देउबा का प्रधानमंत्री बनना अहमियत रखता है। प्रधानमंत्री देउबा इससे पहले चार बार नेपाल के प्रधानमंत्री रह चुके हैं।

nepal-supreme-court-pmनेपाल में बीते वर्ष से काफी सियासी उथल-पुथल हुई है। भारत के कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा क्षेत्र पर दावा जताकर और नेपाल का नया राजनीतिक नक्शा जारी करके उस समय के प्रधानमंत्री के.पी.शर्मा ओली ने भारत-नेपाल संबंधों में तनाव निर्माण किया था। इसके बाद के.पी.शर्मा ओली ने लगातार भारत विरोधी निर्णय करके बयानबाजी करने का सिलसिला शुरू किया था। भारत के हितों के खिलाफ चीन के साथ मिलकर कुछ बुनियादी सुविधाओं के प्रकल्प शुरू करने के कदम भी उठाए थे। इस वजह से भारत-नेपाल संबंधों में अधिक दरार निर्माण हुई थी।

लेकिन, चीन ने नेपाल की भूमि पर अतिक्रमण करने की बात स्पष्ट होने के बाद ओली को आलोचना का लक्ष्य होना पड़ा था। उनके और नेपाल में चीन की दखलअंदाज़ी के खिलाफ विरोधियों ने एवं जनता ने जोरदार आलोचना करना शुरू किया। इसी बीच नेपाल के शासक रहे कम्युनिस्ट पार्टियों के गठबंधन में भी दरार निर्माण हुई थी।

कम्युनिस्ट पार्टियों के नेता और पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहाल उर्फ प्रचंड ने ओली के विरोध में मोर्चा खोला। प्रचंड के गुट ने ओली का समर्थन हटाने के बाद ओली की सरकार अल्पमत में गई थी। दिसंबर में इन गतिविधयों के बाद उस समय के प्रधानमंत्री ओली ने राष्ट्रपति विद्यादेवी भंडारी से संसद भंग करने की माँग की थी। इसके बाद राष्ट्रपति ने संसद को भंग करके चुनाव कराने का निर्णय किया था।

लेकिन, संसद भंग करने के निर्णय को अलग अलग पार्टियों के नेताओं ने चुनौती दी थी। इस पर सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय ने फ़रवरी में संसद फिर से बहाल करने के आदेश जारी किए थे। अन्य विकल्पों पर विचार किए बगैर सीधे संसद को भंग करने का निर्णय गलत होने का बयान उच्चतम अदालत ने किया था। चुनाव कराके फिजूल में जनता पर भार ना डालें, यह इशारा उच्चतम न्यायालय ने दिया था। इसके बाद संसद फिर से बहाल की गई। लेकिन, उस समय के प्रधानमंत्री के.पी.ओली ने अल्पमत की अपनी सरकार की मुश्‍किलें बढ़ने पर राष्ट्रपति से संसद को फिर से भंग करने की सिफारिश की।

इसके अनुसार मई में उस समय के प्रधानमंत्री के.पी.शर्मा ओली की माँग पर राष्ट्रपति विद्यादेवी भंडारी ने संसद को भंग करके चुनावों का ऐलान किया। इसके खिलाफ विपक्ष ने अदालत से गुहार लगाई थी। संसद भंग करने का राष्ट्रपति का निर्णय गलत होने का दावा उच्चतम अदालत में दाखिल की गई २० से अधिक आवेदनों में किया गया था। अदालत में विपक्ष ने शेर बहादुर देउबा को प्रधानमंत्री नियुक्त करने की माँग रखी थी। करीबन २७५ सदस्यों की नेपाल की संसद के १५० सांसदों ने देउबा के नाम का समर्थन किया था।

इस वजह से अदालत ने फिर से भंग की गई नेपाल की संसद बहाल करने के आदेश जारी करने साथ ही २४ घंटों की अवधि में देउबा को प्रधानमंत्री नियुक्त करने के आदेश राष्ट्रपति विद्यादेवी भंडारी को दिए। इसके अनुसार राष्ट्रपति विद्यादेवी भंडारी ने शेर बहादुर देउबा को प्रधानमंत्री नियुक्त किया। मंगलवार के दिन उन्होंने अपने पद का शपथ ग्रहण किया। देउबा पांचवीं बार नेपाल के प्रधानमंत्री बने हैं। उन्हें संसद में जल्द ही अपना बहुमत साबित करना होगा। देउबा प्रधानमंत्री बनने पर नेपाल के चुनाव आयोग ने नवंबर में घोषित किए गए चुनाव भी रद किए हैं।

प्रधानमंत्री देउबा भारत के साथ आर्थिक एवं अन्य स्तरों के सहयोग के समर्थक के तौर पर जाने जाते हैं। वर्ष २०१७-१८ में उन्होंने चौथी बार प्रधानमंत्री बनते ही भारत का दौरा करके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भेंट की थी। तरई क्षेत्र के मधेसियों के मुद्दे पर भी प्रधानमंत्री देउबा की नीति नरम ही है और भारत-नेपाल संबंधों में निर्माण हुआ तनाव उनके कार्यकाल में खत्म होने की उम्मीद जताई जा रही है।

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